Move to Jagran APP

सीवी रमन जयंती : बीएचयू के उद्घाटन समारोह में गांधी जी के बाद सीवी रमन ने संभाला मंच

बीएचयू के उद़्घाटन समारोह में पांच फरवरी 1916 को जब महात्मा गांधी के उद्बोधन के दौरान निजाम हैदराबाद की टिप्पणियों और सरदार वल्लभ भाई पटेल के कड़े प्रत्युत्तर से माहौल तल्ख हो गया तो बापू ने मंच छोड़ दिया। उनके बाद मंच संभाला प्रख्यात विज्ञानी सीवी रमन ने।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 07 Nov 2021 10:22 AM (IST)Updated: Sun, 07 Nov 2021 10:22 AM (IST)
सीवी रमन जयंती : बीएचयू के उद्घाटन समारोह में गांधी जी के बाद सीवी रमन ने संभाला मंच
प्रख्यात विज्ञानी सीवी रमन ने महात्‍मा गांधी के बाद बीएचयू का मंच संभाला था।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। बीएचयू के उद़्घाटन समारोह में पांच फरवरी, 1916 को जब महात्मा गांधी के उद्बोधन के दौरान निजाम हैदराबाद की टिप्पणियों और सरदार वल्लभ भाई पटेल के कड़े प्रत्युत्तर से माहौल तल्ख हो गया तो बापू ने मंच छोड़ दिया। उनके बाद मंच संभाला प्रख्यात विज्ञानी सीवी रमन ने। उन्होंने अपनी वक्तृता शैली से लोगों को जोड़ा, जिससे वातावरण सामान्य हो गया।

loksabha election banner

सीवी रमन ने कहा, 'मैं यहां एक ऐसे संस्थान की नींव देख रहा हूं, जहां नैतिक मूल्यों की महत्ता समझने वाले बुद्धिजीवी होंगे। यह विश्वविद्यालय शिक्षा और संस्कृति को साथ लेकर चलेगा और भारत की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगा। आज बहुत से विश्वविद्यालय केवल डिग्री देने में विश्वास रखते हैं। कई ऐसे भी हैैं जिनके पास आधुनिक प्रयोगशालाएं हैं, मगर इससे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र कभी खुद को कम न समझेंं। इस विश्वविद्यालय की पहचान वह नैतिक मूल्य हैं, जिनके आधार पर इसकी नींव रखी गई है। यह विश्वविद्यालय राष्ट्रीयता का प्रतीक है।' उन्होंने आठ फरवरी, 1916 तक आयोजित व्याख्यान शृंखला के दौरान 'गणित और भौतिकी में कुछ नए रास्ते' विषय पर व्याख्यान भी दिया। महामना मदन मोहन मालवीय के आग्रह पर स्थायी अतिथि प्रोफेसर का पद संभाला और 1926 तक कक्षाएं भी लीं। उनकी स्मृति में यहां एक छात्रावास का निर्माण भी कराया गया है।

सात नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में जन्मे चंद्रशेखर वेंकटरमन देश ही नहीं, दुनिया के महान भौतिक शास्त्री थे। ब्रिटिश शासन के समय भारत के किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए विज्ञानी बनना आसान नहीं था। आर्थिक स्थिरता के लिए उन्होंने भारतीय वित्त विभाग की परीक्षा दी और प्रथम आए। कोलकाता में असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बने। बाद में एक वैज्ञानिक प्रतियोगिता में भाग लेकर वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भारतीय परिषद में नौकरी कर ली। 1917 में कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक हुए। 29 फरवरी, 1928 ई. को प्रकाश की गति और उसकी तरंगदैध्र्य पर आधारित उनकी खोज के लिए 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला। उनकी खोज को 'रमन प्रभावÓ के नाम से जाना जाता है। विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल जीतने वाले पहले एशियाई होने का गौरव उन्हें प्राप्त है। 29 फरवरी भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

1933 में जमशेद जी नसरवानजी टाटा द्वारा स्थापित भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) के निदेशक नियुक्त होने वाले रमन प्रथम भारतीय थे। 1947 में आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रीय प्रोफेसर कहलाए। 1948 में भारतीय विज्ञान संस्थान से सेवानिवृत्त होने के बाद बेंगलुरु में ही रमन शोध संस्थान की स्थापना की, जिसके लिए 1934 में ही मैसूर की सरकार ने 10 एकड़ भूमि भेंट दे दी थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.