Move to Jagran APP

ई हौ रजा बनारस : साइकिल पर राहुल की 'झाल' में दाना का बाना, ताकि जिंदा रहे तराना

अकस्मात ही कानों में सांध्यकालीन राग सोहनी के आलाप की मिठास कानों में मिश्री की तरह घुलती चली जाती है, कदमों की रफ्तार खुद- ब- खुद ठिठकती चली जाती है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 31 Jan 2019 10:30 PM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2019 06:45 AM (IST)
ई हौ रजा बनारस : साइकिल पर राहुल की 'झाल' में दाना का बाना, ताकि जिंदा रहे तराना
ई हौ रजा बनारस : साइकिल पर राहुल की 'झाल' में दाना का बाना, ताकि जिंदा रहे तराना

वाराणसी [कुमार अजय]। माघ महीने की ओस में भीनी एक शर्मीली सी शाम अस्सी घाट की। हर तरफ रौनकों की बरात। मानो खिला-खिला रही हो सारी कायनात। अकस्मात ही कानों में सांध्यकालीन राग सोहनी के आलाप की मिठास कानों में मिश्री की तरह घुलती चली जाती है। कदमों की रफ्तार खुद-ब-खुद ठिठकती चली जाती है। हम अपने आपको लगभग सम्मोहन की स्थिति में पाते हैं।

loksabha election banner

जिज्ञासा की डोर से बंधे सुरों के उद्गम की ओर खिंचे चले जाते हैं। घाट के चौड़े प्लेटफार्म की सीढिय़ों के नीचे लम्बी चौड़ी पथरीली मढ़ी के पीछे नजर आता है सुदर्शन व्यक्तित्व वाला एक नौजवान भूजा के ठोंगों से सजी और लाल रंग की बत्ती से जगमगाती अपनी अनूठी साइकिल पर ही झाल-मुड़ी की दुकानदारी करता हुआ। अपने चटपटे 'आइटम' में लइया चना-तेल-नून मिर्ची टमाटर के साथ सुर-ताल का स्वाद अलग से भरता हुआ। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं की टोली झाल-मुड़ी में सुर-ताल का तड़का देने वाले इस सुरीले सौदागर के इर्दगिर्द रसिया भौरों की तरह घूम रही हैं। झाल की कुरुर-मुरुर की ताल के साथ चल रही सुरों की अद्भुत युगलबंदी के जादू में बंधी दीवानों सी झूम रही है। 

बनल रहे मन-मिजाज, तनल रहे काया

बाबा परसन्न रहे, उफ्फर परे माया

जैसे अड़भंगी बनारसी फलसफे की सही मायने में नुमाइंदगी कर रहे और संगीत साधना के लिए झाल-मुड़ी के ठोंगे भर रहे इस नौजवान का नाम है राहुल। एक तरफ बचपन से ही संगीत सीखने की धुन। दूसरी ओर घर की माली हालत में लगा बदनसीबी का घुन। ऐसे में कुछ कर गुजरने की लगन जौनपुर के राहुल को बनारस खींच लाई। सिर्फ एक जुनून का सहारा जेब में आना न पाई। शुरु में सड़कों की धूल फांकते बनारसी फक्कड़ई से तआर्रुफ किया, हौसला बांधा और अपनी साईकिल को ही अपनी किस्मत का दारोमदार सौंप दिया। 

बतातें हैं राहुल 'हिम्मत बांध कर नई लीक बनाई, साइकिल को ही रेहड़ी का रूप दिया और बेझिझक बेचने लगा चना-लाई। खुद अपने आप खड़ा हुआ, फीस का जुगाड़ किया और बाकायदा एक छात्र की हैसियत से बीएचयू के संगीत विभाग का पहली बार दीदार किया। शाम को रोजाना घाट पर फुन्नीदाना की रेहड़ लगाता हूं। दिन में क्लास की पूरी हाजिरी, रात नियमित रियाज में बिताता हूं।' 

अपने इस हासिलात का पूरा श्रेय राहुल शहर बनारस के पानी की उस तासीर को देतें हैं जो जीने की चाह के साथ ही मोक्ष की राह भी बताती है। निर्विकार परमहंसी भाव की तटस्थता के साथ मुश्किलों से लडऩा भी सिखाती है। उन्हें पूरा यकीन है कि उनका यह जोशीला प्रयास रंग लाएगा। अस्सी घाट का यह सुरीला झाल-मुड़ी वाला एक दिन शहर के ख्यात गवैये के रूप में पहचाना जाएगा। 

तुम जैसे मेहरबां का सहारा है दोस्तों : राहुल तहे दिल से शुक्रगुजार है अपने सहपाठियों व दोस्तों के जिन्होंने अपनी अथक कोशिशों से राहुल का संकोच तोड़ा। उसके फैसले के साथ खड़े रहकर उसका हौसला बढ़ाया। बतातें हैं राहुल- 'कक्षा के संगियाने के अलावा उसके क्लास मेट्स अकस्र ही टहलते हुए घाट तक आते है। झाल मुड़ी का स्वाद लेते हुए उसकी बंदिशें सुनते हैं और वाह...वाह की झड़ी से उसका उत्साह बढ़ाते हैं।'


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.