आज हरि प्रबोधिनी एकादशी, योग निद्रा से जागे श्रीहरि, सुख-सौभाग्य यश का वरदान
इस विशेष मौके को श्रद्धालुजन हरिप्रबोधिनी एकादशी के रूप में मनाएंगे हालांकि विवाह व द्विरागमन समेत मंगल कार्यों को लेकर उनके अरमान फिलहाल धरे रह जाएंगे।
वाराणसी [प्रमोद यादव] । क्षीर सागर में आषाढ़ शुक्ल एकादशी से योग निद्रारत श्रीहरि का कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी 19 नवंबर को जागरण होगा। इस खास मौके को श्रद्धालुजन हरिप्रबोधिनी एकादशी के रूप में मनाएंगे पर विवाह व द्विरागमन समेत मंगल कार्यों को लेकर उनके अरमान फिलहाल धरे रह जाएंगे। गुरु अस्त होने से इसके निमित्त अभी 15 दिसंबर तक इंतजार करना होगा। सनातन धर्म में आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चार मास चातुर्मास के नाम से जाना जाता है।
इसका सोमवार को हरिप्रबोधिनी एकादशी के साथ समापन होगा जाएगा। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार हरि प्रबोधिनी एकादशी पर प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर पालनहार भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत रख कर रात में शयनरत श्रीहरि को जगाने के लिए विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु कथा, पुराण आदि का श्रवण व भजन, गायन, वादन, घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़ा व वीणा आदि बजा कर प्रभु श्रीहरि को जगाना चाहिए।
रात में पंचोपचार व षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से श्रीहरि प्रसन्न होकर व्रतियों को सुख-सौभाग्य यश का वरदान देते हैं। इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है। कार्तिक शुक्ल एकादशी से पांच दिनी यानी कार्तिक पूर्णिमा तक विष्णु पंचक व्रत का विधान है।