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भाद्र कृष्ण गणेश चतुर्थी संकष्टी का व्रत आज, चंद्रोदय रात्रि 9.13 मिनट पर होगा

चतुर्थी तिथि छह अगस्त को रात्रि 1038 मिनट से लग गई है जो सात-आठ अगस्त को मध्य रात्रि के बाद 1217 मिनट तक रहेगी। चंद्रोदय रात्रि 913 मिनट पर होगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 08:31 PM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2020 11:13 AM (IST)
भाद्र कृष्ण गणेश चतुर्थी संकष्टी का व्रत आज, चंद्रोदय रात्रि 9.13 मिनट पर होगा
भाद्र कृष्ण गणेश चतुर्थी संकष्टी का व्रत आज, चंद्रोदय रात्रि 9.13 मिनट पर होगा

वाराणसी, जेएनएन। सनातन धर्म में भाद्र कृष्ण चतुर्थी अर्थात संकष्टी (बहुला श्री गणेश चतुर्थी) का अपना एक विशेष स्थान है। शास्त्र के अनुसार इस व्रत को उसी चतुर्थी में करना चाहिए जो कि चंद्रमा के उदय में व्याप्त हो क्योंकि संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा में भाद्र कृष्ण चौथ को चंद्रमा का उदय होने पर विघ्न विनाशक प्रथम आराध्य गणेश जी के साथ चंद्र पूजन और अघ्र्य देने का विधान है। यह चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी में व्रत की पूजा का विधान है। गणेश चतुर्थी व्रत इस बार सात अगस्त को पड़ रहा है।

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ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार चतुर्थी तिथि छह अगस्त को रात्रि 10:38 मिनट से लग गई है जो सात-आठ अगस्त को मध्य रात्रि के बाद 12:17 मिनट तक रहेगी। चंद्रोदय रात्रि 9:13 मिनट पर होगा।

पूजन विधि : इस दिन प्रात: व्रतीजन को नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नान करके सबसे पहले हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर संकल्प करना चाहिए। संकल्प में अमुख मास पक्ष तिथि वार का उच्चारण कर पुत्र, पौत्र, धन, विद्या, ऐश्वर्य तथा सभी प्रकार के कष्टों की निवृत्ति के लिए मय संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करूंगा या करूंगी। इस प्रकार संकल्प कर फिर  पंचोपचार गणेश पूजन कर दिन भर व्रत रहें। सायंकाल चंद्रोदय के समय गणेश जी का पूजन व चंद्रमा का पूजन कर भगवान गणेश जी को नैवेद्य में लड्डू, दुर्वा, काला तिल, गुड़, फल इत्यादि समर्पित करें। फिर रात्रि में चंद्रोदय होने पर यथाविधि चंद्रमा का पूजन करें। क्षीरसागर आदि मंत्रों से अघ्र्य दान करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि क्षीर समुद्र उत्पन्न है, सुधारूपा है। निशाकर आप रोहिणी सहित मेरे दिए हुए भगवान गणेश के प्रेम को बढ़ाने वाले अघ्र्य को ग्रहण कर रोहिणी सहित चंद्रमा के लिए नमस्कार है। ऐसा करने से व्रतियों की सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पुत्र-पौत्रादि के दीर्घायु के साथ ही पुत्रादि का सुख भी प्राप्त होता है।


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