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George Sydney Arundel Death Anniversary : ब्रिटिश शिक्षक अरुंडेल ने हमेशा काशी के क्रांतिकारियों को बचाया गिरफ्तारी से

कैंब्रिज से अपनी पढ़ाई पूरी कर सेंट्रल हिंदू स्कूल में प्रधानाचार्य और इतिहास के शिक्षक जॉर्ज सिडनी अरुंडेल ने हमेंशा बनारस के युवा क्रांतिकारियों का सहयोग किया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 11:10 AM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 01:07 PM (IST)
George Sydney Arundel Death Anniversary : ब्रिटिश शिक्षक अरुंडेल ने हमेशा काशी के क्रांतिकारियों को बचाया गिरफ्तारी से
George Sydney Arundel Death Anniversary : ब्रिटिश शिक्षक अरुंडेल ने हमेशा काशी के क्रांतिकारियों को बचाया गिरफ्तारी से

वाराणसी, जेएनएन। कैंब्रिज से अपनी पढ़ाई पूरी कर सेंट्रल हिंदू स्कूल में प्रधानाचार्य और इतिहास के शिक्षक जॉर्ज सिडनी अरुंडेल ने हमेंशा बनारस के युवा क्रांतिकारियों का सहयोग किया और कभी अंग्रेजी फौज को सीएचएस की बाउंड्री पार नहीं करने दी। ब्रिटेन में एक दिसंबर को जन्में जॉर्ज सिडनी अरुंडेल कैंब्रिज से मास्टर डिग्री की पढ़ाई करते वक्त भारत के एनी बेसेंट के बारे में और उनके भाषणों को सुन रखा था मन ही मन उनकी भावना ङ्क्षहदोस्तान आने की होने लगी। वह अवसर भी आया जब उनकी पढ़ाई पूरी हो गई और अरुंडेल अपनी मौसी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, जिसमें थियोसॉफी संस्था से जुड़कर काम करने के बनारस चलने की बात थी। एनी बेसेंट उस दौरान बनारस में सेंट्रल हिंदू स्कूल की नींव रख चुकी थी, जो कि बीएचयू की स्थापना का अहम पड़ाव बना। लीलाधर शर्मा की पुस्तक भारतीय चरित कोष के अनुसार 25 साल की आयु में अरुंडेल 1902-03 में अपनी मौसी के साथ बनारस आ गए और सेंट्रल हिंदू स्कूल में ही इतिहास पढ़ाना शुरू कर दिया। वह धीरे-धीरे दस सालों में छात्रों के काफी पसंदीदा प्रोफेसर बन गए जिसके चलते एनी बेसेंट ने उन्हें प्रिंसिपल बना दिया। इस दौरान उनके कई शिष्य बने लेकिन उनमें से सबसे खास थे महान दर्शनशास्त्री जे कृष्ण मूर्ति।

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बनारस में रहते हुआ भारतीयकरण

जॉर्ज अरुंडेल ने देखा कि इस कॉलेज में ज्यादातर छात्र क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं, लेकिन एक ब्रिटिश नागरिक होने के नाते भी कभी छात्रों को आंदोलन में भाग लेने से रोका नहीं, बल्कि हर आंदोलन में उनका सहयोग ही किया। एक मर्तबे उनके प्रधानाचार्य रहते पुलिस कैंपस में घुसकर छात्रों को गिरफ्तार करना चाही मगर मुख्य द्वार उन्होंने बंद करवा दिए। अंग्रेजी फौज ने ऐसे कई प्रयास किए लेकिन कभी उन्हें परिसर में घुसने नहीं दिया। बनारस में रहते-रहते उनका पूरा भारतीयकरण हो गया था और होमरूल लीग आंदोलन जब 1917 में शुरू हुआ तो वे इसमें सक्रिय रूप से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिए, जिसकी वजह से इन्हें काफी समय तक जेल में भी रहना पड़ा। कालांतर में वह मद्रास चले गए जहां पर 12 अगस्त, 1912 को  निधन होने के बाद मद्रास के अडयार में ही एनी बेसेंट के बगल में समाधि बना दी गई।


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