महात्मा गांधी की प्रासंगिकता आज भी पूरे विश्व में कायम है, राष्ट्रीय संगोष्ठी में बापू के जीवनी पर हुई चर्चा
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा साहित्य अकादमी नई दिल्ली व विद्या श्री न्यास के संयुक्त आयोजन में महात्मा गांधी के जीवनी पर संगाेष्ठी में चर्चा की।
वाराणसी, जेएनएन। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ, केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा साहित्य अकादमी नई दिल्ली व विद्या श्री न्यास के संयुक्त आयोजन में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में दूसरे दिन मुख्य वक्ता सुधीर चन्द्र ने गांधी की प्रासंगिकता व सम्भवना हमारी जिम्मेदारी विषय पर कहा कि गांधी जैसी सख्शियत रोज नहीं पैदा होती है। गांधी ने विधवा विवाह के पक्ष में भी अपनी बात कही और उनका स्पष्ट मत था कि जो भी विधवा महिला शादी करना चाहती है तो उसे शादी करने का अधिकार मिलना चाहिये। गांधी खुद को एक अच्छा हिन्दू मानते थे। उनका कहना था कि मैं अच्छा हिन्दू होने के साथ ही एक अच्छा मुस्लिम व ईसाई व सिख भी हूं। गांधी जी कहते थे कि धर्म की रक्षा यदि हमें करनी है तो उसका मुख्य हथियार धर्म ही है। गांधी अपने आखिरी दिनों में काफी कमजोर हो गए थे इसका जीता जागता उदाहरण इस बात से मिलता है कि वे आजाद भारत मे मात्र साढ़े पांच माह ही अपने जीवन का बिता पाये और उन साढ़े पांच महीनों में उनकी जयंती भी थी और उन्होंने अपनी जयंती पर कहा था की अब मेरी जीने की लालसा नहीं रही अब मुझे यह जीवन चुभता है और उन्होंने कहा कि मैं तो ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि यदि मुझसे कोई और कार्य न करवाना हो तो मुझे अब वापस बुला लें।
विशिष्ठ वक्ता हितेंद्र पटेल ने गांधी व आज का समय विषय पर कहा कि गांधी जी 1942 से 47 तक के बीच मे देश में असहज स्थति में थे और इन छह सालों का दुर्भगय है ये है कि इस समय को कोई भी इतिहासकार सही तरीके से उसकी प्रस्तुति नहीं करना चाहते थे। गांधी की स्थिति ऐसी हो गयी थी कि पूरे देश में उनका सम्मान था लेकिन उनकी बातों को कोई भी मानना नहीं चाहता था। साथ ही वक्ता ने कहा कि आज फिर आवश्यकता है हम लोग एम एन राय, सावरकर को फिर से पढ़े या उनका ऐतिहासिक विश्लेषण करें जिससे गांधी और सावरकर और एमएन राय के बीच जो वैचारिक दूरी थी वो और भी कम हो सकती थी।
अध्यक्षता करते हुए कमलेश दत्त त्रिपाठी कुलाधिपति वर्धा ने कसा कि गांधी के विचारों को समझने के लिये हम इस बात को मानना होगा कि वो युगीन थे उन्हें मानने की आवश्यकता थी उनके देवता बनाने की आवश्यकता नही है उनके विचारों को आत्मसात करने की हम सब को वर्तमान परिपेक्ष्य में आवश्यकता है क्योकि गांधी का जुड़ाव आम भारतीयों के साथ था इसलिये उनके विचारों पर आज चिंतन की आवश्यकता है चिंतन का आशय मनमानी व्यख्यानों से नही है बल्कि उन्हें समझने की सबसे बड़ी कुंजी है गांधी जी का कहना था कि किसी देश को नष्ट करना है तो उसकी भाषा व संस्कार दोनों ही नष्ट कर दे और आज वर्तमान समय मे हमारी मातृ भाषा अपने देश में उपेक्षित हो गयी है जिससे हमारे देश में एक विषम परिस्थिति खड़ी हो गयी है
सोनी पांडेय ने गांधी जी के विराट व्यक्तित्व को समझ पाना बड़ा ही कठिन है क्योंकि जितनी उनके विचारों को मानने वाले हिन्दुतान में थे उससे कही ज्यादा पूरे विश्व में थे यही उनकी विचारों व उनके कार्य का समाज पर एक छाप थी।
करुणा पांडेय बुद्ध के बाद गांधी जी ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके विचारों का असर सही मायने में समाज पर पड़ा और समाज ने उनके विचारों को स्वीकारा गांधी जी हिन्दू मुसलमानों में एकता चाहते थे इसीलिये उन्होंने हिंदी और उर्दू को संयुक्त रूप से समझा और उसे सम्मान भी दिया। अध्यक्षता करते हुए उषा किरण खान ने कहा कि गांधी एक व्यक्ति न होकर एक विचार थे बुद्ध और गांधी में कुछ समानताएं थी दोनों ने समाज मे लोगो को एक किया और समानता के लिये लड़ाई लड़ी और जाति का भेद खत्म करने का प्रयास किया बुद्ध ने अपने इसी विचार धारा से बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया वही दूसरी तरफ जब गांधी ने देश को आज़ादी दिलाने का संकल्प लिया तो सबसे पहले देश को एक करने की बात कही क्योकि उनका मानना था कि बिना एकजुटता के देश की आज़ादी का स्वप्न्न नहीं देखा जा सकता है। जहां एक तरफ आज की पीढ़ी गांधी जी को बहुत तव्वजो नहीं देती है वही दूसरी तरफ आज इक्कीसवीं सदी के लेखों में भी गांधी जी का जबरदस्त प्रभाव दिखता है यही सही मायने में गांधी का प्रभाव है और यह बातें बताती है कि गांधी के विचारों को भूलना सम्भव नही है।