विश्व आदिवासी दिवस : एक कुनबे में रहने वाला समाज, दूसरों की भी बन रहा आवाज
समाज की मुख्यधारा से दूर रहने वाला हिस्सा देश के अहम मुख्यधारा से जुड़कर देश निर्माण में लगा है।
अरुण मिश्रा, सोनभद्र : समाज की मुख्यधारा से दूर रहने वाला हिस्सा देश के अहम मुख्यधारा से जुड़कर नया इतिहास रचने लगा है। अपनी परंपराओं तक में सिमटे रहने वाला आदिवासी समाज के युवा अब देश-विदेश में हो रहे बदलाव का अपना दृष्टिकोण बताने लगे हैं। देश की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य व समाज में अपनी भूमिका निभाकर आदिवासी युवाओं ने यह साबित कर दिया है कि सैकड़ों-हजारों सालों से एक कुनबे में रहने वाला यह समाज दूसरे के लिए राह दिखाने को तैयार है।
इस पौध को वृक्ष बनाने में जिसने अपनी अहम भूमिका निभाई है वह बभनी विकास खंड के कारीडाड़ स्थित सेवाकुंज आश्रम के प्रभारी आनंदजी हैं। उन्होंने कई दशकों तक अपना समय इन्हीं आदिवासी समाज के बीच दिया है। अपने अनुभव के आधार से निकले परिणाम से उन्होंने बताया कि आदिवासी समाज में ऊर्जा अथाह है, बस जरूरत उसे सही दिशा देने की है। इस समाज के साथ बहुत लंबे समय तक मुख्यधारा से नहीं जोड़ने की जरूरत ने बहुत पीछे तक ढकेलने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन, सेवाकुंड आश्रम के प्रयास की बदौलत उन्हीं आदिवासी समाज के युवा अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने लगे हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो दो दिन पूर्व ही दो युवा पालीटेक्निक कालेज मीरजापुर व नौसेना में कोस्टगार्ड में नौकरी प्राप्त किये हैं। इसके साथ ही बहुत ऐसे युवा हैं जो शिक्षा के साथ सामाजिक सरोकार से उनका ताल्लुक गहरा है। साथ ही खेल के क्षेत्र में खासकर तीरंदाजी में उनका कोई तोड़ नहीं है।
दरअसल, जनपद का बहुत बड़ा हिस्सा आदिवासी समाज का है। यहा कुल क्षेत्रफल का तीन चौथाई हिस्सा पर्वतों व वनों से आच्छादित है। इस दुर्गम इलाकों में जीवन-यापन करने वाला आदिवासी समाज हजारों सालों से ही एक सीमा में जिंदा रहा है। सेवाकुंज आश्रम इन्हीं आदिवासी समाज के बीच बेहतर काम करके उनके जीवन में रंग भर रहा है। 30 सालों में बदल जाएगी तस्वीर : आश्रम के प्रभारी आनंदजी ने बताया कि इसी रफ्तार से काम होता रहा तो इस समाज को मुख्यधारा से जुड़ने में अब 25 से 30 वर्ष लगेंगे। जिस गति से युवाओं में चेतना जगी है उससे स्वत:स्फूर्त की प्रवृत्ति पनपने लगी है। इसकी संख्या जब अधिक होगी तो देश की मुख्यधारा से जुड़ने में उतने ही कम समय लगेंगे। जरूरत के मुताबिक सरकारी प्रयास कम : आदिवासी समाज के लिए सरकार की योजनाएं संचालित तो हैं लेकिन, बीच का तंत्र उसे खोखला करने में लगा है। चूंकि यह समाज बढ़ा-लिखा नहीं है। उसकी जरूरतों को आवाज देने वाला उसी के परिवार में कोई नहीं है इससे योजनाओं का नंगा खेल यहा होना आम है। परंपराओं को सहेजकर विकास पर जोर : आनंदजी ने बताया कि आदिवासी समाज का अपनी कुछ परम्पराएं हैं। उसी में अपना जीवन जीता है। इसमें मुख्य रूप से उनके गीत, नृत्य, खान-पान, परिधान, पूजा-पद्धति व दूसरे संस्कार शामिल हैं। उन्होंने बताया कि हमारा पूरा प्रयास है कि उनके ये परम्परागत धरोहर को बचाया जाए। उसको विकसित किया जाए। साथ ही उसके विश्व परिदृश्य पर लाने का प्रयास किया जा रहा है।