एक्वेरियम की मछलियों को गंगा में न करें प्रवाहित, जान को भी बन गया खतरा
लोग पुण्य करने की चेष्टा में इन मछलियों को एक्वेरियम से निकाल कर गंगा में छोड़ देते हैं। इससे गंगा समेत एक्वेरियम की मछलियों की जान को भी खतरा बन गया है। एक्वेरियम से सीधे गंगा में आने से इन मछलियों का वासस्थान बदल जाता है।
वाराणसी, जेएनएन। काशी में इन दिनों गंगा से रंग-बिरंगी मछलियां मिल रहीं हैं, जिन्हें दक्षिण अमेरिका महाद्वीप की अमेजन नदी की कैट फिश का नाम दिया गया है। मत्स्य अधिकारियों का कहना है कि लोग पुण्य करने की चेष्टा में इन मछलियों को एक्वेरियम से निकाल कर गंगा में छोड़ देते हैं। इससे गंगा समेत एक्वेरियम की मछलियों की जान को भी खतरा बन गया है। एक्वेरियम से सीधे गंगा में आने से इन मछलियों का वासस्थान बदल जाता है और अपने आप को खतरा पहुंचाने के साथ ही यह नदी की अन्य मछलियों के लिए भी हानिकारक साबित होती हैं। मत्स्य विभाग के सीईओ रवींद्र प्रसाद का कहना है कि इस तरह से श्रद्धालुओं को पता भी नहीं चलता कि वे पुण्य करने के चक्कर में मछली की जान से खेल रहे हैं।
जागरण प्रतिनिधि से बातचीत में उन्होंने बताया कि दुर्गाकुंड से लेकर चौबेपुर तक के तालाबों में मछलियां संभवत: ऑक्सीजन की कमी से मरीं। सुबह के वक्त किनारों पर मछलियां मुंह खोले दिखें तो यह संकेत है कि इन्हें पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है। दरअसल तालाब में ठहरा पानी ऑक्सीजन के स्तर को घटा देता है। ऐसे में पानी को बराबर पंप व फुहार किया जाए तो हवा से ऑक्सीजन की काफी मात्रा पानी में आ जाती है।
बीएचयू के कीट एवं मत्स्य विज्ञानी प्रो. नरेंद्र नाथ सिंह के अनुसार गांवों में ऑक्सीजन की कमी का अहम कारण है तालाब के किनारे महुए का पेड़ होना। महुआ फल जब टूटकर पानी में गिरता है, तो ऑक्सीजन की सांद्रता को कम कर देता है।
मांसाहारी मछलियों को करें तालाब से बाहर
प्रो. नरेंद्र नाथ सिंह के अनुसार मछली पालन से पहले मांगुर या मांसाहारी मछलियां तालाब से निकला ली जाएं। फिर महुए की खली से तालाब की सफाई कर देने पर मांसाहारी मछलियां स्वत: खत्म हो जाएंगी। बड़ी व स्वस्थ मछलियों के अंडों का चयन करें। इसके अलावा समय-समय पर मछलियों को तालाब में भोजन, गोबर की खाद और पोटाश डालते रहें। इससे मछलियां तेजी से विकास करेंगी।