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पूर्वांचल में घने कोहरे ने सूर्यग्रहण देखने पर लगाया 'ग्रहण', नदी तट पर स्‍नान दान की परंपरा का निर्वहन

पूर्वांचल में कोहरे की चादर ने लोगों के सूर्यग्रहण देखने पर भी आखिरकार ग्रहण लगा दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 26 Dec 2019 11:48 AM (IST)Updated: Thu, 26 Dec 2019 12:52 PM (IST)
पूर्वांचल में घने कोहरे ने सूर्यग्रहण देखने पर लगाया 'ग्रहण', नदी तट पर स्‍नान दान की परंपरा का निर्वहन
पूर्वांचल में घने कोहरे ने सूर्यग्रहण देखने पर लगाया 'ग्रहण', नदी तट पर स्‍नान दान की परंपरा का निर्वहन

वाराणसी, जेएनएन। पूर्वांचल में कोहरे की चादर ने लोगों के सूर्यग्रहण देखने पर भी आखिरकार ग्रहण लगा दिया। काफी कोशिशों के बाद भी इस वर्ष के अंतिम खगोलीय घटनाक्रम को देखने के लिए तैयारियां लोगों की धरी की धरी रह गईं। गुरुवार को सुबह से ही समूचे पूर्वांचल में धुंध और घने कोहरे की तनी चादर पूरे दिन आसमान में छायी रही जिससें वलयाकार अंगूठी के आकार का ग्रहणकाल में लाल सूर्य देखने की लोगों की उम्‍मीद पूरी नहीं हो सकी। हालांकि ग्रहण काल पूर्ण होने के बाद काशी विश्‍वनाथ सहित तमाम मंदिरों के कपाट खुलते ही दर्शन पूजन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ा और आस्‍थावानों ने दान पुण्‍य कर ईश्‍वर की आराधना की।

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इस दौरान बीएचयू के अतिरिक्‍त अन्‍य जगहों पर भी वैज्ञानिकों ने अपने यंत्रों के सहारे सूर्यग्रहण देखने के लिए कोशिश की मगर कोई भी जतन काम नहीं आया। लोग छतों पर एक्स-रे फ़िल्म और रंगीन चश्मा की सहायता से सूर्यग्रहण देखने का प्रयास कर रहे थे। ग्रहणकाल के पूर्व लगने वाले सूतक की वजह से देवालयों के बंद किये गए, दरवाजे ग्रासकाल के समाप्त होने पर खोल दिये गए। इसके बाद दर्शनार्थी मंदिरों में दर्शन पूजन और पुण्‍य की कामना के लिए आए और अनुष्‍ठान भी किया।

मंदिरों के कपाट खुलने के साथ ही भजन पूजन और कीर्तन के साथ भव्य आरती कर देवालयों में श्रृंगार और भोग लगाया गया। ज्योतिषाचार्यों के अनुसा उत्तर भारत में खंडग्रास और दक्षिण भारत में कंकणाकृति जैसा दिखने वाला सूर्यग्रहण मौसम और प्राकृतिक उथल पुथल का गवाह बनेगा। ग्रहणकाल बीत जाने के बाद नदी या सरोवर स्नान के बाद दान करना महत्वपूर्ण होता है। इसी मान्‍यता के साथ नदियों के किनारे लोगों ने अनुष्‍ठान किए और स्‍नान के साथ गरीबाें को धन वस्‍त्र आदि दान कर पुण्‍य की कामना की।  

सूतक के साथ बंद हो गए थे देवालयों के पट

वर्ष 2019 का अंतिम व पांचवां ग्रहण सूर्य ग्रहण पौष अमावस्या पर गुरुवार की सुबह 8.20 बजे लग रहा है। देश के अधिकांश क्षेत्रों में खंड सूर्य ग्रहण व काशी समेत दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में यह कंकड़ाकृत रूप में दिखाई देगा। सूर्य के मूल नक्षत्र व धनु राशि पर ग्रहण का स्पर्श सुबह 8.20 बजे, मध्य 9.40 बजे और मोक्ष 11.13 बजे होगा। ग्रहण का संपूर्ण काल 2.53 घंटा और ग्रासमान 17.01 होगा। इससे 12 घंटे पहले बुधवार रात 8.20 बजे सूतक (वेध) लग गया। इसके साथ संकट मोचन व दुर्गाकुंड समेत ज्यादातर देवालयों के पट बंद हो गए तो श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा रात की शृंगार भोग आरती में फलाहार अर्पित किया गया। बाबा दरबार के पट सुबह छह बजे से दोपहर 11.25 बजे तक बंद रहा, इसके बाद मंदिर के कपाट खुले तो पूजन अर्चन का दौर शुरू हुआ। इसके अलावा सूतक काल के साथ मंदिरों व घाटों पर जप-तप के लिए श्रद्धालुओं की जुटान भी हो गई थी।

 

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार ब्रह्मांड में ऊर्जा के प्रमुख स्रोत भगवान सूर्यदेव का धर्म व ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है। ग्रहराज सूर्य काल गणना के मुख्य घटक तो ज्योतिष की मूल धुरी हैैं। इन पर राहु का ग्रसन होने से निकलने वाली ऊर्जा हानिप्रद होती है। इस कारण ग्रहण को नंगी आंखों से देखने की मनाही है। धर्म शास्त्र में कहा गया है सूर्य ग्रहतु नास्नियात् पूर्वं याम चतुष्टयम। चंद्रग्रहेतु यामस्त्रिन बाल, वृद्धा, तुरैविना।। अर्थात् सूर्य ग्रहण में 12 घंटे व चंद्र ग्रहण में नौ घंटे पहले सूतक लग जाता है। इसमें बाल, वृद्ध व रोगी को छोड़ अन्य के लिए भोजन निषिद्ध है। खास यह कि जहां ग्रहण दृश्यमान होता है, उसका प्रभाव भी वहां ही होता है। इस नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए स्नान-दान व जप-तप का महत्व शास्त्रों में बताया गया है। 

वैज्ञानिक पहलू : आइआइटी बीएचयू के खगोल विज्ञानी डा. अभिषेक श्रीवास्तव के अनुसार पृथ्वी व सूर्य के बीच जब चंद्रमा आ जाता है तो उस समय सूर्यग्रहण होता है। इस परिस्थिति में सूर्य पूरी तरह से ढक जाता हैं लेकिन बाहर की ओर एक रिंगनुमा आकृति बन जाती है जिसे कोरोना मंडल कहा जाता है। इस मंडल से निकलने वाली किरणों की तीव्रता अधिक होती है। इसे नंगी आखों से देखना नुकसानदायक हो सकता है। इससे बचने के लिए चश्मा लगाना जरूरी होता है। कोरोना मंडल में तापमान अधिक होने से हमारे वाह्य वातावरण पर भी प्रभाव पड़ता है। 


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