विश्व गौरैया दिवस : काशी के युवा पांच राज्यों में संजो रहे नन्हीं गौरैया का व्यापक अस्तित्व
गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों को छांटने के लिए युवाओं ने सिर्फ विवंडर फाउंडेशन की नींव रखी बल्कि इसके माध्यम से पांच राज्यों में जन-जागरूकता भी चला रहे हैं।
वाराणसी [मुहम्मद रईस]। घरों को चहकाने वाली गौरैया अब गुजरे जमाने की बात नहीं होगी। इस खूबसूरत नन्हें परिंदे का इंसानी घरों में पहले की तरह ही बसेरा होगा। इनकी मधुर आवाज सुनकर ही बच्चे बड़े होंगे। यह महज लफ्फाजी नहीं, काशी के गोपाल कुमार व धीरज विश्वकर्मा का संकल्प है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों को छांटने के लिए युवाओं ने सिर्फ विवंडर फाउंडेशन की नींव रखी, बल्कि इसके माध्यम से पांच राज्यों में जन- जागरूकता भी चला रहे हैं।
गौरैया की चह-चहाहट घर-आंगन में वापस लाने के क्रम में हम प्रतिवर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाकर साझा प्रयास का संकल्प दोहराते हैं। नन्हें परिंदों को दोबारा घर-आंगन में चहकते देखने की चाहत में ये युवा इन्हें संरक्षित करने की मुहीम में जी-जान से जुट गए हैं। लोगों को इसके संरक्षण के प्रति संजीदा बनाना, पर्यावरण संरक्षण व पौधरोपण के प्रति जागरूक करना, कृत्रिम घोंसले बनाकर घरों व बाग-बगीचों में लगवाना इनकी रोज की आदत बन चुकी है।
इस तरह हुई शुरूआत
विवंडर फाउंडेशन के अध्यक्ष गोपाल कुमार व धीरज विश्वकर्मा ने पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी ट्रैवल एजेंसी शुरू की। वर्ष 2016 में सामाजिक कार्यों से जुडऩे की ललक पैदा हुई तो दोस्तों संग विलुप्त हो रही गौरैया के संरक्षण का काम करने का निर्णय लिया। साथ देने वाले बढ़े तो 14 दिसंबर 2017 को विवंडर फाउंडेशन के नाम से अपने एनजीओ का पंजीयन कराया। गौरैया संरक्षण का विचार लेकर जब गोपाल बीएचयू की तत्कालीन चीफ प्राक्टर प्रो. रॉयना सिंह के पास गए तो उनका का भी पूरा सहयोग मिला। बीएचयू के पार्क, भवनों, हास्टलों, कार्यालयों आदि में भी प्रो. रॉयना ने मानव निर्मित घोंसले लगवाए।
पेडों पर उलटे लटके बया के घोंसले भी गौरैया के क्षेत्र में सक्रियता के प्रमाण माने जाते हैं। दरअसल बया भी गौरैया की ही एक प्रजाति मानी जाती है।
अब तक लगा चुके चार हजार घोंसले
गोपाल के मुताबिक बनारस, सोनभद्र, गाजीपुर, चंदौली के साथ ही उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल व दिल्ली में अभियान चलाया जा रहा है। 200 से अधिक सदस्यों के सहयोग से घर-आंगन, पार्क, कार्यालय आदि में 4000 से अधिक मानव निर्मित घोंसले लगाने के साथ ही अब तक 7000 से अधिक पौधे रोपे जा चुके हैं। प्लाइवुड या गत्ते के बने घोंसले बनाकर लगवाने के लिए सभी सदस्य आर्थिक सहयोग करते हैं।