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Sonbhadra में fluorosis से लगातार हो रही मौत पर जिला प्रशासन डाल रहा पर्दा

जिले में फ्लोरोसिस ने तहलका मचा रखा है। यहां अब भी फ्लोरोसिस से मौत हो रही लेकिन प्रशासन पर्दा डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। हालत यह है कि जिन हैंडपपों पर लाल निशान लगाया गया है उसका भी पानी इस्तेमाल किया जा रहा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 11 Oct 2020 06:10 AM (IST)Updated: Sun, 11 Oct 2020 01:29 PM (IST)
Sonbhadra में fluorosis से लगातार हो रही मौत पर जिला प्रशासन डाल रहा पर्दा
फ्लोरोसिस से मौत हो रही लेकिन प्रशासन पर्दा डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है।

सोनभद्र, जेएनएन। जिले में फ्लोरोसिस ने तहलका मचा रखा है। यहां अब भी फ्लोरोसिस से मौत हो रही लेकिन प्रशासन पर्दा डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। हालत यह है कि जिन हैंडपपों पर लाल निशान लगाया गया है, उसका भी पानी इस्तेमाल किया जा रहा है। शुद्ध पेयजल की व्यवस्था फ्लोरोसिस प्रभावित गांव में नहीं है और सब कुछ कागजों पर चल रहा है। वनवासी सेवा आश्रम व लोक विज्ञान संस्थान देहरादून की तरफ से कराए गए सर्वे में पता चला है कि गत सात माह में पांच से अधिक फ्लोरोसिस पीडि़तों की मौत हो चुकी है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग इसे नहीं मानता। विभाग अन्य बीमारियों से मौत बताने से नहीं चूक रहा है।

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चोपन, दूद्धी, म्योरपुर व बभनी ब्लाक के 296 गांवों में फ्लोरोसिस से लगभग दस हजार लोग पीडि़त हैं। चोपन ब्लाक के नई बस्ती झिरगाडंडी, पिपरहवा, कचनरवा, कुड़वा, दुद्धी ब्लॉक के मझौली, उतर टोला मनबसा, कटौली, म्योरपुर ब्लॉक के कुसम्हा, गोङ्क्षवदपुर, गंभीरपुर, खैराही, किरवानी, रनतोला, रासपहरी, गडिय़ा व पडऱी में मौत होने का मामला प्रकाश में आ चुका है। लोक विज्ञान संस्थान देहरादून की ने भी सर्वे कर इस बात का खुलासा किया कि जनपद के कई गांव में पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने से लोग फ्लोरोसिस की बीमारी से पीडि़त है और दम तोड़ रहे हैं। वर्ष 2020 में अप्रैल से अब तक ग्राम पंचायत कचनरवा के रोहनिया डामर में चार लोगों की मौत हो हुई है। बीते अप्रैल में मानमति (48) पत्नी लच्चू, मई में लालधारी (45) पुत्र बंधू व महेंद्र (31) पुत्र छोटू एवं जुलाई में दिनेश भूईयां (28) पुत्र रामवृक्ष की मौत हुई है। दम तोडऩे वाले ये रोगी पांच से 10 वर्ष के मध्य फ्लोरोसिस बीमारी से पीडि़त हुए। पहले उनके हाथ पैर टेढ़े-मेढ़े होने के बाद दांत झरने लगा। दम तोडऩे से एक से दो वर्ष के मध्य वे बिस्तर पकड़ लिए और फिर काल के गाल में समा गए।

पांच वर्षों में सात सौ से अधिक मौतें 

बभनी ब्लाक के संवरा, बिछियारी, पोखरा, चपकी व भंवर में फ्लोरोसिस से किसी की मौत तो नहीं हुई, लेकिन पीडि़तों की तादात बढ़ती गई। प्रशासनिक अधिकारियों की चुप्पी व मौतों को झुठलाने से हालत यह हो गई कि जिले में पांच वर्षों में सात सौ से अधिक मौतें फ्लोरोसिस पीडि़तों की हो गई। फ्लोरोसीस से चोपन ब्लाक की नई बस्ती में 23, झिरगाडंडी व पिपरहवा गांव में 18, कुड़वा में तीन साल में 105, कुसुम्हा में पांच से अधिक, रासपहरी में तीन समेत कुल सात सौ से अधिक मौते हुई हैं लेकिन हर मौत को जिला प्रशासन झुठला गया।

दो माह पूूर्व हुई जांच में नौ जल स्त्रोत मिले उपयुक्त

वनवासी सेवा आश्रम व लोक विज्ञान संस्थान की टीम ने दो माह पूर्व म्योरपुर ब्लॉक के ग्राम पंचायत कुसुम्हा के कूप, तालाब, हैंडपंपों का कुल 59 नमूना लिया था। जिसकी रिपोर्ट चौकाने वाली है। इसमें नौ पेयजल स्रोत ही प्यास बुझाने लायक मिले। 20 स्रोत का पानी ङ्क्षसचाई लायक भी नहीं है। 19 स्रोत पीने लाइक बिल्कुल नहीं है। 15 स्त्रोत ऐसे थे जिनसे जरूरत पर प्यास बुझाई जा सकती है। इस गांव में फ्लोराइड का स्तर मानक 1.5 मिली प्रति लीटर से बढ़कर सात मिली है। 350 लोगों के यूरिन जांच में लगभग 40 लोगों में ही मानक के अनुसार फ्लोराइड मिला।

फ्लोराइड से मौत हो रही है, हालांकि प्रशासन इसको किसी और बीमारी से मौत बताता है। सच्चाई यह है कि फ्लोरोसिस के चलते लोगों हड्डियां जाम हो जा रही हैं और कुछ ही दिनों में बिस्तर पर चले जा रहे हैं। इसी दौरान उनकी मौत भी हो जा रही है। इन मौतों का सबसे बड़ा एक कारण फ्लोरोसिस बीमारी है। - डा. अनिल गौतम, पर्यावरण वैज्ञानिक- लोक विज्ञान संस्थान देहरादून

फ्लोरोसिस से नहीं हुई मौत, सुधर रहे हालात

मुख्य चिकित्साधिकारी डा. एसके उपाध्याय ने बताया कि पहले हालात ठीक नहीं थे। अब स्थिति में काफी सुधार हुआ है। स्वास्थ्य विभाग के पास ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है, जिसमें फ्लोरोसिस से मौत होने की बात सामने आई हो। अप्रैल, मई व जुलाई में जिन चार लोगों की मौत हुई है, उसकी जांच कराई जाएगी।


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