Move to Jagran APP

पर्यावरण संरक्षण की जरुरत : ग्लोबल वार्मिंग से धधक रही धरा, बढ़ता जा रहा पारा

आज का वातारण ग्लोबल वार्मिग की चपेट में आ गया है जिसके कारण धरती धधक रही है और तापमान का स्तर बढ़ता जा रहा है।

By Edited By: Published: Wed, 05 Jun 2019 02:39 AM (IST)Updated: Wed, 05 Jun 2019 01:46 PM (IST)
पर्यावरण संरक्षण की जरुरत : ग्लोबल वार्मिंग से धधक रही धरा, बढ़ता जा रहा पारा
पर्यावरण संरक्षण की जरुरत : ग्लोबल वार्मिंग से धधक रही धरा, बढ़ता जा रहा पारा

वाराणसी, जेएनएन। हाल के दिनों में पर्यावरण के जो हालात हुए हैं वह आगे आने वाले दिनों के लिए सचेत कर रहे हैं। आज का वातारण ग्लोबल वार्मिग की चपेट में आ गया है, जिसके कारण धरती धधक रही है और तापमान का स्तर बढ़ता जा रहा है। ऐसे में हमें जीवन और धरती मा को बचाना है तो पर्यावरण को हर हाल में बचाना होगा। वनों की कटाई के साथ ही जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले 100 वर्षो में पृथ्वी का संतुलन गड़बड़ा सकता है। ठंड व बारिश कम होगी और झुलसा देने वाली गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। कारण कि हर 50 साल में ही गर्मी का स्तर दोगुना होते जा रहा है।

loksabha election banner

1770 में जहां आसमान में कार्बन डाईआक्साइड की स्थिति 272 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) ही थी वहीं अब 380 पीपीएम से अधिक हो गई है। कम ठंडी व बारिश से तबाही का खतरा पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा स्थिति यानी प्रकृति के साथ लगातार हो रहे खिलवाड़ को देखते हुए तापमान 51 से अधिक भी हो सकता है। यह भी चेतावनी दी जा रही है कि ठंडी और बारिश कम होगी तो जीव-जंतु की तबाही होने लगेगी। भू-भौतिकी विभाग, बीएचयू के वैज्ञानिक प्रो. ज्ञान प्रकाश सिंह बताते हैं कि 1770 के समय ग्रीन हाउसेज का उत्सर्जन शुरू हुआ था। यह पृथ्वी से आसमान में जाने वाली कार्बन डाईआक्साइड पृथ्वी पर वापस कर देता है, जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा और गर्मी भी बढ़ रही है।

अगर अधिकाधिक वन या पेड़-पौधे रहते तो कार्बन डाईआक्साइड को सोख लेते, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। गर्मी के 22 और ठंड के मात्र 14 साल गर्मी का स्तर सबसे अधिक 1990 से बढ़ना शुरू हुआ है। 1901 से गर्मी का सबसे अधिक साल 22 से अधिक है। वहीं अधिक ठंड का साल महज 14 ही है। एक ओर जहा ठंड और बारिश घट रही है, वहीं धरती पर गर्मी का उबाल बढ़ते ही जा रहा है। स्थिति यह है कि पिछले शताब्दी वर्ष के मुताबिक गर्मी अब 30 प्रतिशत बढ़ गई है। प्रो. सिंह ने बताया कि 1901 से 1950 तक गर्मी के बढ़ने का स्तर .07 डिग्री था। वहीं यह आंकड़ा दोगुना होते हुए 1951 से 2000 तक 0.13 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है।

तबाही के ये हैं कारक

- बेतहासा जनसंख्या वृद्धि

- वनों की कटाई

- बढ़ रही इमारतें, घट रही धरती

- जहर उगल रहे वाहनों के प्रदूषण

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.