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पीढ‍़़‍ियों की कला को मिली पहचान, काशी की परंपरा का अब जीआई के जरिए विश्‍व रख रहा मान

काशी की सदियोंं पुरानी हस्‍तशिल्‍प की परंपराओं काे जीवित रखने के लिए पीढ़ियों की परंपरा को संस्‍कृति विभाग ने भी सराहा है और इस पर छोटा वीडियो जारी कर काशी के जीआई उत्‍पाद के बारे में जानकारी साझा की है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2020 02:25 PM (IST)Updated: Fri, 20 Nov 2020 02:25 PM (IST)
पीढ‍़़‍ियों की कला को मिली पहचान, काशी की परंपरा का अब जीआई के जरिए विश्‍व रख रहा मान
वीडियो जारी कर काशी के जीआई उत्‍पाद के बारे में मंत्रालय ने जानकारी साझा की है।

वाराणसी, जेएनएन। अपनी शिल्‍प कौशल और कला के परंपराओं को काशी ने बखूबी सहेज और संजो रखा है। काशी की सदियोंं पुरानी हस्‍तशिल्‍प की परंपराओं काे जीवित रखने के लिए पीढ़ियों की परंपरा को संस्‍कृति विभाग ने भी सराहा है और इस पर छोटा वीडियो जारी कर काशी के जीआई उत्‍पाद के बारे में जानकारी साझा की है।  

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ग्‍‍‍‍‍लास बीड की इस अनोखी कलाकारी को विभाग की ओर से जारी कर कारीगराें की मेहनत को सलाम किया है। इस बाबत शुक्रवार को मंत्रालय के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से जानकारी साझा करने के साथ ही इस अनोखी कला के बारे में लिखा है कि -इस नाजुक शिल्प कौशल को समर्पित ग्‍लास बीड कारीगरों की पीढ़ियों के माध्यम से कांच की मोती की विशेषता आज भी बरकरार है। इस बाबत बताया गया है कि ग्‍लास बीड को भारतीय जीआई उत्पाद बनाने के लिए प्रयास के साथ ही कारीगरों के मान को लेकर भी उत्‍साह बढ़ाया गया है।

 

ग्‍लास बीड सर्वाधिक आकर्षक

बनारस में बनने वाले कांच के हस्तनिर्मित मोतियों का आकर्षण सब पर भारी है। देश दुनिया में इसके मुरीद लोगाें की कमी नहीं हैं। यहां बने मोतियों का निर्यात दुनिया के लगभग 0 देशों में किया जाता है। वाराणसी के बड़ा लालपुर स्थित पं. दीनदयाल उपाध्याय हस्तकला संकुल में इन मोतियों की चमक समय के साथ और भी निखर पा रही है। जीआई में पंजीकृत इस शिल्प को हस्तकला संकुल में प्रदर्शित किया गया है। इस हस्तनिर्मित कांच की मोतियों के कारोबार से बनारस के 10 हजार परिवार जुड़े हुए हैं। इसमें ग्लास बीड्स को मोती का स्वरूप देकर फैंसी माला के साथ सजावटी सामान भी इससे तैयार किए जाते हैं। परंपरागत ढंग से ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर महिलाओं द्वारा किया जाता है।  सजावटी सामानों में ब्रेसलेट, हार, पर्दे और दीवारों में लगाने वाले बीड्स आदि काफी डिमांड में हैं।

जानिए क्या है जीआई टैग

वाराणसी के ग्‍लास बीड को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) या जीआई पंजीकरण मिला हुआ है। इसका इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशेषता और प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन इसमें निहित होता है। जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) में बौद्धिक संपदा अधिकारों के तौर पर शामिल किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका विनियमन विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी समझौते के तहत होता है। राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ। 


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