दिव्यांगता से हार न मानकर फूलों की गमक और मिट्टी की सौंधी खुशबू से जीवन को गमका रहे
नगर निगम के उद्यान विभाग में तैनात चार माली दिव्यांगता से हार न मानकर फूलों की गमक और मिट्टी की सौंधी खुशबू से जीवन को गमका रहे हैं।
वाराणसी, जेएनएन। नगर निगम के उद्यान विभाग में तैनात चार माली दिव्यांगता से हार न मानकर फूलों की गमक और मिट्टी की सौंधी खुशबू से जीवन को गमका रहे हैं। साथ ही दूसरे सामान्य लोगों के लिए नजीर बन रहे हैं। उद्यान विभाग में तैनात कोई भी अपने को कमतर नहीं आकता है और पौधों की छंटाई से लेकर निराई और गुड़ाई का काम कर रहा है। दिव्यांगता उनके जीवन की राह में आड़े नहीं बल्कि साधन बनकर साथ दे रही है। नरोत्तमपुर के 24 वर्षीय गौरव की कहानी जद्दोजहद से भरी है। जन्म से ही एक हाथ केवल कलाई तक ही था। दस साल के थे तो मां-बाप का साया उठ गया। बडे़ भाई ने शादी करने के बाद तीनों भाइयों को अलग छोड़ दिया।
हार्टीकल्चर की ट्रेनिंग लेने के बाद नगर निगम में आउट सोर्सिग के तहत काम मिला तो उसकी जिंदगी संवर गई। अब वह अपने साथ तीन भाइयों की जिंदगी को भी संवार रहे हैं। गाजीपुर के देवी दयाल प्रजापति दोनों हाथ से जन्मजात दिव्यांग हैं। मां ने पाल पोशकर बड़ा किया तो दिव्यांग होने के बावजूद पौधों की छंटाई के साथ निराई और गुड़ाई का काम चुना।
छोटे भाई के दोनों पैर से दिव्यांग होने के कारण अब देवी दयाल के ऊपर ही परिवार की जिम्मेदारी है। हरदोई के संदीप कुमार का भी बचपन में ही तेज बुखार के कारण एक पैर दिव्यांग हो गया। ये भी किसी सामान्य आदमी से कम नहीं हैं। नगर निगम में काम करने वाले चार दिव्यांगों में ज्ञानपुर के संदीप सबसे अलग हैं। उन्हें बचपन से ही कम सुनने के साथ समझ भी सामान्य से कम है। इसके बावजूद वे पौधों की छंटाई के साथ निराई और गुड़ाई का काम बड़े ही सधे अंदाज में करते हैं।