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गाजीपुर में मशीन से बनेगा उपला, श्मशान घाट पर जलेंगे शव, डीआरडीए ने तैयार की योजना

डीआरडीए ने महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाकर उनसे आटोमेटिक मशीन से गोबर का उपला बनवाने की योजना तैयार की है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 26 Feb 2020 06:25 PM (IST)Updated: Thu, 27 Feb 2020 10:11 AM (IST)
गाजीपुर में मशीन से बनेगा उपला, श्मशान घाट पर जलेंगे शव, डीआरडीए ने तैयार की योजना
गाजीपुर में मशीन से बनेगा उपला, श्मशान घाट पर जलेंगे शव, डीआरडीए ने तैयार की योजना

गाजीपुर [जितेंद्र यादव]। डीआरडीए की योजना अगर ठीक-ठाक से संचालित हो गई तो श्मशान घाट पर शवों को जलाने के लिए लकड़ी पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। डीआरडीए ने महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाकर उनसे आटोमेटिक मशीन से गोबर का उपला बनवाने की योजना तैयार की है। यह उपला काफी उपयोगी व अधिक ज्वलनशील होगा। इसका उपयोग भोजन बनाने से लेकर श्मशान घाट पर शवों को जलाने तक में किया जाएगा। यह सस्ता व सुलभ होगा। इससे महिलाओं को स्वरोजगार मिलेगा और पशुपालन को बढ़ावा भी।

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उपला ग्रामीण भारत के रसोई में सदियों से मुख्य ईंधन रहा है। गांवों में रहने वाले हर परिवार में पशुपालन होता था और उनके गोबर से उपला बनाए जाते थे। लेकिन धीरे-धीरे यह अब प्रथा समाप्त होने की कगार पर है। लोगों ने पशुपालन करना कम कर दिया है और ऊपर से रसोई गैस इसका विकल्प बनकर आ गई है। हालांकि अभी भी बहुत से परिवार पशुपालन कर रहे हैं लेकिन पशुओं के गोबर का उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा जिले में जगह-जगह खोले गए गो-आश्रय केंद्रों में भी ढेर सारा गोबर हो रहा है। डीआरडीए ने इस गोबर को व्यवसायिक रूप देेने की तैयार की है।

गंगा किनारे के गांवों से होगी शुरूआत

इस योजना को शुरू करने के लिए डीआरडीए ने गंगा किनारे स्थित गांवों को चुना है। यहां पर महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाए जाएंगे और उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके बाद उन्हें उपला बनाने वाली आधुनिक मशीन भी उपलब्ध करायी जाएगी। इसके माध्यम से वह उपला तैयार कर एकत्र करेंगी। इसके बाद गंगा किनारे स्थित श्मशान घाटों पर इस उपले का उपयोग शवों को जलाने के लिए किया जाएगा। यह लकड़ी से अधिक ज्वलनशील व सस्ता होगा। लकड़ी की कम खपत होने से हरियाली भी बची रहेगी। 

आम उपले से होगा अलग

मशीन से बनाया गया उपला हाथ के बने उपले से एकदम अलग होगा। मशीन वाला उपला मोटा, गोल व लंबा होगा। इसमें दो प्रकार की डाई लगाई गई है..गोल व चौकोर। डाई बदलकर जैसा चाहें उपला बनाया जा सकता है। यह जल्दी सूख जाएगा और इसे रखना भी आसान होगा। वजन हल्का होने से इसका ट्रांसपोर्ट भी आसान होगा। इस मशीन की कीमत लगभग 35 हजार रुपये बताई जा रही है जो बिजली से संचालित होगी।

स्वरोजगार मिलेगा और ईंधन भी तैयार होगा

मशीन से उपला बनाने की योजना तैयार की गई है। इस पर काम चल रहा है। शीघ्र ही गंगा किनारे गांवों में बने महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण देकर इस मशीन को उपलब्ध कराया जाएगा। इससे उन्हें स्वरोजगार मिलेगा और ईंधन भी तैयार होगा। इसका सर्वाधिक उपयोग श्मशान घाट पर किया जाएगा। इसकी एक मशीन सेंपल के तौर पर मंगायी भी गयी है।

- विजय कुमार वर्मा, पीडी-डीआरडीए।


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