ताइवान के विश्व वेजिटेबल सेंटर के बोर्ड आफ डायरेक्टर में शामिल हुए जौनपुर के डा.आनंद कुमार सिंह
डा. आनंद कुमार सिंह ताइवान स्थित वल्र्ड वेजिटेबल सेंटर के बोर्ड आफ डायरेक्टर में शामिल होकर अपने गांव का ही नहीं देश का भी मान बढ़ा रहे हैं।
जौनपुर, जेएनएन। जिले का एक और लाल अब विश्व स्तर पर अपनी ही नहीं बल्कि पूर्वजों की भूमि का मान बढ़ा रहा है। जौनपुर जिले में जलालपुर के घोंसाव गांव निवासी डा. आनंद कुमार सिंह ताइवान स्थित वल्र्ड वेजिटेबल सेंटर के बोर्ड आफ डायरेक्टर में शामिल होकर अपने गांव का ही नहीं, देश का भी मान बढ़ा रहे हैं। वह ऐसे पहले भारतीय हैं, जिन्हें अपनी काबिलियत के बल पर यह स्थान मिला। सामान्य परिवार में पले-बढ़े डा. सिंह मौजूदा समय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषि मंत्रालय में डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद पर तैनात हैं। उनकी ख्वाहिश भारत को कृषि क्षेत्र में और भी बेहतर बनाना है। साथ ही वह विदेशों से आयातित फल और कुछ खास किस्म की सब्जियों को देश में उगाने की दिशा में संजीदगी से जुटे हुए हैं।
उन्होंने 10 वीं की पढ़ाई वर्ष 1977 में बयालसी इंटर कालेज से की। इंटरमीडिएट की पढ़ाई यूपी कालेज से पूरी करने के बाद वर्ष 1983 में बीएससी एग्रीकल्चर, बीएचयू से पूरा किया। पढ़ाई में शुरू से ही मेधावी रहे आनंद कुमार एमएससी व पीएचडी पूरा करने के बाद वर्ष 1991 में जापान व 2006 में अमेरिका से पोस्ट डॉक्टरेट किया। वर्ष 2015-16 में वह कृषि मंत्रालय की तरफ से टर्की में लगे एग्जिविशन में कमिश्नर जनरल की भूमिका भी निभाई। इतना ही नहीं पूसा संस्थान में बतौर कृषि वैज्ञानिक के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके डा. सिंह प्रबंध निदेशक राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड व अध्यक्ष नारियल विकास बोर्ड भी रह चुके हैं।
कम ही लोगों को मिलता यह मौका
वल्र्ड वेजिटेबल सेंटर का मुख्यालय ताइवान में है, जबकि इसका क्षेत्रीय शोध केंद्र एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में स्थित है। इसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में 16 सदस्य हैं, जिसमे एक नाम भारतवंशी डा.आनंद कुमार सिंह का भी है। डा. आनंद पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें इस संस्था में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल होने का मौका मिला। वेजिटेबल सेंटर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध को लेकर सुझाव देती है। साथ ही इस दिशा में होने वाले मानकों को भी तय करती है।
कुपोषण से मुक्ति का उद्देश्य
कुपोषण से जंग भारत ही नहीं, बल्कि अन्य कई विकसित देश भी लड़ रहे हैं। अभी तक हुए शोध में यह साफ हुआ है कि सब्जी एक ऐसा माध्यम है, जिससे कुपोषण को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। डा. ङ्क्षसह का भी यही सपना है कि वह कुछ ऐसा करें, जिससे पोलियो की तरह कुपोषण को भी समाप्त किया जा सके।
कृषि से किसानों को सशक्त बनाने का सपना
कृषि प्रधान देश में किसानों द्वारा आत्महत्या के घटनाओं के बीच डा. सिंह विचलित हैं। उन्होंने अपने शोध को किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए समर्पित कर दिया है। विदेशों से आयातित कुछ खास किस्म के फल व सब्जियों को देश में उगाकर वह किसानों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। उनके अनोखे शोधों को न सिर्फ सराहा जा रहा है, बल्कि उनके आइडिया पर विदेशों में भी कार्य हो रहा है।
अंग्रेजी कभी नहीं मुश्किल
वर्ष 1962 में जन्में डा. आनंद कुमार सिंह स्व. विश्वनाथ सिंह के पुत्र हैं, जो रेलवे में कार्यरत थे। सामान्य परिवार में जन्में डा. सिंह की शुरूआती पढ़ाई हिंदी मीडियम स्कूल में हुई। बावजूद इसके उनकी कई विदेशी भाषाओं में अच्छी पकड़ है। मेहनत को सफलता की सीढ़ी मानने वाले डा. सिंह कड़े परिश्रम से कभी पीछे नहीं हटे। वह कहते हैं बड़ी सोच इंसान को बड़ा बनाती हैं। एके सिंह के बड़े भाई बयालसी इंटर कालेज में प्रवक्ता हैं। उन्होंने बताया कि शुरू से ही उन्हें लिखने-पढऩे का शौक था। उनकी दोस्ती दोस्तों से कम और किताबों से अधिक थी। यही वजह है कि आज देश ही नहीं, विदेश में भी उन्होंने एक अलग स्थान पाया। डा. सिंह के छोटे भाई विनय कुमार सिंह सूरत में कृषक भारती को-ऑपरेटिव में डीजीएम के पद पर तैनात हैं।