मामूली अपराध में वाराणसी की पुलिस ने बना दिया 'गुंडा'
पुलिस अफसरों का कहना है कि कम से कम दो मुकदमा दर्ज होने के बाद ही गुंडा एक्ट में कार्रवाई की जाती है, इसके पहले गुंडा एक्ट में कार्रवाई सरासर गलत माना जाता है।
वाराणसी [विजय उपाध्याय]। केस एक: जैतपुरा थाना क्षेत्र के बघवानाला मौजाहाल निवासी सुक्खू का पिछले दिनों कुछ लोगों से मामूली विवाद हो गया। विपक्षियों की तहरीर पर एक ही केस में पुलिस ने अवयस्क पर अपहरण, धमकी व छेड़खानी का मुकदमा दर्ज कर लिया। पीड़ित कोर्ट की चौखट पर न्याय के लिए पहुंचा था कि 13 नवंबर को गुंडा एक्ट की कार्रवाई कर दी गई।
केस दो: चौक थाना क्षेत्र के गोला गली निवासी सोनू यादव पर एक मुकदमा में रास्ता रोकने, छेड़खानी, कपड़ा खींचने, झड़प व लोक शांति के प्रकोपन का मुकदमा दर्ज हुआ। यह मामला उन पर किराएदारी के विवाद में हुआ। पीड़ित अभी कोर्ट की शरण में था कि पुलिस ने आनन-फानन में गुंडा एक्ट की कार्रवाई कर दी।
ये मामले महज बानगी भर हैं। इनके अलावा भी कई छोटे मामलों में गुंडा एक्ट, गैंगेस्टर व जिला बदर की कार्रवाई कर पुसिल सवालों के घेरे में हैं। निकाय चुनाव के दौरान भी कुछ इसी तरह का मामला सामने आया था जब पुलिस ने हड़बड़ी में गैंगेस्टर की सूची कई मृतकों के नाम जारी कर दिए गए थे। मामला प्रकाश में आने के बाद तत्काल सुधार किया गया।
उधर, पुलिस अफसरों का कहना है कि कम से कम दो मुकदमा दर्ज होने के बाद ही गुंडा एक्ट में कार्रवाई की जाती है। इसके पहले गुंडा एक्ट में कार्रवाई सरासर गलत माना जाता है। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि पुरानी रंजिश में एकाध मामले विरोधी दर्ज करा देते हैं। लेकिन दूसरी बार मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस उक्त व्यक्ति की पड़ताल कराती है और यदि वह वाकई में बड़े अपराध में संलिप्त पाया जाता है तब उस पर गुंडा एक्ट की कार्रवाई की संस्तुति की जाती है।
पुलिस अफसरों की रिपोर्ट के बाद जिलाधिकारी द्वारा गुंडा एक्ट की कार्रवाई की संस्तुति की जाती है। मगर बात यह है कि अधिकतर थानेदार अपराध व अपराधियों की वस्तु स्थिति खुद से जांचते तक नहीं। पुलिसकर्मियों की रिपोर्ट या कारखास के आधार पर ही मामूली अपराध पर लोगों को गुंडा बना दिया जाता है। ऐसे में यदि पुलिस गंभीरता दिखाए तो लोगों को कोर्ट कचहरी के बेवजह चक्कर लगाने से काफी हद तक निजात मिल सकती है। साथ ही समय-समय पर होने वाली बदनामी से भी खाकी बच सकती है।
सजा का प्रावधान: गुंडा एक्ट में छह महीने जिला बदर का प्रावधान है। यदि इस अवधि में आरोपी जिले में पाया जाता है तो उसे न्यूनतम दो वर्ष तथा अधिकतम तीन से सात साल तक की सजा हो सकती है।
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हाईकोर्ट जता चुकी है नाराजगी: ऋषभ राघव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि मेरठ के इस मामले में आरोपी पर एक ही केस में छेड़खानी और अश्लीलता के मामले दर्ज हैं। महज एक मामले में गुंडा एक्ट की कार्रवाई करना सरासर गलत है। वहीं सहारनपुर के नासिर व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बलवा, मारपीट, हत्या का प्रयास व धमकी के मामले में गुंडा एक्ट की कार्रवाई गलत है। न्यायमूर्ति ओमप्रकाश की अदालत ने पुलिस को ऐसी गलती से बचने को कहा था।
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