जौनपुर के इस थाने में 'दहशत के दरवाजे' का पांच दशक से नहीं टूट सका है 'तिलिस्म'
अंधविश्वास की यह दास्तां लगभग पांच दशकों से एक प्रचलित कहानी बन चुकी है। नेवढ़िया थाने का यह दरवाजा 48 सालों से लगातार बंद है, इसका खुलना अपशकुन से कम नहीं।
जौनपुर [सतीश सिंह] : अंधविश्वास की यह दास्तां लगभग पांच दशकों से एक प्रचलित कहानी बन चुकी है। नेवढ़िया थाने का यह दरवाजा 48 सालों से लगातार बंद है। इसका खुलना किसी अपशकुन से कम नहीं होता। जिसने खोलवाया उसका अनिष्ट तय। इसे खोलवाने के नाम पर कांपती है पुलिसकर्मियों की रूह भी। मान्यता ऐसी है कि किसी ने खाकी वर्दी वाले ने खोलने की हिम्मत की भी तो उसके साथ कोई न कोई हादसा हो गया तो कोई दुर्घटना में घायल तो किसी का तबादला हो गया।
विश्वास और अंधविश्वास की चादर
विश्वास और अंधविश्वास के बीच झूल रही ये दास्तां इलाके में चर्चाएं खास हैं। वर्ष 1970 में थाने के निर्माण के लिए जगह तलाश की गई तो किसी ने पीर बाबा की उस मजार के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जो परिसर के भीतर आ गई। इसी मजार पर एसओ के कार्यालय का निर्माण कराया गया। इसके बाद से ही वहां अनहोनी का दौरन शुरू हो गया। पहले तो इसे लोग सामान्य बात मानते रहे। फिर किसी का ध्यान बाबा की मजार की तरफ गया तो दिल में खौफ बैठ गया। इसके बाद कार्यालय के दरवाजे को बंद कर दिया गया।
गतिविधियां बाहर ही
एसओ बाहर ही बैठ कर जनसुवाई करने लगे। इसी बीच वहां तैनात त्रिवेणी पांडेय ने वर्ष 1974 में कार्यालय का दरवाजा खोल दिया। ठीक दो दिन बाद ही इटाएं बाजार में वे दुर्घटना के शिकार हो गए। उनके सिर में गंभीर चोट आई। घटना घटते ही थाने में फिर से खौफ छा गया। दरवाजे को पुनः बंद कर दिया गया। 6 साल बाद वर्ष 1980 में यहां आफताब आलम को तैनाती मिली। उन्होंने भी अंधविश्वास को दरकिनार करते हुए इस रूहानी दरवाजे को खोलवा दिया। इसके तुरंत बाद ही उनका यहां से तबादला हो गया। उनके स्थान पर यहां पर नजीम अहमद को भेजा गया। उनके आते ही सहयोगियों ने दरवाजे के तिलिस्म से दूर रहने की बात कहते हुए चेताया। उन्होंने भी इसे कोरी बकवास मानते हुए दरवाजा बंद कराने से मना कर दिया। हाल ये हुआ कि ताबड़तोड़ क्षेत्र में अपराध बढ़ गए। प्रशासन ने महज तीन दिन में उनका स्थानांतरण कर दिया।
अपशकुन की कहानियां
लगातार हो रहे घटनाक्रम को देख सभी ने इसे अपशकुन मानते हुए दरवाजे को फिर बंद कर दिया। इसके बाद तो किसी ने उस दरवाजे की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखा। परिसर के ही एक खुले स्थान पर सीमेंट शेड रख दिया गया है। अब यहां आने वाले एसओ अपना दफ्तर जमाने लगे, लेकिन ये भी कुछ ही दिन चला। पूर्व एसपी केके चैधरी के कार्यकाल में यहां करीब 4 लाख रूपये की लागत से खंडहर हो चुके सीमेंट शेड के ही स्थान पर दूसरा कार्यालय बनाया गया। वर्तमान एसओ विनोद यादव ने उसमें बैठना शुरू किया तो फिर क्षेत्र में अपराध का ग्राफ बढ़ गया। इससे घबरा कर वे भी नए कार्यालय से भाग खड़े हुए। इतना ही नहीं थाने के पश्चिमी गेट से भी पुलिस वाले किसी को अंदर नहीं आने देते। चाहे व कप्तान हों या आईजी, इस गेट का प्रयोग होने से घटनाए बढ़ जाती हैं।
क्या बोल रहे पीर : स्थानीय पीर अब्दुल मुईद का वहां की मजार को लेकर मानना है कि बाबा सबकी मुराद पूरी करते हैं। उनके साथ कोई मजाक करता है तो उसका अनिष्ट होता है।
थानाध्यक्ष बोले, मनोवैज्ञानिक दबाव : थानाध्यक्ष विनोद यादव का कहना है कि इसे लेकर लोगों के दिलोदिमाग पर मनोवैज्ञानिक दबाव सा हो गया। अब यहां इस बात को मान्यता है कि दरवाजा खोलने पर अनिष्ट हो जाता है, यदि हम खोलवाना भी चाहें तो लोग मान्यता का हवाला देकर नहीं खोलने देते।