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काशी में मिली डा. लोहिया के जीवन को नई दिशा, मणिकर्णिका घाट ने गैरबराबरी की लड़ाई की प्रेरणा दी

समाजवाद को नई दिशा देने वाले डा. राम मनोहर लोहिया के जीवन को नई दिशा काशी में मिली थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 23 Mar 2020 06:26 PM (IST)Updated: Mon, 23 Mar 2020 06:31 PM (IST)
काशी में मिली डा. लोहिया के जीवन को नई दिशा, मणिकर्णिका घाट ने गैरबराबरी की लड़ाई की प्रेरणा दी
काशी में मिली डा. लोहिया के जीवन को नई दिशा, मणिकर्णिका घाट ने गैरबराबरी की लड़ाई की प्रेरणा दी

वाराणसी [ शाश्‍वत मिश्र ]। समाजवाद को नई दिशा देने वाले डा. राम मनोहर लोहिया के जीवन को नई दिशा काशी में मिली थी। यहीं मणिकर्णिका घाट पर गरीब-अमीर की एक साथ जलती चिता देखकर गैरबराबरी के खात्मे के चिंतन की शुरुआत हुई थी तो राजनारायण के नेतृत्व में विश्वनाथ मंदिर में दलित प्रवेश के आंदोलन की प्रेरणा भी यहीं बने थे।

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बीएचयू में भी ग्रहण की शिक्षा 

डा. लोहिया 1925 में बनारस आए। यहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उन्होंने 12वीं की शिक्षा ग्रहण की। इसी दौरान उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म से जुड़ी किताबों का अध्ययन किया। यहीं सबसे पहले उनके अंदर हिंदी भाषा को लेकर सम्मान की भावना विकसित हुई। यही भावना आगे जाकर उनकी इस धारणा की नींव बनी कि भारतीय भाषाओं को सरकारी कामकाज तथा सभी स्तरों पर अध्ययन का आधार बनाए बिना भारतीय नागरिकों की मानसिक दासता समाप्त नहीं की जा सकती। इतिहास के प्रति उनकी रुचि भी यहीं पैदा हुई थी।

वाराणसी में ही पैदा हुआ नेहरू के प्रति प्रेम 

डा. लोहिया जब 12वीं की शिक्षा ग्रहण करने बनारस आए तभी जवाहर लाल नेहरू की गतिविधियों और उनके विचारों के प्रति आकृष्ट हुए। अक्सर वे और उनके मित्र नेहरू पर चर्चा और विमर्श किया करते थे। इसी का असर उन पर पड़ा।

जब महामना से मांगी नौकरी 

लोहिया  ने बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में अपना शोध पूरा किया था। इस विषय पर उनकी अच्छी पकड़ थी। वहां से वापस  आने के बाद उन्होंने मालवीय जी से काशी हिंदू विश्व विद्यालय में पढ़ाने की इच्छा जाहिर की थी। मालवीय जी इसके लिए सहर्ष तैयार थे लेकिन उस समय विवि में कोई पद खाली नहीं था इसलिए वे विवि का हिस्सा नहीं बन सके।

सारनाथ में बच्चों के लिए अधिकारी को डांटा : एक बार डा. लोहिया सारनाथ में हिरन देखने गए। वहां गांव के कुछ बच्चे बगीचे में खेल रहे थे। तभी वहां एक अधिकारी आया और उसने बच्चों को डांटकर भगा दिया। इस पर लोहिया ने पूछा, क्यों बच्चों को भगा दिया। तो उसने कहा, गांव के बच्चे हैं। इस पर लोहिया ने कहा, गांव के बच्चे, बच्चे नहीं होते क्या। आगे से ऐसा कभी मत करना। इसके बाद बच्चे फिर आकर वहां खेलने लगे।

एक घंटा देश को भी दो 

एक बार बनारस के एक ताल में सोशलिस्ट पार्टी ने श्रमदान शुरू किया। इसके लिए लोहिया भी गांव में गए। वहां बंधी टूटने से बाढ़ और विकराल हो गई थी। लोग वहां सरकार को गाली दे रहे थे। तब लोहिया ने कहा था कि सरकार को गाली दो लेकिन एक घंटा देश को भी दो।

जगतगंज में बनाया समताघर

डा. लोहिया ने जगतगंज इलाके में समाजवादी चिंतकों के लिए समता घर बनाया था। 1957 में अविभाजित वाराणसी की चंदौली सीट से लोकसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे थे।

घाटों से था लगाव : डा. लोहिया जब भी बनारस आते थे तो अपने सारे काम निबटाकर रात में साथियों के साथ नौका विहार जरूर करते थे। इसी दौरान वे पुरानी यादें ताजा करते और भविष्य की योजनाएं भी बनाते।

डा. राम मनोहर लोहिया

जन्म : 23 मार्च, 1910

देहांत : 12 अक्टूबर,1967


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