सोंधी मिट्टी का स्वाद कहीं छीन न ले आपके बच्चे के जीवन से खुशियां
बच्चों का मिट्टी खाना अभिभावक अगर नजरअंदाज करेंगे तो बच्चों की सेहत को खतरा होने की संभावना है।
वंदना सिंह, वाराणसी : बच्चों का मिट्टी खाना उनके नटखटपन का हिस्सा समझकर अभिभावक नजरअंदाज कर देते हैं। मगर आपको बता दें कि वक्त के साथ यह सोंधी मिट्टी का स्वाद बच्चे के जीवन के लिए घातक हो सकता है। इतना ही नहीं अगर बच्चे ने लंबे समय तक यानी दो-तीन सालों तक ज्यादा मात्रा में मिट्टी खा ली तो बड़े होने पर वह कुपोषण, नपुंसकता का भी शिकार हो सकता है। वहीं एनीमिया, कार्डियो, लीवर समस्या, पाचनक्रिया का बिगड़ना, जोड़ों में दर्द, किडनी डैमेज, जोड़ों में दर्द, आयरन डिफिशियंसी, डायरिया, मसूड़ों का नीला होना आदि की भी शिकायत हो सकती है।
वाराणसी में राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अजय कुमार बताते हैं कि प्रतिदिन अस्पताल में ऐसे बच्चे हैं जो मिट्टी खाने से बीमार हो जाते हैं। उन बच्चों का पेट काफी फूला हुआ होता है। आयुर्वेद में पांडु रोग यानी एनीमिया को कहते हैं और बच्चों क ो मिट्टी ज्यादा खाने पर यह बीमारी हो सकती है।
दरअसल मिट्टी खाने से बच्चे पेट में कीड़े हो जाते हैं। यह तीन प्रकार के होते हैं थ्रेड वर्म, पिन वर्म और एस्केरिस वर्म। इसमें एस्केरिस यानी सामान्य बोली में केंचुआ सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। जिन बच्चों के पेट में यह हो जाता है वह जानलेवा साबित हो सकता है। एक केंचुआ 24 घंटे में दो से तीन एमएल ब्लड सप्लाई पी जाता है। अगर पेट में कई केंचुए हुए तो बहुत बुरी स्थिति होगी। कीड़े पाचन क्रिया को प्रभावित कर जठराग्नि कम कर देते हैं इससे पाचन क्रिया गड़बड़ हो जाती है बच्चों को पेट फूल जाता है। बच्चा कुपोषित हो जाता है और आगे चलकर नपुसंक भी हो सकता है। इसके साथ ही उसे क ई गंभीर बीमारियां भी आसानी से अपनी गिरफ्त में ले सकती हैं। हालांकि आयुर्वेद में इसका काफी सरल उपचार है मगर बेहतर हो कि बच्चे को मिट्टी खाने से रोक दें।