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Lockdown ने गंगाजल को बना दिया और शुद्ध, 50 फीसद तक रासायनिक कचरे से मुक्त हो गईं गंगा

गंगाजल को बना दिया और शुद्ध काफी हद तक रासायनिक कचरे से मुक्त हो गयीं गंगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 04 Apr 2020 10:54 PM (IST)Updated: Sun, 05 Apr 2020 10:33 AM (IST)
Lockdown ने गंगाजल को बना दिया और शुद्ध, 50 फीसद तक रासायनिक कचरे से मुक्त हो गईं गंगा
Lockdown ने गंगाजल को बना दिया और शुद्ध, 50 फीसद तक रासायनिक कचरे से मुक्त हो गईं गंगा

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। पूरे देश में लॉकडाउन की वजह से लोगों की जिंदगी थम सी गई है तो वहीं इसकी एक दूसरा पक्ष भी है। वाराणसी में लॉकडाउन की वजह से गंगा में रासायनिक कचरा नहीं जाने से वह लगभग 40-50 फीसद तक स्वतः ही साफ हो गई हैं।विशेषज्ञों के अनुसार कानपुर से लेकर वाराणसी तक गंगा में सर्वाधिक रसायन उद्योगों का जाता है। लगभग पखवारा भर बीतने को है और कारखानों की बंदी का लाभ गंगा की अविरल धारा को मिला है।

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दरअसल गंगा में रासायनिक कचरा उद्योगों का सीधे गिरता रहा है। अब ये उद्योग बंद होने से गंगा नदी में उद्योगों का वेस्ट केमिकल नही जा रहा है जिसकी वजह से पूर्व की अपेक्षा गंगा अधिक साफ हो गई हैं। यह काफी शुभ संकेत भी पर्यावरणीय दृष्टि से माना जा रहा है। इस बात की जानकारी दैनिक जागरण से बात करते हुए आईआईटी बीएचयू के केमिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. पीके मिश्रा ने दी है। उन्होंने बताया कि गंगा में दस फीसद उद्योगों का रसायन सीधे गिरता है जो इनदिनों लॉक डाउन की वजह से बंद है। इसका सीधा असर गंगाजल की शुद्धता पर पड़ा है।

उद्गम से लेकर मुहाने तक गंगा का प्रवाह अब पावन हो चुका है। गंगा के सफाई का कार्य जो कि पिछले कई अरसों से नहीं हो पा रहा था, वह इस लॉक डाउन में दस दिन के भीतर ही हो गया। लॉकडाउन की वजह से गंगा में रासायनिक कचरा न मिलने, मल-जल व उर्वरकों वाले जल के प्रवाह रुकने से गंगा लगभग 40-50 फीसद तक स्वतः ही साफ हो गई हैं।

इस बात की जानकारी दैनिक जागरण से बात करते हुए आईआईटी बीएचयू के केमिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. पीके मिश्रा ने दी है। उन्होंने बताया कि गंगा में दस फीसदी तक प्रदूषण के लिए जिम्मेदार फैक्ट्रियां अब उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक बंद हैं। इससे गंगा में बीओडी (बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) का लोड तीस प्रतिशत कम हो गया।  बता दें कि पहले बीओडी की मात्रा 5-6 मिलीग्राम प्रति लीटर रहती थी जो अब बताया जा रहा है कि यह 2 से तीन मिलीग्राम प्रति लीटर तक आ गई है।

लोगों द्वारा गंगा में फैलाये जाने वाले सीधे प्रदूषण जैसे मल प्रवाह, स्नान, फूल-माला इत्यादि नहीं चढ़ाए जा रहे हैं। वहीं ग्राउंड वाटर भी अब जो गंगा में मिल रहे हैं उनमें नाइट्रेट की कमी आ गयी है क्योंकि खेतों में उर्वरकों का प्रयोग अभी बंद हैं। इसके साथ ही प्रो. मिश्रा के मुताबिक गंगा में बीओडी, सीओडी (केमिकल ऑक्सीजन डिमांड), टीडीएस (टोटल डिसॉल्व सॉलिड) आदि सभी प्रदूषक पैमानों में कमी आयी है, जिस पर शोध किया जा रहा है।  इन दिनों लॉक डाउन की वजह से लोगों का गंगा में स्न्नान, कूड़े फेंकना व उद्योग आदि सब बंद है, जिससे प्रवाहित होने वाले हानिकारक विषैले तत्वों का प्रवाह अब गंगा में नहीं हो रहा है। इसका सीधा असर गंगाजल की शुद्धता पर पड़ा है।

गंगा की लहरों पर आम दिनों में डीजल और पेट्रोल चलित बोट की वजह से भी गंगा में धुंवा चुनौती साबित हो रहा था। जबकि गंगा किनारे आस्था की वजह से भी फूल माला और और अन्य वर्ज्य पदार्थों को त्याग करने की वजह से होने वाली गंदगी भी इन दिनों नदारद है। घाट पर नैत्यिक गंगा आरती तो हो रही है मगर घाट पर आयोजन में कोई श्रद्धालु शामिल नही हो रहा है। घाट पर रहने वाले भी गंगा की स्वच्छता के लिए लॉक डाउन को एक बड़ी वजह बताते हैं। 

हालांकि बीएचयू के प्रोफेसर की बातों से कई विद्वान भी सहमत हैं कि मैदानी इलाकों में गंगा के आते ही उद्योगों का भारी भरकम रसायन बिना शोधन के सीधे गंगा में गिरकर उसे अशुद्ध बनाता रहा है। अब गंगा में रसायन न जाने से जल कहीं अधिक शुद्ध हो गया है। पूर्व में भी कुम्भ के दौरान कानपुर में उद्योगों का रसायन रोके जाने की वजह से गंगा जल आचमन योग्य हुआ था। एक बार फिर कोरोना के कहर की वजह से गंगा जल शुद्ध हो जाने से लोगों में चर्चा का बाजार गर्म है कि जो काम सरकारें नही कर पायीं वह कोरोना वायरस के खतरे ने कर दिखाया।


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