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परिषदीय विद्यालयों में बोर्ड की तरह हो परीक्षा तो खुल जाएगी पठन-पाठन की पोल

परिषदीय विद्यालयों की परीक्षा भी बोर्ड परीक्षा या प्राइवेट विद्यालयों के तर्ज पर हो तो पूरी व्यवस्था की पोल खुल जाएगी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 10:17 PM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 08:30 AM (IST)
परिषदीय विद्यालयों में बोर्ड की तरह हो परीक्षा तो खुल जाएगी पठन-पाठन की पोल
परिषदीय विद्यालयों में बोर्ड की तरह हो परीक्षा तो खुल जाएगी पठन-पाठन की पोल

बलिया, जेएनएन। जिले में परिषदीय विद्यालयों के अर्धवार्षिक परीक्षा की समय सारणी सोमवार को विभाग की ओर से घोषित की गई। सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को बीएसए की ओर से यह निर्देश भी दिया गया है कि वे पूरी शुचिता के साथ कक्षा एक से आठ तक की परीक्षा को संपन्न कराएंगे। यदि वास्तव में परिषदीय विद्यालयों की परीक्षा भी बोर्ड परीक्षा या प्राइवेट विद्यालयों के तर्ज पर हो तो पूरी व्यवस्था की पोल खुल जाएगी। विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों और जिम्मेदार अधिकारियों के दायित्व निर्वहन का असल आकलन हो भी सकेगा। कोई भी इस सच से इनकार नहीं कर सकता कि सरकार परिषदीय विद्यालयों की बेहतरी के लिए मोटी रकम प्रति माह खर्च कर रही है लेकिन उस अनुपात में सुधार दिखाई नहीं देता। बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी या विभिन्न विद्यालयों प्रधानाध्यापक बेहतर शिक्षा की डफली भले ही वर्ष भर बजाते हैं, लेकिन धरातल की तस्वीर वैसी नहीं है। अधिकारी तमाम मामलों में केवल कागजी खानापूर्ति कर शासन की आंखों में भी धूल झोंक रहे हैं।

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आम अभिभावक चाहते हैं कि परिषदीय विद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ाएं लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही से शिक्षा व्यवस्था बेपटरी देख वे परिषदीय विद्यालयों की देखना बंद कर देते हैं। जिले में ऐसे गिने-चुने विद्यालय हैं जहां पढऩे वाले बच्चों की संख्या पर्याप्त दिखती है। उन्हीं विद्यालयों के नाम पर बेसिक शिक्षा विभाग जब देखो अपनी पीठ थपथपाते रहता है। विभाग की ओर से कभी उन विद्यालयों की चर्चा नहीं की जाती जहां विद्यालय के रजिस्टर में तो 150 से भी अधिक छात्रों की संख्या होती है, लेकिन विद्यालयों ें में किसी भी दिन एक या डेढ़ दर्जन से अधिक बच्चे दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे हालात तैनात शिक्षकों को द्वारा मन से नहीं पढ़ाने के चलते उत्पन्न हुए हैं।

मोटी तनख्वाह पाने वाले शिक्षक या जिम्मेदार अधिकारी अपने दायित्वों की सच्ची निष्ठा से निर्वहन करें तो बेसिक शिक्षा भी बेहतर हो सकती है, लेकिन जिम्मेदार लापरवाह लोगों पर कोई कारवाई करने के बजाय शिक्षकों की कमियों पर पर्दा डाल रखें हैं। वे शिक्षकों के गायब रहने, नहीं पढ़ाने की खुली छूट दे रखें हैं। जिले में ऐसे दर्जनों शिक्षक हैं जो जिले से बाहर रह कर किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं और खुद के स्थान पर कम वेतन में दूसरे युवकों से विद्यालयों में पढ़वाने का काम करते हैं। इसके बावजूद भी विभाग की ओर संबंधितों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। जिले के जिन प्राथमिक विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने की व्यवस्था की गई है। उसमें भी अभी तक समुचित व्यवस्था नहीं की जा सकी है। विगत कई माह से जिले में बीएसए की कुर्सी भी प्रभार पर ही चल रही है। इस कारण भी शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो रही है।


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