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फिल्म निर्माताओं ने वेब सीरीज के लिए भी मांगी सब्सिडी, उत्‍तर प्रदेश सरकार से की गुजारिश

यूपी में फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार सब्सिडी दे रही है। ऐसे में गुजारिश बस इतनी सी है कि फिल्मों की तरह वेब सीरीज को भी सरकार सब्सिडी देने पर विचार करे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 03 Mar 2020 04:39 PM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2020 04:39 PM (IST)
फिल्म निर्माताओं ने वेब सीरीज के लिए भी मांगी सब्सिडी, उत्‍तर प्रदेश सरकार से की गुजारिश
फिल्म निर्माताओं ने वेब सीरीज के लिए भी मांगी सब्सिडी, उत्‍तर प्रदेश सरकार से की गुजारिश

वाराणसी, जेएनएन। उत्‍तर प्रदेश में फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार सब्सिडी दे रही है। ऐसे में गुजारिश बस इतनी सी है कि फिल्मों की तरह वेब सीरीज को भी सरकार सब्सिडी देने पर विचार करे। क्योंकि इसमें भी फिल्मों की तरह बड़े बजट और लंबे-चौड़े स्टार कास्ट की जरूरत होती है। यूपी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में आए निर्माता-निर्देशक सावन कुमार, नरेश मल्होत्रा, तिग्मांशु धूलिया व अभिनेता अरुण बख्शी ने बनारस क्लब में मीडिया से बातचीत में ये मुद्दा उठाया।

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निर्माता-निर्देशकों ने काशी को प्रेरणा का स्रोत बताया। कहा भारत ही नहीं शायद दुनिया में पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का आयोजन ओपेन थिएटर में किया गया। काशी में गंगा किनारे किया गया यह प्रयोग आमजन तक पहुंचने के अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सफल रहा। बनारस में जिस ओर भी कैमरा घुमा लें आकर्षक सीन मिल जाएगा। इसके नजदीक फिल्म सिटी बन जाने से स्थानीय कलाकारों के साथ ही यहां के बाजार को परवाज मिलेगा। सरकार कोशिश करे, हम निर्माता-निर्देशक हर संभव मदद को तैयार हैं। इस अवसर पर गीतकार श्रवण कुमार, निर्माता-निर्देशक कृष्णा मिश्रा, एस कुमार मोहन, बी सुभाष, डेविड कैपोर, अनिल शर्मा, सुनील सिरवैया सहित अभिनेत्री कीर्ति अडारकर, कवि महेश दुबे आदि थे। 

कला नहीं, कारोबार हो गईं फिल्में

सावन कुमार ने कहा कि फिल्म मेकिंग एक कला है। पहले निर्माता-निर्देशक पर ही पूरी फिल्म की जिम्मेदारी होती थी। इससे हमारे घर-परिवार भी पल जाते थे। मगर कारपोरेट घरानों के दखल ने इसे विशुद्ध कारोबार बना दिया है। अधिकतर फिल्म अब वे लोग बना रहे हैं जिन्हें फिल्मों का ज्ञान ही नहीं है। यही वजह है कि अच्छी फिल्में अब कम ही बन पा रही हैं। दमदार स्क्रिप्ट, उम्दा संगीत, कुशल अभिनय, बेहतर निर्देशन, आकर्षक सिनेमैटोग्राफी आदि किसी फिल्म को यादगार बनाते हैं, जो वर्षों तक दर्शकों को याद रहती हैं।

फिल्मों की जवाबदेही है, वेब सीरीज की नहीं

अभिनेता अरुण बख्शी ने कहा कि अधिकतर भारतीय फिल्में परिवार के साथ बैठकर देखी जा सकती हैं। इनकी मानीटङ्क्षरग के लिए सेंसर बोर्ड है। मगर वेब सीरीज के लिए कोई 'लाइन ऑफ कंट्रोल' नहीं है। इसमें गाली-गलौच, सेक्स सहित समाज की तमाम विकृतियां मिलेंगी, जिन्हें परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा जा सकता है।

सीएए पर मतभेद, इंडस्ट्री है एक

सीएए समर्थन एवं विरोध के बीच बढ़ती खाई के असर से फिल्म इंडस्ट्री भी अछूती नहीं हैं। फिल्मकारों ने नसीरुद्दीन शाह- अनुपम खेर प्रकरण पर खेद जताया। कहा बॉलीवुड में वैचारिक रूप से भिन्नता जरूर है, लेकिन राष्ट्रीयता के मामले में सब एक हैं। हाल ही में दिल्ली में हुई ङ्क्षहसा पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि इसके जिम्मेदार लोगों को सजा जरूर मिलनी चाहिए।


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