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कौमी एकता का ज्वार, एक ही परिसर में मंदिर और मजार

जौनपुर में अनोखी जगह है जहां मंदिर और मजार एक ही छत के नीचे सदियों से कौमी एकता को बल दे रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 11:58 AM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 11:58 AM (IST)
कौमी एकता का ज्वार, एक ही परिसर में मंदिर और मजार
कौमी एकता का ज्वार, एक ही परिसर में मंदिर और मजार

सतीश सिंह, जौनपुर : मंदिर में मृदंग बजते है, मस्जिदों में अजान होती है। दोस्तों की फातिहा को अक्सर, मेरी पूजा सलाम करती है। किसी शायर की यह रचना जौनपुर जिले में साकार होते पीढियों से लोग देखते और सुनते ही नहीं बल्कि उस परंपरा को निबाहते भी आए हैं। मिश्रित आबादी वाले शहर शीराज-ए-हिंद की गंगा-जमुनी तहजीब अर्से से मिसाल बनी हुई है। यह कौमी एकता का ज्वार ही है जिसे एक परिसर में मंदिर और मजार की मौजूदगी समय के साथ कौमी एकता की जडें और गहरी करती जा रही हैं।

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यहा साप्रदायिक सौहार्द व परस्पर सद्भाव लोगों की रग-रग में रचा-बसा और पीढियों से पल्?लवित होता रहा है।

शहर के बीचोबीच व्यस्ततम इलाके के मोहल्ला अलफस्टीनगंज इस परस्पर सौहार्द की अपने आप में एक जीवंत मिसाल है। यहा प्रधान डाकघर के प्रवेश द्वार के पास भगवान गणेश का मंदिर है तो पास में ही मजार स्थित है। यहा मंदिर व सैयद बाबा की मजार अर्से से आपसी सद्भाव व परस्पर सौहार्द की मिसाल बने हैं। गुरुवार के दिन मजार पर जहा चादर चढ़ाने वालों की भीड़ लगी रहती है वहीं मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालु भी पहुंचते हैं। मंदिर व मजार पर पहुंचने वालों के बीच भाईचारा व सद्भाव बरबस ही लोगों को अनोखेपन की वजह से आकर्षित करता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहा कभी आपसी विवाद की नौबत नहीं आती एक तरफ मुस्लिम मन्नत मागते हैं और चादर चढाते हैं तो दूसरी ओर मंदिर में हिंदू आरती व पूजन करते हैं।

एक ही परिसर व छत के तले दोनों मजहबों के लोग आस्था में सिर झुकाते और एक दूसरे के खुशहाली की कामना पीढी दर पीढी करते आए हैं। कौमी एकता का उदाहरण यह एकमात्र नहीं बल्कि शहर में कम से कम आधा दर्जन स्थानों पर कहीं आमने-सामने तो कहीं चंद कदम की दूरी पर मंदिर-मस्जिद अवस्थित है। इन मंदिरों में जहा घट-घड़ियाल के बीच पूजन-आरती के स्वर गूंजते हैं वहीं मस्जिदों में अजान होती है। आपसी सौहार्द इस कदर है कि जब मस्जिद में अजान होती है तो उस समय मंदिर में घटी की आवाज थम जाती है।

मानिक चौक से नए पुल की तरफ जाने वाले मार्ग पर सैकड़ों साल पुराना बावनवीर हनुमान मंदिर है तो ठीक सामने एक सदी से ज्यादा पुरानी मस्जिद है। शर्की काल में बनी बड़ी मस्जिद के ठीक सामने दो सौ साल पहले का बना मंदिर भी गंगा-जमुनी तहजीब का जीवंत गवाह बना हुआ है। हनुमान घाट पर लाल मस्जिद है तो यहीं चबूतरे पर हनुमान मंदिर भी है। इस पुराने मंदिर में दर्शन-पूजन करने वालों की अच्छी खासी तादाद उमड़ती है तो शुक्त्रवार के दिन काफी संख्या में जुमे की नमाज अदा करने वाले भी मौजूद होते हैं। ऐतिहासिक शाही पुल पर मस्जिद है तो नीचे गोमती तट पर भगवान शिव का मंदिर विराजमान है। गोमती की लहरों के बीच यहा आरती की झकार व अजान की आवाज अर्से से बिना विवाद एकस्वर होते रहे हैं। पूर्व विधायक हाजी अफजाल अहमद ने कहा कि यह जनपद सदियों से आपसी सौहार्द के लिए जाना जाता है। यहा की अधिकतर गलियों में मंदिर व मस्जिद आसपास है। परस्पर सद्भाव का ही आलम है कि जब मस्जिद में अजान होती है तो मंदिर में लोग उस समय घटी बजाना रोक देते हैं। यहा की गंगा-जमुनी तहजीब की जड़ें शायद इन्हीं सद्भाव के कारण लगातार गहरी होती जा रही हैं। वहीं स्थानीय नागरिक किशन हरलालका कहते हैं कि साप्रदायिक सद़भाव की यह मिसाल यहा पीढि़यों से अटूट बनी हुई है।


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