विवाह के बाद लड़कियां होती हैं गोत्रांतरित, मैं हुई हूं लिंगांतरित : प्रो. मनोबी बंदोपाध्याय
पहली ट्रांसजेंड कालेज प्रिंसिपल रहीं प्रो. मनोबी ने कहा कि मैं अकेली हूं, अकेले रहना पसंद करती हूं, लड़कियां विवाह के बाद गोत्रांतरित होती हैं, मैं लिंगांतरित हुई हूं।
वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित महिला महाविद्यालय में कौस्तुभ जयंती व्याख्यानमाला के तहत मंगलवार को 'किन्नर समाज और साहित्य' विषय पर प्रो. मनोबी बंदोपाध्याय का व्याख्यान आयोजित हुआ। देश की पहली ट्रांसजेंड कालेज प्रिंसिपल रहीं प्रो. मनोबी ने कहा कि मैं एकांत पर गर्व करती हूँ। मैं अकेली हूं, अकेले रहना पसंद करती हूं। लिंग परिवर्तन पर हुए सवाल के जवाब में कहा कि लड़कियां विवाह के बाद गोत्रांतरित होती हैं, मैं लिंगांतरित हुई हूं।
विज्ञान और मनोविज्ञान के लिए सवाल
कहा यह विज्ञान और मनोविज्ञान के लिए भी बड़ा सवाल है। मैंने सारा बचपन प्रताडि़त होकर बिताया। समाज की उपेक्षा और तिरस्कार से मैं प्रभावित नहीं होती, क्योंकि अब मैं दुनिया को अपना परिवार मानती हूं। महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. चंद्रकला त्रिपाठी ने सामाजिक समावेशन व ट्रांसजेंडर समुदाय को हाशिये से मुख्य धारा में लाने पर विशेष बल दिया।
किन्नरों की शिक्षा पर बल
कहा ऐसा करने पर ही हम एक आधुनिक समाज बनाने की ओर कदम बढ़ा पायेंगे। वहीं किन्नर समाज के अनुभवों पर आधारित कथा साहित्य के प्रणेता महेंद्र भीष्म ने कहा कि किन्नर समाज हाशिये पर था। उसके प्रति संवेदनशीलता का अभाव था, लेकिन अब मानवाधिकार से जुड़े सवाल उठने लगे हैं और उनके प्रति सहानुभूति भी बढ़ी है। इसके साथ ही उन्होंने किन्नरों के सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों का उल्लेख करते हुए शिक्षा की सुविधा बढ़ाने पर बल दिया।
विभिन्न पक्षाें पर डाला प्रकाश
इससे पूर्व विषय स्थापना करते हुए प्रियंका नारायण ने ट्रांसजेंडर शब्द की व्युत्पत्ति एवं उनके जीवन के शारीरिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और साहित्यिक पक्षों पर प्रकाश डाला। अध्यक्षता प्रो. रीता सिंह, संचालन डा. पद्मिनी रवींद्रनाथ, रश्मि झा व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अरुण कुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर प्रो. बलिराज पांडेय, प्रो. पुष्पा अग्रवाल, प्रो. शशिरानी अग्रवाल, प्रो. सुषमा त्रिपाठी, प्रो. गीता राय, डा. शशिकला त्रिपाठी, प्रो. कल्पना गुप्ता आदि थे।