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सरकार नहीं रोक पाई श्रमिकों को, वाराणसी से अस्सी फीसद लौट गए बड़े शहर की ओर

कोविड-19 के दौर में मुंबई दिल्ली गुजराज समेत अन्य राज्यों से घर लौटे श्रमिकों को गांव में रोकने की कोशिश बहुत हद तक सफल नहीं रही। सरकार ने रोजगार देने के बहुत से वादे किए लेकिन जमीन पर बहुत हद कुछ खास नहीं दिखा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 11:00 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 09:35 AM (IST)
सरकार नहीं रोक पाई श्रमिकों को, वाराणसी से अस्सी फीसद लौट गए बड़े शहर की ओर
अब श्रमिक गांव छोड़ शहर की ओर पलायन करने लगे हैं। गांव में इनकी संख्या बहुत कम रह गई है।

वाराणसी, जेएनएन। कोविड-19 के दौर में मुंबई, दिल्ली, गुजराज समेत अन्य राज्यों से घर लौटे श्रमिकों को गांव में रोकने की कोशिश बहुत हद तक सफल नहीं रही। सरकार ने रोजगार देने के बहुत से वादे किए लेकिन जमीन पर बहुत हद कुछ खास नहीं दिखा। अब श्रमिक गांव छोड़ शहर की ओर पलायन करने लगे हैं। गांव में इनकी संख्या बहुत कम रह गई है। मनरेगा में आज की तारीख में सिर्फ 16 सौ के करीब मजदूर काम कर रहे हैं। जबकि मई-जून के माह में 21 हजार के आसपास मजदूरों ने कार्य किया। रही बात स्थाई नौकरी की तो उसमें भी बहुत हद तक कामयाबी नहीं मिली।

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क्षेत्रीय सेवायोजन कार्यालय ने कुशल कामगारों को बहुत हद तक निखारा लेकिन जून से लगायत सितंबर तक नौकरी महज पांच सौ श्रमिकों को ही उपलब्ध करा पाया। रोजगार मेला में श्रमिकों की जुटान हुई लेकिन कंपनियों के मानक पर श्रमिक नहीं आए। गांवों में रोजगार के बाबत डीआरडीए समेत विभिन्न  विभागों की ओर से  गठित समूहों के साथ श्रमिकों को बड़े पैमाने पर जोड़ा गया। खासकर महिलाओं को। महिलाएं सिलाई, कताई, मोमबत्ती, अगरबत्ती समेत अन्य निर्माण कार्य में जुटी हैं। लेकिन उन्हें बाजार नहीं मिलने से अब अपने कार्य से मोहभंग होने लगा है। अब यह भी शहर पलायन की राह पकडऩे लगी हैं।

लॉकडाउन के दौरान अप्रैल व मई में यहां विभिन्न शहरों से 53, 000 श्रमिक आए। इसमें 16 हजार नाबालिग थे। 22 हजार कुशल श्रमिक थे वहीं 14 हजार अकुशल श्रमिकों की श्रेणी में रहे। मनरेगा में 21 हजार से अधिक  को पंजीकरण किया गया। एक दिन में अधिकतम 9700 से अधिक लोगों को काम दिया गया। अब इनकी संख्या घटकर इस वक्त 1600 के आसपास रह गई है। मनरेगा में 100 दिन से अधिक काम देने की मनाही है। इधर, शासन के निर्देश के क्रम में राशन की दुकानों से चार माह निश्शुल्क खाद्यान्न देने के बाद अब बंद कर दिया गया है। पहली सितम्बर से ही श्रमिकों को जारी अस्थाई राशन कार्ड निरस्त कर दिए गए हैं। गांव में रोजी रोटी के जब लाले पडऩे लगे तो यह पुन: शहर की ओर निकलने लगे हैं। कोविड का प्रकोप अभी जस का तस बना हुआ है लेकिन आवागमन का साधन आसानी से उपल्बध होने व बहुतायत कंपनियों की ओर से पुन: बुलाने पर अब यह गांव छोडऩे लगे हैं। हालांकि अधिकारी इस मामले में कुछ भी बोलने से कन्नी काटते रहे।

गांव में स्थायी रोजगार उपलब्ध नहीं होने के कारण गांव छोड़कर शहर चले गए

हरहुआ ब्लाक के पुआरीकला व शिवरामपुर में सर्वाधिक श्रमिक मुंबई, दिल्ली समेत अन्य शहरों से आए। मई जून में तीन सौ के करीब श्रमिक शिवरामपुर में आए थे। गांव में स्थायी रोजगार उपलब्ध नहीं होने के कारण अब तक नब्बे फीसद के करीब  गांव छोड़कर शहर चले गए हैं। शेष जाने की तैयारी में हैं।

-मोहन सिंह चौहान, ग्राम प्रधान शिपरामपुर


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