धर्मांतरण का कुचक्र : शिवचर्चा के नाम पर पढ़ाया जा रहा बाइबिल का पाठ, मतांतरण के लिए मिशनिरयों ने ओढ़ा हिंदुत्व का लबादा
गरीब और भोले-भाले लोगों का धर्मांतरण कराने के लिए ईसाई मिशनरियों ने अब हिंदुत्व का लबादा ओढ़ लिया है।
मऊ [शाह आलम]। गरीब और भोले-भाले लोगों का धर्मांतरण कराने के लिए ईसाई मिशनरियों ने अब हिंदुत्व का लबादा ओढ़ लिया है। हिंदू-धर्म के तीज-त्योहारों व देवी-देवताओं के रूप में ईसा-मसीह की तस्वीर पेश कर और उन्हें हिंदू देवी-देवतों के रूप में पेश करते हुए लोगों का माइंड वाश करने में जुटे हैं। यही नहीं ईसाई मिशनरियों ने अब कतिपय ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी प्रार्थना सभाओं को शिव-चर्चा का नाम भी दे डाला है।
स्थानीय नगर और आसपास के गांवों में धर्मांतरण का खेल लगभग दो दशक से चल रहा है। बलिया के नगरा, गाजीपुर और गोरखपुर से आए ईसाई मिशनरी के फ़ादरों ने नगर सहित पूरे क्षेत्र में प्रार्थना सभाओं के माध्यम से इसकी नींव रखी और यहीं से धर्मांतरण का खेल शुरू हुआ। इनका मुख्य शिकार बीमारी, भुखमरी, गरीबी और अशिक्षा में जकड़े लोग होते हैं। उनकी बीमारी और अशिक्षा को अंधविश्वास और भूत प्रेत से जोड़ते हुए ये पहले उससे मुक्ति दिलाने के नाम पर चंगाई का धंधा शुरू करते हैं और अपने तरीकों से लुभाते हैं। धीरे-धीरे उनके मस्तिष्क में हिंदू देवी-देवताओं के प्रति अपशब्दों का प्रयोग करते हुए उनका माइंड वाश करते हैं और उसकी जगह बैठाते हैं प्रभु यीशु की छवि। फिर उन्हें रुपया-पैसा आदि का लालच देकर अपने वश में कर लेते हैं। कुछ दिनों बाद वह देहाती अनपढ़ इनकी भोली-भाली बातों में आकर अपना धर्म परिवर्तन कर लेता है। हां, इस बीच इस बात का जरूर ध्यान रखते हैं कि प्रभु यीशु का पूजा-पाठ भी हिंदू लोकरीतियों के अनुसार ही करवाते हैं। धर्मांतरित महिलाओं को गांवों में हिंदू देवी-देवताओं की तरह प्रभु यीशु को कड़ाही चढ़ाते हुए भी देखा जा सकता है।
लाभ दिखाकर कराते हैं धर्मांतरण
हकीकत यही है कि धर्मांतरित हुए लोग केवल अपने फायदे और सुखी जीवन का लाभ लेने के लिए ही वहां पर टिके हैं, हां, इस बीच हिंदू देवी-देवताओं के प्रति उनके मन में कुंठा और अपमान भर दिया जाता है। अभी पिछले दिनों रानीपुर क्षेत्र के दरौरा गांव में धर्मांतरण के दौरान वायरल हुए वीडियो में एक महिला द्वारा साफ यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उन्हें इसके लिए पैसा मिलता है।
शिवचर्चा बरती जाती है पूरी गोपनीयता
कोई हंगामा न हो इसके लिए पूरी तरह गोपनीयता बरती जाती है और किसी को भी कुछ भी बताने के लिए मना किया जाता है। यही नहीं कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनमें पूरा परिवार सनातन धर्म को मानता है तो उस परिवार की कोई बहू या सास ईसा-मसीह की पूजा करती है। ईसाइयत की जड़ें चिरैयाकोट ही नहीं आजमगढ़ के रासेपुर, टेलुवां, टिसौरा, गाजीपुर के दुल्लहपुर के इलाके के लोग भी शिवचर्चा के नाम पर होने वाली प्रार्थना सभा में हर रविवार को आते हैं। क्षेत्र में एक दर्जन से ज्यादा स्थानो पर शिव चर्चा के नाम पर बाइबिल का पाठ पढ़ाया जा रहा है। वहीं लगभग एक दर्जन लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा देकर पादरी बना दिया गया है। वे अपने निवास स्थान से दूर के क्षेत्रों में लोगों को ईसाई धर्म की शिक्षा दे रहे हैं। इसके लिए सभी को महीने में मोटी रकम दी जाती है।
सैकड़ों परिवार बन चुके हैं ईसाई
दो दशकों से चल रहे धर्मांतरण के इस खेल में सैकड़ों हिंदू और दलित वर्ग के लोग उनकी बातों में आकर ईसाई धर्म कबूल कर चुके हैं। नगर के रसूलपुर भीटा, ताजपुर चंद्रावती, मिर्जापुर, हाफिजपुर आदि गांव पर पिछले 15 सालों से मड़ई या घरों में शिवचर्चा के नाम पर धर्मांतरण का खेल चल है।
रसूलपुर में हो रहा चर्च का निर्माण
कस्बे के रसूलपुर अनुसूचित बस्ती में ही एक चर्च का निर्माण भी हो रहा है। लोगों को लुभाने के लिए भूत-प्रेत से मुक्ति और रोगों से हमेशा की के लिए मुक्ति का लालच दिया गया। जब लोग उनकी बातों में आ गए तो उन्हें ईसा मसीह के बारे में बताया गया के ईशा मशी आपकी सभी समस्या का निदान करेंगे।