पांच घोड़ों की रिपोर्ट में ग्लैंडर्स बीमारी के लक्षण मिलने पर आजमगढ़ में उतारा गया था मौत के घाट
अश्व प्रजाति में होने वाले ग्लैंडर्स बीमारी से इंसान सीधे प्रभावित होता है आजमगढ़ से इस वर्ष 75 घोड़ों व खच्चर की रिपोर्ट जांच के लिए हरियाणा भेजी जा चुकी है।
आजमगढ़, जेएनएन। अश्व प्रजाति में होने वाले ग्लैंडर्स बीमारी से इंसान सीधे प्रभावित होता है। जनपद से इस वर्ष 75 घोड़ों व खच्चर की रिपोर्ट जांच के लिए हरियाणा भेजी जा चुकी है। इसमें से 56 जानवरों की रिपोर्ट निगेटिव मिली है। इसकी वजह से पशुपालन विभाग राहत में है। अन्य जानवरों की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। दूसरी तरफ पिछले वर्ष 285 अश्व प्रजाति के जानवरों का ब्लड सेंपल लिया गया था। जांच के बाद पांच जानवरों में ग्लैंडर्स बीमारी के लक्षण मिले थे और इन्हें जान से मार दिया गया।
ग्लैंडर्स बीमारी से पीडि़त घोड़ों व खच्चर को जान से मारने का आदेश है। इसी तरह के घोड़ों व खच्चर को विभाग काफी दिनों से चिह्नित करने में जुटा हुआ है। इस बीमारी से पीडि़त जानवरों को जहर देकर मार डाला जाता है और गहरी खाईं में ढक दिया है। ताकि इसका वायरस आम आदमी को प्रभावित न कर सके। विभाग की मानें तो बर्खोलडेरिया मैलियाई नामक वैक्टीरिया से फैलने वाली इस बीमारी के लक्षण बीते दिनों अश्व कुल (इक्वाइन) की कुछ प्रजातियों में मिले थे। पशुपालन विभाग ने मिलते- जुलते लक्षणों के आधार पर पशुओं के ब्लड सैंपल जांच के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार, हरियाणा भेजता है। लैब की जांच रिपोर्ट में केस पॉजीटिव पाए जाने पर सारी प्रक्रियाएं पूरी की जाती हैं। रोग निदान का दूसरा जरिया नहीं होने के कारण संक्रमित जानवरों को मार दिया जाता है।
पशुपालकों को दिया जाता है मुआवजा : संक्रमित जानवरों के पशुपालकों को सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाता है। इसमें घोड़ों की मौत पर 25 हजार व खच्चर की मौत पर 15 हजार रुपये पशुपालन विभाग की तरफ से दिया जाता है। इसको मारने से पहले संबंधित एसडीएम, थानेदार व ग्राम प्रधान से अनुमति ली जाती है। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाती है।
कम दर्द देकर मारे जाते हैं जानवर : मवेशियों को कम से कम दर्द देकर मारा जाता है। इसके लिए तीन तरह के जहर दिए जाते हैं। घोड़ों-खच्चरों को पहले जाइलेजिन इंजेक्शन फिर थॉयोपेंटस सोडियम और फिर मैग्नीशियम सल्फेट का 10 एमजी वाल्यूम इंजेक्ट किया जाता है। इस कार्रवाई के दौरान मजिस्ट्रेट स्तर का एक अधिकारी व पुलिस रहेगा। पूरी प्रक्रिया की फोटोग्राफी होगी और मरने के बाद उन्हें दफनाया जाएगा।
बोले पशु चिकित्साधिकारी : ग्लैंडर्स से घबराने की जरूरत नहीं है। जिस घोड़े, खच्चर व गधे के नाक के बीच में अल्सर हो और उसमें से पीले-हरे रंग का पानी निकल रहा हो, शरीर पर दाने हों, उससे सतर्क रहें। फेफड़े का संक्रमण होने से पशु कमजोर हो जाता है। इसकी जानकारी तत्काल विभाग को दी जाए।
डा. बीके ङ्क्षसह : मुख्य पशु चिकित्साधिकारी