हिंदी दिवस 2020 : नागरी प्रचारिणी सभा के मार्गदर्शन से बीएचयू में बना था हिंदी का पाठ्यक्रम
हिंदी को शिखर पर पहुंचने में काशी के साहित्यकारों व विद्वानों की अहम भूमिका है। वाराणसी नागरी प्रचारिणी सभा ने भी हिंदी को दुनिया में पहचान दिलाने का कार्य किया।
वाराणसी, जेएनएन। हिंदी को शिखर पर पहुंचने में काशी के साहित्यकारों व विद्वानों की अहम भूमिका है। नागरी प्रचारिणी सभा ने भी हिंदी को दुनिया में पहचान दिलाने का कार्य किया। सभा ने अभियान चला कर मठों-मंदिरों व राजाओं यहां पड़ी पुस्तकों की न केवल खोज की बल्कि इन पुस्तकों की प्रामाणिकता भी सिद्ध की। बीएचयू के स्नातकोत्तर स्तर पर का पाठ्यक्रम बनाने का श्रेय भी नागरी प्रचारिणी सभा को ही है। बीएचयू में हिंदी में स्नातकोत्तर कोर्स शुरू करने के लिए पाठ्यक्रमों का निर्धारण एक चुनौती बना हुआ था। उस समय बीएचयू में अध्यापक रहे बाबू श्याम सुंदर दास, रामचंद्र शुक्ल, हरिऔध ने नागरी प्रचारिणी सभा के मार्गदर्शन में हिंदी के पाठ्यक्रम को दिशा दी।
हिंदी को सम्मान दिलाने और प्रचार प्रसार के उद्देश्य से तब नौवीं के छात्र रहे बाबू श्यामसुंदर दास, पं. रामनारायण मिश्र व शिवकुमार सिंह ने वर्ष 1893 में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की। आधुनिक ङ्क्षहदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई बाबू राधाकृष्ण दास को अध्यक्ष बनाया गया। उस समय इसकी बैठकें सप्तसागर के सभा घुड़साल में हुआ करती थीं। कुछ ही समय में संस्था के स्वतंत्र भवन ने आकार लिया और पहले ही साल में महामहोपाध्याय पं. सुधाकर द्विवेदी, इब्राहिम जार्ज ग्रियर्सन, अंबिकादत्त व्यास, चौधरी प्रेमघन जैसे ख्यात विद्वान इससे जुड़ गए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, रामचंद्र वर्मा, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, पीतांबर दत्त बड़थ्वाल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, त्रिलोचन शास्त्री, नंद दुलारे बाजपेयी, सुधाकर पांडेय, मनु शर्मा जैसे साहित्यकारों की यह कर्मभूमि रही है। आज भी यहां पचासों बड़ी-बड़ी आलमारियों में दो लाख से अधिक ग्रंथ संरक्षित है। यहां 12 खंडों में प्रकाशित 'शब्द सागर, हिंदी विश्वकोष और 16 खंडों में प्रकाशित वृहद इतिहास का ऐतिहासिक महत्व है। साहित्यकारों की आत्मा आज भी नागरी प्रचारिणी सभा में बसती है। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार नागरी प्रचारिणी सभा में भारतेंदु अकादमी खोलने का विचार कर रही है। वहीं केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय इसमें सहेजी गई दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षित करेगा। इसे इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार आर्ट की विशेष परियोजना के तहत सजाने-संवारने की भी तैयारी है। कुल मिलाकर आने वाले समय में नागरी प्रचारिणी सभा काशी का वैभव लौटने की संभावना बनती दिख रही है।