Make Small Strong : डिजिटल तकनीक के प्लेटफार्म पर दौड़ पड़ी किराना कारोबार की गाड़ी
जालान्स रिटेल के मैनेजिंग डायरेक्टर भगीरथ जालान ने भी अचानक आई महामारी की चुनौतियों का डटकर सामना करते हुए अपने किराना सेक्टर के जालान्स सुपर मार्केट के कारोबार को कमजोर नहीं होने दिया। तकनीक के नित नए उपयोग व प्रयोग के माध्यम से कारोबार को व्यवस्थित रखा।
वाराणसी, जेएनएन। सोच सकारात्मक हो और हर समय बेहतर करने का जुनून तो विपरीत परिस्थितियों को भी अवसर के रूप में बदल सकते हैं। वैश्विक महामारी कोरोना के दौर में कुछ इस तरह ही तकनीक के भरपूर ने रास्ता बनाया। पहले जहां वाट्सएप का मित्रों से हाय-हेलो में अधिकतर उपयोग होता था, वहीं लाकडाउन अवधि में तमाम कारोबारियों- व्यवसायियों ने इसे बिजनेस प्लेटफार्म बना लिया। सोच व तकनीक के इस प्लेटफार्म पर उनके कारोबार की गाड़ी भी दौड़ पड़ी। जालान्स रिटेल के मैनेजिंग डायरेक्टर भगीरथ जालान ने भी अचानक आई महामारी की चुनौतियों का डटकर सामना करते हुए अपने किराना सेक्टर के जालान्स सुपर मार्केट के कारोबार को कमजोर नहीं होने दिया। तकनीक के नित नए उपयोग व प्रयोग के माध्यम से कारोबार को उन्होंने व्यवस्थित रखा और बिक्री भी आगे बढ़ाई। आज भी उनके सुपर मार्केट में पूर्व की भांति दर्जनों कर्मचारी काम कर रहे हैं और रोजगार भी पूरी रफ्तार से चल रहा है।
भगीरथ बताते हैं कि कोरोना काल में भले पूरा बाजार बंद रहा, लेकिन खाद्य सामग्री से संबंधित सुपर मार्केट कुछ दिनों को छोड़ दिया जाए तो निरंतर खुलता रहा। इस दौरान चुनौती थी कि ग्राहकों को कैसे बताया जाए कि दुकान कब और कितने समय के लिए खुल रही है। इस घड़ी में गूगल, वाट्सएप, फेसबुक सहित अन्य डिजिटल प्लेटफार्म काम आए। कारण यह कि शाप खोलने के साथ ही कर्मचारियों और ग्राहकों को यहां तक पहुंचने की भी चुनौती थी। ऐसे में वाट्सएप के माध्यम से ग्राहकों से आर्डर लेने का प्रबंध किया गया। इसका प्रिंट निकाल कर सामान पैक कर दिया जाता। बिल बनाने से पहले फोन पर संपर्क भी किया जाता ताकि कुछ जोडऩा-घटाना हो तो वे बता दें। इससे ग्राहक को भी लगता रहा कि जालान्स उनसे सीधे संपर्क में है।
भगीरथ बताते हैं कि इसी दौरान मिले सुझाव के आधार पर वेबसाइट तैयार की गई। इसे जुलाई में व्यावहारिक तौर पर सक्रिय किया गया। इससे आनलाइन भी आर्डर आने लगे। वैसे वेबसाइट की आधिकारिक रूप से लांचिंग नवरात्र में की जाएगी। इसके फ्रंट पेज पर ही नई योजनाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध है। वेबसाइट के साथ ही ई-मेल पर भी लोगों ने आर्डर दिए। ओम्नी चैनल के माध्यम से मार्केट को और बढ़ावा मिला। कोरोना काल में हर सेक्टर के लिए अलग-अलग वाट्सएप ब्राडकास्ट बनाया गया। इसके माध्यम से ग्राहकों के पास हर सूचनाएं भेजी जा रही थीं। स्कीम व आफर की जानकारी भी साझा की जाती रही। इससे ग्राहक व दुकानदार के बीच एक कड़ी बनी जो कोरोना काल में भी मजबूत रही।
वाराणसी में तीन और जौनपुर, आजमगढ़ व प्रयागराज में भी जालान्स रिटेल हैं। कोरोना काल के दौरान मैरिज लान से संपर्क कर उनसे शादी समारोह की भी सूची ली गई और लोगों को फोन कर आफर्स की जानकारी दी जाती है। कोरोना काल में ग्राहकों को आनलाइन पहल बहुत पसंद आई। कारण यह कि इसमें उनके घर तक तय समय में सामान पहुंचता रहा।
भगीरथ बताते हैं कि कोरोना काल में तमाम सामाजिक संगठनों ने जरूरतमंदों में खाद्य सामग्री वितरित की। उन्हें इन सामान के लिए इधर-उधर भटकने से बचाने के किट तैयार की गई। संगठन वाट्सएप पर आर्डर देते रहे और उनके मन मुताबिक खाद्य सामग्री का पैकेट तैयार किया जाता रहा। तकनीक के बल पर ग्राहकों के साथ विश्वास भी बना रहा। अगर पहले से ही तकनीक की जानकारी नहीं रहती तो इस कोरोना काल में कारोबार रूक गया होता। हालांकि इस दौरान सौंदर्य प्रसाधन सामग्री व अन्य सामानों की बिक्री काफी प्रभावित हुई लेकिन आटा-चावल, दाल, तेल-घी, मसाला, चीनी सहित सभी खाद्य सामग्री की बिक्री निरंतर चलती रही।
मीटिंग का ट्रेंड बदला
भगीरथ बताते हैं कि जालान्स रिटेल की शुरुआत 2005 में ही हो गई थी। सुपर मार्केट 2014 में शुरू हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे छह आउटलेट हो गए। पहले हर जगह सप्ताह में एक बार जाकर मीटिंग की जाती थी, लेकिन लाकाडाउन में यह संभव नहीं था। इसमें भी तकनीक काम आई और वीडियो काल से चाहे जब मीटिंग कर ली जाती है। इससे समय-श्रम व धन तीनों की बचत भी है। उन्होंने बताया कि आपदा काल में सीख मिली और अनुभव का द्वार खुला। अब तकनीक का आगे भी उपयोग करते रहेंगे।