तुगलक वंश के तीसरे शासक फिरोजशाह ने कराया था जौनपुर में अनोखे किले का भव्य निर्माण
शाही किला शर्की साम्राज्य के अधीन जौनपुर मध्यकालीन इतिहास का एक उत्कृष्ट नमूना है। इस शहर की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी।
जौनपुर, जेएनएन। गंगा जमुनी तहजीब के लिए मसहूर जौनपुर में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहां के पर्यटनस्थलों पर प्रतिवर्ष काफी संख्या में भारतीय व विदेशी पर्यटक भी आते हैं लेकिन मुकम्मल सुविधाओं के अभाव में अभी सैलानियों की तादाद बढ़ नहीं पा रही है। अगर शासन-प्रशासन के लोग गंभीरता दिखाते हुए पर्यटनस्थलों पर सुविधाओं को बढ़ावा दे दें तो न सिर्फ सैलानी बढ़ेंगे बल्कि रोजी-रोजगार को बढ़ावा मिलने के साथ ही स्थलों का संरक्षण भी हो सकेगा। इन्हीं स्थलों में शामिल है एक शाही किला, जो अपनी ऐतिहासिकता की गवाही देते हुए यहां की शान भी बढ़ा रहा है।
शाही किला शर्की साम्राज्य के अधीन जौनपुर मध्यकालीन इतिहास का एक उत्कृष्ट नमूना है। इस शहर की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने की थी। बंगाल में 1359 के अपने द्वितीय अभियान के दौरान वे यहां छह माह अस्थायी निवास किए थे। बताया जाता है कि बंगाल व बिहार पर शासन के लिए ऐतिहासिक शाही किला का निर्माण कराया। तब से लेकर आजतक 660 वर्षों से अधिक समय से यह ऐतिहासिक दुर्ग वीर पताका को फहरा रहा है।
पर्यटकों के लिए इस किले को निहारने के लिए काफी कुछ है। इस ऐतिहासिक इमारत को मुख्यत: शाही किला के नाम से जाना जाता है, इसको फिरोजशाह तुगलक द्वारा 1360 ईस्वी में एक पुराने किले केरार कोट के ध्वंसाशेष के ऊपर बनाया गया है। चतुर्भजाकार चहारदीवारी से घिरे इस किले का मुख्य दरवाजा पूर्व की ओर है। दूसरा द्वार पश्चिम की तरफ है, जहां टीले से सीढिय़ों द्वारा पहुंचा जा सकता है। मुख्य प्रवेश द्वार करीब 14 मीटर ऊंचा व पांच मीटर गहरा है जिसमें प्रत्येक तरफ कक्ष बने हैं। अकबर के शासनकाल के दौरान इसको अतिरिक्त सुरक्षा देने के लिए निमित्त खां ने पूर्वी दरवाजे की तरफ एक बरामदा जोड़ा तथा 11 मीटर ऊंचा प्रवेश द्वार भी बनाया था। दरवाजे, दीवार और बुर्ज (रास्ता) सभी को बाहरी तरफ से पत्थरों से चिनाई कर मजबूती प्रदान की गई थी। चूंकि जौनपुर दिल्ली और बंगाल के बीच में स्थित है। ऐसे में यहां बंगाल व बिहार पर शासन के लिए दुर्ग का निर्माण कराया गया था। इसके पास में प्राचीन काल में भरों का मंदिर केरारबीर था और यह भरों की कच्ची कोट थी। यह किला केरार कोट के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसमें विभिन्न कालों में परिवर्तन होते रहे, इसलिए इसका मूल आकार परिवर्तित होता रहा। शर्की बादशाहों ने इसके भीतर मिश्री ढंग की एक मस्जिद तथा तुर्की स्नानगृह का निर्माण भी कराया था।
तुर्की हम्माम
शाही किला के अंदर ही एक अन्य इमारत भूल-भूलैया है, जो तुर्की हम्माम (स्नानागार) का एक अच्छा उदाहरण माना जाता है। इस इमारत का कुछ भाग जमीन के अंदर है, जिसमें प्रवेश द्वार, बाहरी द्वार, गर्म व ठंडा पानी, शौचालय जैसी अन्य सुविधाएं थी। किले के अंदर बंगाली शैली में तीन गुंबदों वाली मस्जिद स्थित है। इसके ठीक सामने बलुवे पत्थर पर निर्मित चार फीट ऊंची मीनार है। इस मस्जिद के एक स्तंभ मीनार पर अरबी फारसी भाषा में एक लेख अंकित है। इस लेख में 1377 ईस्वी में इब्राहिम नायब वारबक(सुल्तान फिरोजशाह का भाई) द्वारा इस मस्जिद का निर्माण कराए जाने का उल्लेख है।
