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प्रख्यात साहित्यकार डा. विवेकी राय का ब्रेन हैमरेज के बाद निधन

तीन बार राष्ट्रपति पुरस्कार से अलंकृत व यश भारती से सुशोभित प्रख्यात साहित्यकार डा. विवेकी राय का मंगलवार की भोर में 4.45 बजे महमूरगंज स्थित एक निजी अस्पताल में निधन हो गया।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 22 Nov 2016 08:06 PM (IST)Updated: Wed, 23 Nov 2016 09:35 AM (IST)
प्रख्यात साहित्यकार डा. विवेकी राय का ब्रेन हैमरेज के बाद निधन

वाराणसी (जेएनएन)। तीन बार राष्ट्रपति पुरस्कार से अलंकृत व यश भारती से सुशोभित प्रख्यात साहित्यकार डा. विवेकी राय का मंगलवार की भोर में 4.45 बजे महमूरगंज स्थित एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। उन्हें दो नवंबर को ब्रेन हैमरेज के बाद भर्ती कराया गया था। गार्ड आफ आनर के पश्चात उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर दोपहर बाद किया गया। मुखाग्नि उनके छोटे बेटे डा. दिनेश राय ने दी।
उनकी मौत की सूचना मिलते ही जिले में शोक की लहर दौड़ गई। प्रबुद्धजनों की ओर से शोक संवेदना व्यक्त करने का दौर शुरू हो गया। सोशल मीडिया के जरिये भी लोगों ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त की। डा. विवेकी राय भोजपुरी व हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में 50 से अधिक पुस्तकें लिखीं। वह गाजीपुर के भांवरकोल विकासखंड क्षेत्र के सोनवानी गांव के रहने वाले थे।

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ग्रामीण पृष्ठभूमि पर अधिकांश रचनाएं : उनका जन्म 19 नवंबर सन 1924 को हुआ था। उनके पिता का नाम शिवपाल राय व माता का नाम जदिति राय था। उनकी अधिकांश रचनाएं ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित हैं जिसमें उन्होंने बड़ी सजीवता के साथ गंवई परिवेश को उकेरा है। ललित निबंध विधा में डा. विवेकी राय की गणना आचार्य हजारी प्रसाद, डा. विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय की परंपरा में की जाती है। उन्होंने अपने जीवन में कई लोकप्रिय कहानियों का संकलन समाज को दिया। लगातार छह दशक से कहानी साहित्य की समस्त पीढिय़ों व आंदोलनों को आत्मसात करते हुए इस क्षेत्र में कलम चलाकर ग्राम-जीवन के यथार्थ व इसके सुख-दुख को प्रमाणिक रूप से प्रस्तुत करते हुए एक कीर्तिमान स्थापित किया है। उनकी कहानियां वृहत्तर रचनात्मक सरोकारों के साथ संपूर्ण भारत के गांवों का साक्षात कराती हैं। डा. विवेकी राय टुच्ची राजनीति व विकास के खोखले दावों से दो—दो हाथ करते प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु के बाद गांव की संवेदनशील पृष्ठभूमि पर लिखने वाली पीढ़ी के सबसे सशक्त कथाकारों की श्रेणी में शिखरस्थ हैं। उन्हें हिंदी साहित्य में योगदान के लिए वर्ष 2001 में महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार एवं 2006 में यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही उन्हें देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम व पूर्व मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने भी सम्मानित किया। उनकी कृतियों में ललित निबंध, कथा साहित्य व कविताएं प्रमुख रूप से शामिल हैं।


अंतिम दर्शन को लगा तांता : इससे पहले डा. विवेकी राय के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए डीएलडब्ल्यू केंद्रीय विद्यालय वाराणसी के 9-ए शिक्षक आवास कंचनपुर में रखा गया था। अंतिम दर्शन के लिए लोगों का तांता लग गया। यहां पर रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा व पूर्व नगर आयुक्त लालजी राय, भाजपा नेता आनंद राय मुन्ना, दीपक यादव, मनोज राय, विभव राय आदि ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। दोपहर बाद कंचनपुर से ही एक वाहन पर इनके पार्थिव शरीर को रखकर शवयात्रा निकाली गई। कचौड़ी गली से उनके चाहने वालों ने अर्थी को कंधे पर उठाकर मणिकर्णिका घाट तक पहुंचाया। मणिकर्णिका घाट पर उनके पार्थिव शरीर को उस स्थान पर रखा गया जहां काशी नरेश डा. विभूति नारायण सिंह का दाह संस्कार हुआ था। चिता पर शव रखने के उपरांत पुलिस के सशस्त्र जवानों ने उन्हें गार्ड आफ आनर दिया। इसके बाद इनके छोटे पुत्र डाक्टर दिनेश राय ने मुखाग्नि दी। घाट पर उनकी जलती चिता को देख सैकड़ों लोगों की आंखें नम हो गईं। इस दौरान अधिवक्ता शेषनाथ राय, कर्नल ब्रह्मïानंद, डा. गजाधर शर्मा, डा. त्रिभुवन राय, पूर्व नगर आयुक्त लालजी राय, महापौर रामगोपाल मोहले, डा. रामाज्ञा शशिधर व वेद प्रकाश पांडेय समेत सैकड़ों लोग मौजूद थे।


डा. विवेकी राय की प्रमुख रचनाएं-
सोनामाटी—1983, अमंगलहारी—2000, समर शेष है, उठ जा मुसाफिर, नमामि ग्रामम, देहरी के पार, श्वेत पत्र, हिंदी साहित्य की किसान कलम, लोकऋण, सामल गमला, मंगल भवन, विवेकी राय की लोकप्रिय कहानियां, निवेदिता, विवेकी राय का कथा साहित्य और सामाजिक चेतना।

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