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ललिताघाट से मणिकर्णिकाघाट के बीच बनते कॉरिडोर के बीच सामने आ रहा दबा बनारस

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा तट तक कॉरिडोर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जा रहा है लेकिन, इसके लिए ध्वस्त किए जा रहे भवनों की दीवारों के बीच से असल बनारस निखर कर सामने आ रहा है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 11:03 AM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 11:03 AM (IST)
ललिताघाट से मणिकर्णिकाघाट के बीच बनते कॉरिडोर के बीच सामने आ रहा दबा बनारस
ललिताघाट से मणिकर्णिकाघाट के बीच बनते कॉरिडोर के बीच सामने आ रहा दबा बनारस

वाराणसी [प्रमोद यादव]। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा तट (ललिताघाट-मणिकर्णिकाघाट) तक कॉरिडोर बनाया तो श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए जा रहा है लेकिन, इसके लिए ध्वस्त किए जा रहे भवनों की दीवारों के बीच से असल बनारस निखर कर सामने आ रहा है। कॉरिडोर के लिए तोड़े जा रहे भवनों में अब तक मिले दो दर्जन बड़े मंदिर में लगभग सभी शिव के हैं मगर इनमें पंचदेवोपासना की प्राचीन संस्कृति साकार रूप में दिखती है। बाबा दरबार की ही तरह उत्तर भारतीय मंदिरों की नागर शैली अंगीकार किए अर्ध मंडप और गर्भगृह जिनकी अलग-अलग दीवार लक्ष्मी -नारायण, सूर्य, गणोश और शक्ति स्वरूप में दुर्गा, अन्नपूर्णा या देवी पार्वती की छवि सहेजे हैं। इनमें लाहौरी टोला में दीवारों के बीच से सामने आए देवालय के विग्रह व नंदी के आकार पर गौर न करें तो मानों किसी ने बाबा दरबार की प्रतिकृति ही उठा कर यहां रख दी हो।

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मणिकर्णिका घाट के पास एक भवन की दीवारों के धराशायी होने के बाद उभार पा रहा शिवालय सबसे खास है जो नजर पड़ते ही किसी को ठिठकने पर विवश करता है। देव मूर्तियां, उत्कृष्ट नक्काशी व अलंकरणों से इसमें समग्र देव लोक ही समाहित जान पड़ता है। इसकी अलग-अलग दीवारों पर समुद्र मंथन, शेषशायी श्रीहरि व श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों का चीरहरण दृश्य उत्कीर्ण हैं। यही नहीं, खुद शिव स्वरूप भैरव तो हैं ही न जाने कितनी अप्सराएं (पुतलिकाएं) भी ध्यान आकर्षित करती हैं।

अचरज तब और बढ़ जाता जब उनके यूरोपियन वस्त्रभूषण पर नजर चढ़ती है। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नंबर दो (सरस्वती फाटक) से गेट नंबर तीन (नीलकंठ) की चौड़ाई में आकार पाते जा रहे कॉरिडोर में प्राचीन गलियां अपने पूरे अस्तित्व के साथ बरकरार रहेंगी। अलग होगा तो सिर्फ यह कि उनका दायरा संकीर्णता को त्याग कर विशाल हो जाएगा जिसमें आने वाला श्रद्धालु-सैलानी सुकून से घूमने-टहलने के साथ खुली सांस ले पाएगा। कॉरिडोर क्षेत्र के दायरे में आ रही गलियों पर गौर करें तो बाबा दरबार से गंगा तट को नीलकंठ व लाहौरी टोला गली मुख्य रूप से जोड़ती हैं। इसके अलावा दो गलियां दोनों मुख्य गलियों को एक दूसरे से जोड़ती हैं तो पांच छोटी गलियां जहां-तहां भवनों के बीच बंद हो जाती हैं।

कॉरिडोर क्षेत्र में मिल रहे मंदिरों को देखने से प्रतीत होता है कि इनका निर्माण वर्तमान श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण के बाद ही हुआ है। इन मंदिरों की शैली, बनावट और अलंकरण के आधार यही प्रतीत होता है। दो मंदिरों पर उत्कीर्ण निर्माण तिथि से भी आकलन आसान हो जाता है।

- सुभाषचंद्र यादव, क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी, उप्र पुरातत्व विभाग


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