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जाह्नवी के आंचल में उतरेंगे सितारे और बिखेरेंगे स्वर लहरियां, हंसराज हंस और अनूप जलोटा निखारेंगे उत्सव के रंग

कार्तिक शुक्ल एकादशी पर श्रीहरि के जागरण के साथ ही काशी में गंगा तट पर उत्सवी रंग निखर जाएंगे।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 02 Nov 2019 08:55 AM (IST)Updated: Sat, 02 Nov 2019 12:38 PM (IST)
जाह्नवी के आंचल में उतरेंगे सितारे और बिखेरेंगे स्वर लहरियां, हंसराज हंस और अनूप जलोटा निखारेंगे उत्सव के रंग
जाह्नवी के आंचल में उतरेंगे सितारे और बिखेरेंगे स्वर लहरियां, हंसराज हंस और अनूप जलोटा निखारेंगे उत्सव के रंग

वाराणसी, जेएनएन। कार्तिक शुक्ल एकादशी पर श्रीहरि के जागरण के साथ ही काशी में गंगा तट पर उत्सवी रंग निखर जाएंगे। इसी दिन शुरू होगा राजघाट पर काशी गंगा महोत्सव जिसमें संगीत सितारों की जुटान होगी जो नगर के अनूठे जल उत्सव देव दीपावली तक रंगत निखारेंगे। इसमें कबीरा..., गल मिट्ठी मिट्ठी... और ओ परदेसी... फेम सूफी गायक तोची रैना के साथ ही हंसराज हंस स्वर लहरियां बिखेरेंगे। अनूप जलोटा और भरत शर्मा व्यास भजन गंगा बहाएंगे तो येल्ला वेंकटेश्वर राव मृदंगम पर हथेलियों का कमाल दिखाने आएंगे।   

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काशी गंगा महोत्सव इस बार आठ से 11 नवंबर तक होगा तो 12 नवंबर को देव दीपावली है। प्रशासन ने अबकी इस खास आयोजन में अधिक से अधिक स्थानीय संगीत कलाकारों को मंच देने का खाका खींचा है। इसमें लोकप्रियता के लिहाज से संगीत की दुनिया के इन बड़े नामों को भी शामिल किया है। हालांकि अभी प्रस्तुति तिथियों को लेकर सहमति बननी बाकी है। माना जा रहा है इसे शनिवार तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा लेकिन हंसराज हंस की दीपावली पर प्रस्तुति तय हो चुकी है। 

आरंभिक स्थल पर पहुंचा महोत्सव 

खास यह भी है कि गंगा महोत्सव इस बार अपने आरंभिक स्थल राजघाट (भैैंसासुर घाट) पर फिर जा रहा है। महोत्सव का आरंभ वर्ष 1987 में इसी घाट पर किया गया था। वहां पास में रेल ट्रैक होने से ट्रेनों की आवाज से कलाकारों की साधना भंग होती थी। ऐसे में उसे बाद में डा. राजेंद्र प्रसाद घाट पर ले आया गया। आवागमन की सुविधा का हवाला देते हुए इसे सपा सरकार में संत रविदास घाट पर स्थानांतरित कर दिया गया था। युवा डिमांड का हवाला देते हुए सूफी गायक कैलाश खेर समेत बालीवुड के पार्श्‍व गायकों को बुलाने का चलन शुरू किया गया। इसे भव्यता देने के लिहाज से आयोजन की जिम्मेदारी भी इवेंट कंपनी को दी जाती रही। सरकार बदलने के साथ इसे पुराना शास्त्रीय स्वरूप देने का हवाला देते हुए डा. राजेंद्र प्रसाद घाट पर ले आया गया। अब पर्यटन के नए स्थानों को विकसित करने के लिहाज से प्रशासन ने राजघाट पर गंगा महोत्सव का खाका खींचा है। 


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