वासंतिक नवरात्र : शक्ति आराधना का व्रत पर्व इस बार आठ दिन, छह अप्रैल को आरंभ
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा इस बार छह अप्रैल को पड़ रही है इस बार चैत्र शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि की हानि से यह पखवारा 14 दिनों का ही होगा।
वाराणसी [प्रमोद यादव]। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सनातनियों में मातृ शक्ति को सम्मान देने की परंपरा युगों पुरानी है। इससे ही जुड़ा है शक्ति आराधना का महापर्व नवरात्र जो वर्ष में दो बार मनाया जाता है। नौ रात्रियों तक व्रत से इस व्रत-पर्व श्रृंखला को नवरात्र कहा गया। इसमें वासंतिक व शारदीय नवरात्र प्रमुख व प्रचलित है। वासंतिक नवरात्र का आरंभ भारतीय नव वर्ष के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है और रामनवमी को समापन किया जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा इस बार छह अप्रैल को पड़ रही है। इस बार चैत्र शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि की हानि से यह पखवारा 14 दिनों का ही होगा। इसके चलते तिथियां आगे-पीछे हो रही हैं जिससे महाअष्टमी व नवमी का व्रत और पूजन 13 अप्रैल को किया जाएगा। इसी दिन नौ देवियों में अष्टम महागौरी व नवम सिद्धिदात्री का दर्शन भी किया जाएगा।
घट स्थापन 11.35 से 12.24 तक : प्रतिपदा की सुबह वैधृति योग होने से घट स्थापन के लिए श्रेयस्कर काल अभिजीत मुहूर्त होगा जो सुबह 11.35 से 12.24 बजे तक मिल रहा है। शास्त्रों में कहा गया है कि 'वैधृति पुत्र नाशा:' अर्थात वैधृति योग में घट स्थापन से पुत्र नाश होता है।
महानिशा पूजन 12-13 की रात : नवरात्र में महानिशा पूजा व होम का विशेष महत्व है। यह अनुष्ठान 12-13 अप्रैल की रात्रि में किया जाएगा। नवरात्र का होम आदि 13 अप्रैल को प्रात: 8.16 के बाद किया जाएगा। नवरात्र व्रत का पारन 14 अप्रैल को किया जाएगा।
अश्व पर आगमन भैंसा पर गमन : वासंतिक नवरात्र में इस बार माता का आगमन अश्व पर हो रहा है तो गमन यानी वापसी भैंसा पर होगा। माता का आगमन व गमन इस बार दोनों ही अशुभ वाहनों पर होना अशुभ फलदायी माना जा रहा है। इससे देश पर विपत्ति, किसी बड़े राजनेता का निधन, प्राकृतिक आपदा सहित शोक -रोग आदि देखने को मिल सकता है।
पूजन विधान : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि विशेष पर प्रात: नित्य कर्मादि-स्नानदि कर हाथ में गंध -अक्षत-पुष्प जल लेकर संकल्पित हो ब्रह्मा जी का आह्वान करना चाहिए। आगमन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत-पुष्प, धूप- दीप, नैवेद्य-तांबूल, नमस्कार-पुष्पांजलि व प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करना चाहिए। नवीन पंचांग से नववर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनाधीप, धान्याधीप, दुर्गाधीप, संवत्वर निवास और फलाधीप आदि का फल श्रवण करना चाहिए। निवास स्थान को ध्वजा-पताका, तोरण-बंदनवार आदि से सुशोभित करना चाहिए।
वैधृति योग समाप्त होने पर अभिजीत मुहूर्त में देवी पूजन के निमित्त तय स्थल को सुसज्जित कर घट स्थापना करनी चाहिए। नवरात्रि व्रत संकल्प कर गणपति व मातृका पूजन करना चाहिए। लकड़ी के पटरे पर पानी में गेरू घोल कर नौ देवियों की आकृति बना कर नौ देवियों अथवा सिंह वाहिनी दुर्गा का चित्र या प्रतिमा पटरे पर या इसके पास रखनी चाहिए। पीली मिïट्टी की एक डली व एक कलावा लपेट कर उसे गणेश स्वरूप में कलश पर विराजमान कराने के साथ ही घट के पास गेहूं या जौ का पात्र रखकर वरुण पूजन और भगवती का आह्वान करना चाहिए। नवग्रह पूजन, षोडश मातृका स्थापन और पराम्बा का विधिवत षोडशो या पंचोपचार पूजन करना चहिए।