Eid-ul-Fitr 2020 Varanasi में चांद का हुआ दीदार, आज घरों में मनाई जा रही ईद
वाराणसी में लोगों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी और चांद साफ नजर आ गया। वहीं 25 मई यानी सोमवार को ईद मनाई जाएगी।
वाराणसी, जेएनएन। परहेजगारी और इबादतगुजारी के साथ रविवार को 30 रोजे मुकम्मल करने वालों को बदले में ईद की खुशियां मिलीं। मगरिब की नमाज के बाद रोजेदार छतों पर चढ़े और आसमान में चांद को तलाशने लगे। लॉकडाउन का लाभ ये रहा कि प्रदूषण न होने के कारण लोगों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी और चांद साफ नजर आ गया। इसके बाद शुरू हुआ मुबारकबाद देने का सिलसिला, जो सोशल साइट पर देर रात तक चलता रहा।
दिन में उमस व भीषण गर्मी झेलते हुए रोजेदार रमजानुल मुबारक के आखिर दिन भी इबादत में मशगूल रहे। शाम को इफ्तार की दस्तरख्वान पर लजीज व्यंजनों के साथ तरह-तरह के शर्बत से सज गए। अजान की सदा सुनते ही सुन्नत तरीके से रोजा खोलकर रोजेदारों ने रब का शुक्रिया अदा किया। नमाज अदा करने के बाद घर-घर कोरोना से निजात व मुल्क के तरक्की की दुआ मांगी गई।
कोरोना संक्रमण के मद्देनजर मस्जिदों व ईदगाहों में ईद की नमाज अदा करने पर पाबंदी है। ऐसे में उलमा-ए-कराम ने मस्जिदों में पहले की तरह ही इमाम व मुअज्जिन के अलाव तीन लोगों के ही नमाज अदा करने की अपील की है। कहा कि लॉकडाउन में पंचवक्ता व जुमे की नमाज को लेकर जिन नियम-कायदों का अब तक पालन किया गया है, आगे भी पाबंदी करें। ईद की नमाज घरों में अदा करें।
ईद का धार्मिक पक्ष
प्रमुख इस्लामिक विद्धान मौलाना साकीबुल कादरी के मुताबिक ईद रमजान की कामयाबी का तोहफा है। नबी का कौल है कि रब ने माहे रमजान का रोजा रखने वालों के लिए जिंदगी में ईद और आखिरत में जन्नत का तोहफा मुकर्रर कर रखा है। यानी रमजान में जिसने रोजा रखा, इबादत की और नबी के बताए रास्तों पर चला है, तो उसके लिए ईद एक तोहफा है।
खुशियां बांटने का देता है पैगाम
आला हजरत इमाम अहमद रजा खां फाजिले बरेलवी पर रिसर्च करने वाले प्रमुख उलमा मौलाना डा. शफीक अजमल की मानें तो ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीनेभर इबादत करके नेकियों की जो पूंजी जमा की उसे बुरे व बेहूदा कामों में बर्बाद न करें, बल्कि ईद का मतलब है दूसरों में खुशियां बांटना। यह पूरी इंसानियत के लिए मुश्किल वक्त है। पास-पड़ोस में नजर रखें। कोई भूखा तो नहीं, किसी के पास पैसों की तंगी तो नहीं, कोई ऐसा बच्चा जिसके पास खेलने के लिए कोई खिलौना न हो आदि बातें मौजूद हैं तो उन लोगों की मदद करना हर किसी का फर्ज है। दूसरों की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है। तभी तो रमजान में जकात, फितरा, सदका निकालने का हुक्म है, ताकि कोई गरीब, मिसकीन, यतीम, बेवा, फकीर नए कपड़ों व ईद की खुशी से महरूम न रह जाए।
फासले रखकर से मिलाएंगे दिल
ईद पर गले मिलकर मुबारकबाद देने का रिवाज है। लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर लजीज सेंवई का लुत्फ उठाते हैं। मगर इस बार कोरोना के मद्देनजर ईद पर गले मिल कर बधाई देने से लोग परहेज करेंगे। मुबारकबाद देने के लिए फासले तो होंगे, लेकिन दिल एक-दूसरे से जुदा नहीं होंगे।