पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को साहू परिवार ने सिक्के से तौला था, वजह आपको भी करेगी हैरान
परिवार को कांग्रेस के खराब दौर में याद आता है कि कांग्रेस के जरुरत पर इंदिरा गांधी को परिवार की ओर से उस समय सिक्कों से तौला गया था। उन पैसोंं को समाजसेवा के लिये परिवार की ओर से दान किया गया था।
मीरजापुर [कुमार आनंद]। अहरौरा के तकिया मोहाल निवासी सहुवाईन परिवार का इतिहास काफी पुराना है।सामाजिक क्षेत्रों में इनके द्वारा अनेकों कार्य किए गए हैं जिन्हें आज भी लोग याद करते हैं। उनके पूर्वजों द्वारा पूर्व में आठ से भी ज्यादा पोखरा और भव्य मंदिर का निर्माण कराया था जिसका उपयोग आज भी क्षेत्र की जनता करती है। मंदिर नक्काशीदार बनाई गई है, जो आसपास कहीं और देखने को नहीं मिलता है। साहू परिवार का काशी स्टेट विजयनगरम स्टेट और रीवां स्टेट, सरगूजा स्टेट, विजयगढ़ और बड़हर स्टेट, दक्षिणांचल में मध्यप्रदेश, बिहार और राजस्थान के स्टेट्स से गहरा सम्बन्ध रहा है।
स्वर्गीय प्रभुनारायण सिंह पूर्व मंत्री उप्र, पूर्व मुख्य मंत्री स्वर्गीय कमलापति त्रिपाठी और बैरिस्टर यूसुफ इमाम इन लोगों से प्रगाढ़ संबंध रहे।पूर्णिया स्टेट, पूर्व मंत्री और कद्दावर गरीब और किसान नेता स्वर्गीय सालिग राम जायसवाल,इंडस्ट्रिलिस्ट बसंत लाल जायसवाल आदि लोग से पारिवारिक सम्बन्ध है।
आजादी की लड़ाई में भी रहा है योगदान : स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय साहू बैजनाथ प्रसाद अपने व्यापार और जीवन को दाव पर लगा कर देश के आजादी की लड़ाई में खुल कर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ा। इस दौरान वो जेल भी गये। आजादी के दिनों में बाल गंगाधर तिलक, वल्लभभाई पटेल, सुभाषचन्द्र, नेहरू जी और गांंधी जी आदि बड़े नेताओं से उनका सम्बन्ध रहा है। इनमे से कई विभूतियों का हस्ताक्षर युक्त फोटो भी घर पर मौजूद है। साहू बैजनाथ जी से मिलने महान स्वतंत्रता सेनानी आते रहते थे और साथ में बैठ कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाते थे। जयप्रकाश नारायण आजादी के लड़ाई में अंग्रेजों से छिपने के लिए खडंजा स्थित राइस मिल के बगीचे में एक महीने तक छिपे रहे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में नाम दर्ज होने पर स्व. साहू बैजनाथ प्रसाद को ताम्र पत्र से नवाजा गया था। जो आज भी सुरक्षित रखा गया है।
हस्त लिखित गुरु ग्रंथ साहिब घर में है मौजूद : साहू परिवार के घर में स्थित ठाकुर जी के मंदिर में हस्त लिखित गुरु ग्रन्थ साहब कीअनमोल धरोहर आज भी मौजूद हैं। जिसे उन्होंने काफी संभालकर रखा हुआ है। जिसकी परिवार में नियमित पूजा होती है। तीन सौ वर्ष पूर्व से इनके यहां कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व काफी धूमधाम के साथ आज भी मनाया जाता है। तो वहीं गोला की अति प्राचीन रामलीला भी काफी प्रसिद्ध है। भैरव अष्टमी, देव दीपावली सहित अन्य त्योहार को सार्वजनिक रूप से परंपरागत तरीके से मनाते आ रहे हैं। जिसमे लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
कई प्रांतों से होता था व्यापार: दशकों पूर्व अहरौरा में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार, पूर्वांचल सहित अन्य कई क्षेत्रों का मुख्य बाजार अहरौरा होता था। नगर के सहवाईन का गोला में व्यापारियों की मंडी सजती थी और लोग यही से व्यवसाय करते थे। दूर दराज से आए व्यापारियों के लिए उचित रहन सहन खान पान व व्यापार करने के लिए भूमि भी परिवार मुहैया कराता था। स्वर्गीय साहू बैजनाथ प्रसाद की तीसरी पीढ़ी में छ: लड़के और चार लड़कियांं हैं जिनमेंं एडवोकेट, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, प्रोफेसर, डॉक्टर, बिजनेसमैन, मीडिया, एंटी करप्शन, कोंग्रेसी विचारधारा और समाजसेवा से अग्रणी रूप से जुड़े हैं। इनके सबसे बड़े पुत्र स्वर्गीय श्रीनाथ गुप्त रहे। देश के अग्रणी कोंग्रेसी नेता और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय पण्डित कमला पति त्रिपाठी ने श्री नाथ जी अपने साथ देश की सेवा के लिये बैजनाथ से मांगा। पंडित जी के साथ साहू बैजनाथ जी ने अपने बड़े पुत्र को समाजसेवा के लिये देने से रोक नही पाए। साहू बैजनाथ जी के मृत्यु के बाद उनकी सामाजिक जिम्मेदारी को स्वर्गीय श्री नाथ जी ने बखूबी निभाया और स्वर्गीय पण्डित लोकपति त्रिपाठी जी के साथ मिलकर क्षेत्र और समाज के लिये ही अपने जीवन को समर्पित कर दिया।
बैजनाथ प्रसाद के अन्य तीन पुत्र में साहू सुरेंद्र कुमार, सत्येंद्र कुमार व शुभेन्द्र कुमार हैं। ये प्रतिष्ठित परिवार सब जानते हुए कि व्यापार में प्रति वर्ष हानि हो रहा किन्तु कभी कुछ नहीं बोला और समाजसेवा में अपने बड़े भाई का साथ देते रहे। ये भारतीय और पारिवारिक संस्कार का एक बड़ा उदाहरण है। पूरा साहू परिवार आज के दौर में भी बिलकुल साधारण जीवन यापन कर रहा है।अपने परिवार के विचारधारा के चलते हुए भी समाजसेवा में ही लगा रहता है। आज के दौर में ऐसा परिवार शायद ही देखने को मिले। परिवार को कांग्रेस के खराब दौर में याद आता है कि कांग्रेस के जरुरत पर इंदिरा गांधी को परिवार की ओर से उस समय सिक्कों से तौला गया था। उन पैसोंं को समाजसेवा के लिये परिवार की ओर से दान किया गया था।