300 शहर में जौनपुर भी बना
फिरोजशाह दिल्ली सल्तनत में तुगलक वंश के तीसरे शासक थे। उन्होंने 37 सालों तक राज चलाया। उसने देशभर में 300 से अधिक शहर बनाएं, इसी कड़ी में उन्होंने जौनपुर शहर का नाम अपने संरक्षक जौना खां के नाम पर रखा, जो दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से प्रसिद्ध है।
कैसे पहुंचें शाही किला
-बाबतपुर वाराणसी एयरपोर्ट से 35 किमी।
-इलाहाबाद से सौ किमी, वाराणसी से 55 किमी, आजमगढ़ से 60 किमी।
-जौनपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन से एक किमी, सिटी स्टेशन से तीन किमी।
-रोडवेज बस अड्डे से दो किमी की दूरी है।
टिकट व पर्यटकों की स्थिति
-शाही किला सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।
-भारतीय पर्यटकों के लिए 25 रुपये टिकट लगता है।
-विदेशी पर्यटकों के लिए 300 रुपये टिकट लगता है।
-औसत रोजाना करीब 450 भारतीय सैलानी आते हैं।
-यह आंकड़ा वर्षभर में करीब एक लाख 64 हजार के पार होता है।
-विदेशी सैलानी भी काफी संख्या में आते हैं।
बोले अधिकारी
प्रदेश का कोई जिला पर्यटन जिला घोषित नहीं किया जाता है। उन जगहों पर ऐतिहासिक, धार्मिक व घूमने-फिरने की कौन सी जगह है जिसको पर्यटन के रूप में विकसित किया जाता है। यहां पर सरकार से लेकर प्रशासन व जनप्रतिनिधियों द्वारा सुविधाएं पहुंचाई जाती हैं। जिससे बाहरी पर्यटक आ सकें और स्थानीय स्तर पर उद्योग व रोजगार की संभावनाएं फल-फूल सके। इस कड़ी में मुख्यमंत्री के घोषणा के संदर्भ में दो स्थलों पर पर्यटन विभाग द्वारा काम कराया जा रहा है। इसमें त्रिलोचन महादेव राजेपुर, जोगी वीर बाबा का विकास 88 लाख रुपये व पूर्वांचल के आस्था का केंद्र शीतला चौकियां धाम में 52 लाख रुपये की लागत से काम कराया जा रहा है। राजेपुर, जोगी वीर बाबा का कार्य चल रहा है जबकि चौकियां का टेंडर कराया जाना है। -कीर्तिमान श्रीवास्तव-क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी।
कहते हैं नागरिक
जनप्रतिनिधियों द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए दर्जनों बार घोषणाएं की गईं लेकिन खुशियां आते-आते रह जाती है। वजह कि शासन से मदद के लिए स्थानीय अधिकारी भी रूचि नहीं लेते हैं, उनकी शिथिलता के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है। -हुस्न आरा मंसूरी-बलुआघाट-सभासद।
पर्यटन के लिए तो जौनपुर में बहुत सी इमारतें व धार्मिक स्थल हैं। फिर भी यहां का समुचित विकास नहीं हो रहा है। जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की उदासीनता के कारण ऐसा हो रहा है। -चंद्रावती गुप्ता-ओलंदगंज-गृहिणी।
जिले में अनेकों ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल हैं, जिसमें शर्की कालीन इमारतें हैं। यहां पर्यटन की खूब संभावनाएं हैं। शाही पुल और शीतला चौकियां धाम पर्यटकों के मुख्य आकर्षक का केंद्र हैं। सभी ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थलों का विभिन्न दृष्टियों से अपना विशेष महत्व है। -जयप्रकाश सिंह-अधिवक्ता।
पर्यटन के लिए यहां और भी ऐसे स्थल हैं, जहां पर विकास कराया जा सकता है। इसके लिए सरकार व जिला प्रशासन को प्रस्ताव बनाकर भेजना चाहिए। जिससे जिले में उद्योग व रोजगार के अवसर और बढ़ सके। -डा.ब्रजेश यदुवंशी-शिक्षाविद्।