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ई हौ रजा बनारस - वे मृत्यु का महोत्सव मनाने आते हैं यहां

'सभी लोगों के त्रिताप को हरने वाली वाराणसीपुरी योगाभ्यास विहीन लोगों कि अंतिम समय में मारक मंत्र द्वारा एकाकार करने में सक्षम है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Jul 2018 09:45 AM (IST)Updated: Sun, 15 Jul 2018 09:45 AM (IST)
ई हौ रजा बनारस - वे मृत्यु का महोत्सव मनाने आते हैं यहां
ई हौ रजा बनारस - वे मृत्यु का महोत्सव मनाने आते हैं यहां

कुमार अजय, वाराणसी : 'सभी लोगों के त्रिताप को हरने वाली वाराणसीपुरी योगाभ्यास विहीन लोगों के अंतिम समय में तारक मंत्र द्वारा जीवात्मा और परमात्मा को एकाकार करने में सक्षम है, और इस प्रकार वह जीव का ब्रह्मा से साक्षात्कार करा देती है। जिसके दर्शन के पश्चात पुनर्जन्म नहीं होता।'

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तर्क-वितर्क से परे जो भी सनातन शास्त्रों की इस उक्ति पर अगाध विश्वास रखता है, वह जीव तथा ब्रह्मा के मिलन के इस अवसर को एक महोत्सव की तरह देखता है। प्राण काशी में ही छूटे यह कामना लेकर इस मोक्ष नगरी में आता है। मृत्यु ही परम सत्य है और मोक्ष ही है अभीष्ट। सनातन जीवन दर्शन का यह सूत्र वाक्य अंतिम समय में उसका मार्गदर्शन करता है और वह इसी चरम लक्ष्य की प्राप्ति के मुक्ति भवन की अंगनाई में पांव धरता है।

काशी नगरी में 'मुक्ति द्वार' के नाम से प्रतिष्ठित इसी ठांव पर आज हमारी मौजूदगी है दुनिया के अपनेआप में अनूठे इस भवन विशेष के रहस्यों को जानने की गरज से, हम बैठे हैं मुक्ति भवन की दालान में यहां के प्रबंधक पं. भैरव नाथ शुक्ल के सामने जिज्ञासा के समाधान की अरज से। बताते हैं पंडित जी- मृत्यु लाभ की कामना से आयोजित हमारे यहां का अनिश्चितकालीन प्रवास मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं एक दृढ़ संकल्पित समारोह है, बंधनों से मुक्ति के मोक्ष राग का आरोह व अनंत पथ के यात्रा गीत का अवरोह है। 'काश्यां मरणात् मुक्ति' का संदेश जब एकमेव ध्येय बन जाता है तो सामने खड़ी मृत्यु का आवाहन करता मोक्षार्थी बिना किसी असमंजस के हमारे आंगन में खिंचा चला आता है।'

वह जानकारी देते हैं कि डालमिया चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से मात्र 'काशी लाभ' की दृष्टि से संचालित इस प्रकल्प में देश-दुनिया के मोक्षार्थी अपने परिजनों व शुभेच्छुओं के साथ आते, नैत्यिक पूजन-हवन, अभिषेक व अखंड भगवत नाम जाप का पुण्य लेते हुए दो-चार-दस दिन में मोक्ष की अनंत यात्रा पर निकल जाते हैं। बताते हैं पंडितजी प्रकल्प ऐसे मोक्षार्थियों को सिर्फ छत और देखभाल की सेवा ही नहीं देता, बल्कि उसके भावनात्मक संबल के लिए विविध यत्नों से वातावरण भी बनाता है। जरूरत पड़ने पर उनके दाह संस्कार की पूरी जिम्मेदारी निभाता है। हम सभी मोक्षार्थियों को पुण्य पथिक के रूप में जानते हैं, उन्हें जगत पिता और जगत माता की तरह पूरा मानते हैं। पंडितजी के सहयोगी कालीकांत दुबे आंकड़ों का रजिस्टर खंगालते हैं और बताते हैं कि बीते 60 वर्षो में मुक्ति भवन के द्वार से कुल 14741 मोक्षार्थी गोलोक के लिए प्रयाण कर चुके हैं, मायापाश की अंधेरी कारा से निकल कर दिव्य प्रकाश की अजस्त्र धारा में स्नान कर चुके हैं।

बताया जाता है कि मुक्ति भवन में अंतिम विश्राम के लिए कोई लंबी-चौड़ी प्रक्रिया नहीं है। कुछ जरूरी औपचारिकताओं के बाद मोक्षार्थी के परिजनों को प्रवेश पत्र जारी कर दिया जाता है। मृत्यु के बाद नगर निगम को सूचित कर मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करा दिया जाता है। शुक्लाजी के मुताबिक वैसे तो देश-दुनिया के सभी प्रांतों के मोक्षार्थी काशी लाभ के लिए आते हैं, मगर इनमें भी बिहार और बंगाल के मोक्षार्थी ज्यादा पाए जाते हैं।

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छह दशक से प्रज्ज्वलित है अखंड ज्योति

'मोक्ष की दशा अनंत है, अभेद है, अखंड है' इस धर्मसूत्र के प्रतीक रूप में मुक्ति भवन के देवालय में छह दशक से एक अखंड ज्योति जल रही है। भवन के प्रबंधक पं. भैरवनाथ शुक्ल बताते हैं कि सत्य नारायण कथा, रुद्राभिषेक तथा अखंड कीर्तन के अलावा शिव पंचाक्षरी नम: शिवाय् के जाप का प्रसारण भी 24 घंटे चलता रहता है।


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