बीएचयू के शोधछात्र मुफ्त में करा रहे नेट-जेआरएफ की तैयारी, 400 विद्यार्थी कर चुके क्वालीफाई
यदि डिग्री कालेज या विश्वविद्यालय में शिक्षक बनने का सपना संजोए हुए हैं और इसमें अर्थ रोड़ा बन रहा है तो चिंता करने की जरूरत नहीं है।
वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। यदि डिग्री कालेज या विश्वविद्यालय में शिक्षक बनने का सपना संजोए हुए हैं और इसमें अर्थ रोड़ा बन रहा है तो चिंता करने की जरूरत नहीं है। आपके सपने को मुफ्त में आकार मिलेगा बीएचयू परिसर में। यहां संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय, बीएचयू के एक शोध छात्र आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं को नेट और जेआरएफ की निश्शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। यहां तैयारी कर अब तक 400 विद्यार्थी नेट-जेआरएफ में सफल हो चुके हैं। वर्तमान में बीएचयू में ही 200 युवाओं की क्लास चल रही है।
12 विद्यार्थियों से शुरू हुआ कारवां : जेआरएफ के लिए खुद काफी मुश्किलों का सामना करने वाले राजा पाठक ने ठान लिया है कि वह पैसे के अभाव में किसी के सपने को टूटने नहीं देंगे। इसके लिए वे आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं को जेआरएफ में सफलता दिलाने को मुफ्त में कोचिंग दे रहे हैं। राजा ने इसकी शुरुआत 2014 में बीएचयू विश्वनाथ मंदिर परिसर में 12 विद्यार्थियों की क्लास से शुरू की।
दूसरे बैच में 29 विद्यार्थी सफल : 12 विद्यार्थियों के बाद दूसरे बैच में 60 बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इसमें से 29 बच्चे चयनित हुए। मंदिर में पढ़ाने के साथ छात्रों संख्या बढ़ती गई। तब संकाय के ही एलटी-1 में पढ़ाना शुरू किया। हालांकि इसमें भी बाधाएं आईं। बीएचयू के हों या बाहर के बच्चे, जिसे लगा कि जेआरएफ की तैयारी करनी है तो वह क्लास रूम में आकर बेहिचक पढ़ाई करता रहा।
पिछले सत्र में 70 हुए चयनित : राजा ने बताया कि नेट-जेआरएफ के अगले सत्र की परीक्षा दो दिसंबर से शुरू हो रही है। इसकी तैयारी के लिए अंतिम क्लास जून के दूसरे सप्ताह तक चलेगी। इसके लिए करीब चार हजार आवेदन आए थे, जिसमें से 200 फार्म कंफर्म किए गए हैं। 50 को वेटिंग में रखा गया है। पिछले सत्र में 230 में से 70 का चयन हुआ था।
संस्कृत छात्र, आइआइटी में शोध : एक खास बात यह भी है राजा संस्कृत के छात्र होते भी आइआइटी में शोध कर रहे हैं। वह यहां पर वह ग्रह गणना के लिए प्रोग्राम व साफ्टवेयर विकसित करने में तीन साल से जुटे हैं। यह साफ्टवेयर वैदिक सिद्धांत पर आधारित है। उनका दावा है कि इससे 43 लाख साल तक की ग्रहीय गणना की जा सकती है।