मुस्लिमों ने भी शाम-ए-बनारस के पुरहुस्न नजारों को नजर में बसाया, फरिश्तों के हाथों रोशन हुए घाटों पर दीये
वल्लाह क्या पुरनूर नजारा है अजमत भाई लगता है जैसे आसमानी कहकशां साथ लेकर फरिश्तों का कफिला शहर के घाटों पर उतर आया हो।
वाराणसी [कुमार अजय]। वल्लाह क्या पुरनूर नजारा है अजमत भाई लगता है जैसे आसमानी कहकशां साथ लेकर फरिश्तों का कफिला शहर के घाटों पर उतर आया हो। गंगा के आंचल पर सलमा-सितारों की बरात सजाकर उनकी खिदमत में सलाम बजाया हो।
बजा फरमाया यार दायम भाई-यकीन के साथ कह सकता हूं कि सुबह-ए-बनारस के हुस्न की तो दुनिया दीवानी है। अलबत्ता चिरागों की जगमग की रोशन आज की बनारसी शाम भी शाम-ए-अवध की रंगीन शाम से जरा भी कमतर हसीं नहीं ठहरती।
शिवाला घाट पर खड़े देव दीपावली के पुरसुकून रूहानी उजालों को दिल में जज्ब करते यह मुख्तसर सी गुफ्तगू है बजरडीहां के रहनवार दो दोस्तों की जो हर तरह की तंग बंदिशो की बाढ़ तोड़कर शहर के सबसे बड़े जश्न देव दीपावली में अपनी भागीदारी दर्ज कराने गंगा तट तक आए हैं। यह शिरकत महज रस्मी बनकर न रह जाए इस मंशा से गंगा के नाम का एक दीप अपने हाथों से रोशन कर फूले नहीं समाए है।
हमारे जेहन में घुमड़ते सवालों को पहले से ही भांप चुके भाई अजमत एक मोहब्बती मुस्कान होठों पर लाते हैं हम कुछ बोल पाएं इससे पहले ही दिल के जज्बातों को आवाज देकर मुलाहिजा फरमाते हैं-चिरागों से रोशन यह जश्न पूरे शहर का जश्न है। यह तो पाकीजा मौका है मिल्लत व यकजहती के नाम के हजारों हजार दीए बारने का। रुहानी उजालों को दिल तक उतारने का। सो हमने भी मिल्लत की मजबूती की पूरउम्मीदी का एक दीया यहां जलाया है। रोशनी में लिपटी हिलोरें लेती कौमी शायर नजीर बनारसी की उस गंगा की शान में सलाम बजाया है। जिसके बारे में खुद कह गए हैं नजीर साहब-
हमने नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर।
गंगा तेरे पानी से वजू कर-कर के।।