Move to Jagran APP

ई हौ रजा बनारस : काठ का शिवालय, शिल्प वैभव का हिमालय

कुमार अजय, वाराणसी : किसी भी धर्म प्राण के मन में किन्हीं कारणों से नेपाल के प्रसिद्व पशुपति

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Apr 2018 12:24 PM (IST)Updated: Mon, 16 Apr 2018 04:38 PM (IST)
ई हौ रजा बनारस : काठ का शिवालय, शिल्प वैभव का हिमालय
ई हौ रजा बनारस : काठ का शिवालय, शिल्प वैभव का हिमालय

कुमार अजय, वाराणसी : किसी भी धर्म प्राण के मन में किन्हीं कारणों से नेपाल के प्रसिद्व पशुपति नाथ देवालय में हाजिरी दर्ज न कर पाने की टीस कचोटती हो तो इसका समाधान काशी में हो सकता है। यहां गंगा किनारे ललिता घाट के शीर्ष पर देवी ललिता के साथ देवाधिदेव पशुपतिनाथ स्वयं विराजते हैं। अंतर बस इतना है कि यहां उनका स्वरूप पंचमुखी विग्रह का न होकर लिंग प्रतीक में है।

loksabha election banner

श्रद्धालुओं की आस्था को देखें तो यह देवस्थान काशी में गंगावतरण के पूर्व का बताया जाता है, किंतु ऐतिहासिक अभिलेखों की गवाही लें तो जानकारी मिलती है कि अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में तत्कालीन नेपाल नरेश राजेंद्र वीर विक्रम शाह ने ने अपनी महारानी लक्ष्मी देव शाह की स्मृति में शिल्प कला के वैभव से मंडित इस देवालय का निर्माण कराया था। दक्षिण में स्थित पद्मनाभपुरम के प्राचीन राज प्रासाद के बाद यह देश का दूसरा काष्ठ शिल्प वैभव है।

काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ धाम के दक्षिण पूर्वी कोण पर अवस्थित इस मंदिर की विशेषता है इसका वास्तु शिल्प और काष्ठ कला। मंदिर के पुजारी पं. देवेंद्र के साथ मंदिर प्रांगण में पहला कदम रखते ही शीर्ष कलश की सुनहरी आभा आंखों को चौंधिया देती है। ऊपर से नीचे की ओर लहर लेती वलयाकार छतें देखने में तिब्बत व जापान के बौद्ध 'पगोडाओं' की अनुकृति का भान कराती है। मंदिर के अंदर की दीवारें, खिड़कियां, दरवाजे से लगायत झरोखे तक काठ पर उकेरे गए विभिन्न चित्रों से अलंकृत हैं। चित्रांकन भी ऐसा जीवंत मानो काठ की ये छवियां अब बोलीं की तब बोलीं। देव-देवियों, यक्ष-किन्नरों के अलावा कपाटों पर उत्कीर्ण ऋषि वात्स्यायन के कामसूत्र पर - आधारित मिथुन मूर्तियां काशी में अपने ढंग की अकेली हैं।

पं. देवेंद्र बताते हैं कि देवालय को पूर्णता प्राप्त शिवालय के रूप में प्रतिष्ठित करने की दृष्टि से पा‌र्श्व में ही शक्ति स्वरूपा मां ललिता की प्रतिमा स्थापित है। गंगा को सरोवर मानकर ललिता घाट की सुंदर सीढि़यों का निर्माण कराया गया है। साथ में फुलवारी, धर्मशाला व पुजारी के निवास के लिए अलग-अलग कक्ष बनाए गए हैं। काठ के अलबेले मंदिर को मार न जाए काठ

हमारे पथ प्रदर्शक पं. देवेंद्र समय काल की मार उपेक्षा के चलते शिवालय के छीजती 'श्री' को लेकर व्यथित ही नहीं चिंतित भी हैं। दिखाते हैं कि किस तरह चूलें हिल जाने के कारण काठ की दीवारें फटने लगी हैं। वर्षा का पानी इन फांफरों से होकर किस तरह नींव तक जा रहा है। अवैध निर्माण के चलते प्रांगण संकुचित होता जा रहा है। नियम तोड़कर बनाए गए भवन किस तरह मंदिर के सौंदर्य को नष्ट कर रहे हैं। उनकी फिक्र इस बात को लेकर है कि सहेज-संभाल न हुई तो इस अनूठे काठ के मंदिर को कब 'काठ' मार जाए कहा नहीं जा सकता। कील कांटा तक नेपाल का

नेपाली शिल्पियों द्वारा रची गई इस रचना के शिल्प में ही नहीं सामग्री के रूप में भी जो कुछ प्रयुक्त हुआ है वह खालिस नेपाली है। पं. देवेंद्र के मुताबिक कीट क्षरण से सुरक्षित विशेष प्रकार के काष्ठ खंड और खपरैल के अलावा कील-काटे तक उस समय नेपाल से ही मंगाए गए थे। स्वर्ण कलश को भी नेपाली कारीगरों द्वारा ही गढ़वाया गया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.