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पूर्वांचल में गंगा और घाघरा नदियों का सिमट रहा पाट, प्रवाह भी रेत के ढेर में थम गया

गंगा और घाघरा डेढ़ दशक पहले तक विशाल रूप में बहती नजर आती थीं अब वही विशाल नदी मात्र 80 से 100 मीटर की चौड़ाई में बहते नजर आ रही हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 02 Jun 2019 05:59 PM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 09:25 AM (IST)
पूर्वांचल में गंगा और घाघरा नदियों का सिमट रहा पाट, प्रवाह भी रेत के ढेर में थम गया
पूर्वांचल में गंगा और घाघरा नदियों का सिमट रहा पाट, प्रवाह भी रेत के ढेर में थम गया

बलिया [लवकुश सिंह]। जनपद में गंगा और घाघरा दोनों के हालात एक जैसे हो चले हैं। नदी के लगभग 70 फीसदी भाग में केवल रेत ही दिखाई दे रहा है। यहां गंगा और घाघरा डेढ़ दशक पहले तक विशाल रूप में बहती नजर आती थीं, अब वही विशाल नदी मात्र 80 से 100 मीटर की चौड़ाई में बहते नजर आ रही हैं। वजह कि बरसात के मौसम में ही इन नदियों को रन-आफ के माध्यम से पर्याप्त पानी मिलता है। बरसात के खत्म होने के बाद उन्हें, रन-आफ के माध्यम से पानी का मिलना बंद हो जाता है। सूखे मौसम में उनके प्रवाह का स्रोत जमीन के नीचे संचित भूजल होता है लेकिन संचित भूजल का स्रोत लगातार नीचे भागने से अब नदियों की दशा ही बदल गई है। इलाके के लोग मानते हैं कि यदि अब भी इन नदियों के प्रति आम जनमानस सचेत नहीं होता तो इन नदियों का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा। 

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नदियों के स्वरुप के संबंध मेें तटीय लोग बताते हैं कि नदियों से उनका लगाव काफी पुराना है। वह नदियों के हर स्वरूप को देख चुके हैं। गंगा और घाघरा के तट पर बसे जयप्रकाशनगर के पूर्वी दलजीत टोला निवासी शिक्षक कृष्ण कुमार सिंह, भवन टोला के शिक्षक बसंत सिंह, अठगांवा के हरेकृष्णा सिंह, भगवान टोला के जनार्दन यादव सहित दर्जनों लोगों ने बताया कि गंगा और घाघरा को दूषित करने या इसके स्वरूप को बिगाडऩे के पीछे आमजनमानस भी ज्यादा जिम्मेंदार है। वे बताते हैं कि आज से 15 वर्ष पहले हम गंगा और घाघरा में जितनी मछलियां, कछुए देखते थे, अब वे दिखाई नहीं देते। नदी में अनायस ही दिख जाने वाले सोंस अब कभी-कभी ही दिखाई नहीं देते हैं। एक कूड़ेदान की तरह नदी में पूजा-पाठ के बाद हवन आदि का कचरा डालने से भी लोगों को कोई परहेज नहीं है। नगर से सटे कीनाराम घाट, महावीर घाट, श्रीरामपुर घाट सहित रेवती, सिकंदरपुर, बिल्थरारोड, लालगंज, रामगढ़, हल्दी आदि स्थानों की दशा भी एक समान है। 

गंगा में ही जाता है पूरे शहर का गंदा पानी : नदियों के अस्तित्व को लेकर हमेशा अपनी अवाज बुलंद करने वाले नगर के निवासी रामाशंकर तिवारी बताते हैं कि नगर में तो कटहल नाला के माध्यम से तो पूरे शहर का गंदा पानी गंगा में समाहित हो रहा है। नमामि गंगे योजना के तहत दवा का छिड़काव, गंगा में पॉलीथिन व कचड़ा रोकने को एक स्थान पर मशीन लगाया गया है लेकिन वह सार्थक प्रयोग के रुप में नहीं है। वह गंदा पानी को गंगा में जाने से नहीं रोक पाता। वे बताते हैं कि देश में गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए वर्ष 2014 से अब तक 3867 करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही जा रही है लेकिन उसका परिणाम क्या है वह बलिया में ही दिख रहा है। 

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