रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला : लीलाप्रेमियों को रिझाते रहे अष्टसखी संवाद, फुलवारी दर्शन को उमड़ा रेला
प्रभु श्रीराम की लीला का हर रंग लोक से जुड़ा होने के कारण अपनेपन का अहसास कराता है।
वाराणसी, जेएनएन। प्रभु श्रीराम की लीला का हर रंग लोक से जुड़ा होने के कारण अपनेपन का अहसास कराता है। इसका ही परिणाम है कि परंपराओं से जुड़ी रामनगर की रामलीला में श्रद्धालु हर प्रसंग से जुड़ जाते हैं। विश्व प्रसिद्ध रामलीला के चौथे दिन रविवार को कुछ ऐसा ही हुआ 36वीं वाहिनी पीएसी परिसर में जहां पर जनकपुर दर्शन, फुलवारी एवं अष्टसखी संवाद लीला प्रसंग का मंचन किया गया। इसमें जनकनंदिनी की अष्ट सखियों के भावों में पगे चुटीले संवाद सुनने के लिए महिलाओं की भीड़ अधिक रही।
जनश्रुतियों के अनुसार वर्ष 1798 में तत्कालीन काशी नरेश ने महाराज जनक की आराध्य देवी गिरिजा (पार्वती) गिरिजा देवी मंदिर की स्थापना की। महाराज ईश्वरी नारायण सिंह के समय इस मंदिर में देवी की प्रतिमा स्थापित की गई। माता गिरिजा देवी को मनोरथ पूर्ण करने वाली देवी के रूप में पूजने की मान्यता है। इसीलिए रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला में सीता के गिरिजा पूजन जाने की लीला हेतु इस मंदिर को उपयुक्त माना गया। रविवार को गिरिजा मंदिर के समीप बनी फुलवारी में भगवान राम-लक्ष्मण का विचरण व उनके सौंदर्य का अष्टसखियों द्वारा वर्णन किए जाने वाले कर्णप्रिय संवादों को सुनने के लिए पीएसी परिसर दोपहर बाद ही खचाखच भर गया।
आम दिनोंं में यह लोगों के लिए बंद रहता है लेकिन फुलवारी लीला के दिन हजारों लीलाप्रेमी व महिलाओं ने गिरिजा देवी मंदिर व जनकपुर मंदिर में स्थापित श्रीराम सहित चारों भाईयों व उनकी धर्मपत्नियों की अनूठी प्रतिमाओं का दर्शन-पूजन किया। काशिराज परिवार के अनंत नारायण सिंह ने भी लीला हाथी पर लगे हौदे पर बैठकर देखने के बजाय चौकी पर बैठकर देखी। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा मान जब श्रीराम व लक्ष्मण जनकपुर देखने निकले तो जनकपुर के लोग दोनों भाइयों की सुंदरता देख मोहित हो गए।
आज की रामलीला
रामनगर व जाल्हूपुर : धनुष यज्ञ, परशुराम संवाद।
शिवपुर : अहिल्या तरण, गंगा दर्शन, जनकपुर विश्राम।
भोजूबीर : गणेश वंदना, शंकर स्तुति, नारद मोह।
औरंगाबाद : मुकुट पूजन