वाराणसी में पीएनजी से लोहे की प्लेट काटकर गेल ने बनाया रिकार्ड, डीरेका में हाे चुका है सफल परीक्षण
अभी तक डीजल एलपीजी या एसिटिलीन से ही लोहे की प्लेट काटी जाती थी ।
वाराणसी, जेएनएन। अभी तक डीजल, एलपीजी या एसिटिलीन से ही लोहे की प्लेट काटी जाती थी जो ज्यादा खर्चीला होने के साथ पर्यावरण प्रदूषक भी है। लेकिन गेल इंडिया लिमिटेड ने पहली बार पीएनजी से लोहे की प्लेट काट कर नया रिकार्ड बनाया है। इसका डीरेका में सफल परीक्षण भी हो चुका है। इसके तहत 125 एमएम मोटी लोहे की प्लेट एक झटके में काट दी गई। इससे हर साल करोड़ों की बचत होगी। वहीं पर्यावरण का भी संरक्षण होगा। इसे लागू करने को रेल मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा गया है।
डीरेका में प्रति माह तैयार होते हैं 25 लोको : डीरेका में अधिकतम 80 एमएम मोटी लोहे की प्लेट ही काटने की जरूरत पड़ती है। लेकिन गेल ने 125 एमएम मोटी प्लेट काटने की चुनौती को भी पूरा कर लिया। बताया जा रहा है कि डीरेका में प्रति माह करीब 25 लोको (रेल इंजन) तैयार होते हैं जिससे पूरे देश की जरूरतों को पूरा किया जाता है। भविष्य में प्रति माह तैयार होंगे 35 लोको भविष्य में वाराणसी में प्रति माह 35 लोको तैयार हो सकते हैं। इसके लिए 7000 घन मीटर प्लेट काटने की जरूरत पड़ेगी। यानी एक साल में करीब 84 हजार घन मीटर लोहे की प्लेटें काटी जाएंगी। लगभग 45 फीसद की बचत सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2016-17 के तीन माह में एसिटिलीन, डीजल एवं एलपीजी से जो प्लेटें काटी गई उसमें लगभग 37 लाख रुपये खर्च आई। वहीं पीएनजी से काटने पर साढ़े 21 लाख रुपये ही लगते। यही नहीं इस साल अप्रैल, मई व जून में करीब 11 लाख रुपये खर्च में प्लेट कटिंग का कार्य हुआ, जो पीएनजी से मात्र पौने छह लाख रुपये में ही हो जाता।
- पीएनजी से 125 एमएम मोटी लोहे की प्लेट काटने में सफलता मिली है। इससे धन बचत के साथ प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी। इसे लागू करने की कार्रवाई जोरों पर है। - एएम त्रिपाठी, असिस्टेंट प्रोडक्शन इंजीनियर, डीरेका।
- डी कंप्रेशन यूनिट लगाकर यह सफलता हासिल हुई। टेस्ट पूरी तरह सफल रहा। डीरेका से डिमांड आते ही वहां लाइन पहुंचा दी जाएगी। - गौरीशंकर मिश्र, उप महाप्रबंधक, गेल इंडिया लिमिटेड।