आत्मनिर्भरता की कहानी : कोरोना ने छुड़ाई कम्पनी की नौकरी तो सेवादारी से चल रही घर की रसोई
कैलाश जब कॉलोनीयों में लोगों को अपना नंबर वितरित कर रहे थे और लोगों का नंबर लिख रहे थे तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि फोन आने पर हम पहचानेंगे कैसे। उन्होंने हर मोबाइल नंबर को क्रम संख्या से मोबाइल में सेव किया।
वाराणसी, जेएनएन। कहते हैं जब तक मनुष्य हौसला और जज्बा रखता है तब तक वह उड़ान भरता रहता है। कोरोना ने कई युवाओं के रोजगार को लील लिया। इससे घबराए युवा हैरान और परेशान हुए तो इसी में से कुछ ने अपना हौसला बुलंद रखते हुए नए विचार के साथ अपने को साबित करते हुए स्थापित किया है। इन्हीं में से है चोलापुर क्षेत्र के चंदापुर निवासी कैलाश मौर्या। गत वर्ष जब कोरोना ने पांव पसारा तो वह गुजरात के एक कम्पनी में काम करते थे। कोरोना के कारण नौकरी छूट गयी तो वह वापस बनारस का रुख कर लिए। यहां आने के बाद रोजगार के लिए पैसा भी नहीं था। सोचते-विचारते उनके दिमाग में एक विचार आया। पास-पड़ोस की कॉलोनियों में घूमकर उन्होंने अपना नम्बर कागज पर लिखकर वितरित किया। कोरोना के प्रति जागरूक करते हुए किसी भी समान की होम डिलीवरी करने का भरोसा दिलाया। फिर क्या फोन आने के साथ ही शुरू हुआ होम डिलीवरी करने का सिलसिला। देखते ही देखते एक वर्ष में बन गए अपने ठेले के मालिक और तीन सौ परिवार के सदस्य। अब उनके ठेले पर सब्जी, फल, दूध, ब्रेड, अखबार सब कुछ उपलब्ध रहता है। इसके अलावा आर्डर के भी सामान उपलब्ध रहते हैं।
अपने हिसाब से किया घरों की कोडिंग
कैलाश जब कॉलोनीयों में लोगों को अपना नंबर वितरित कर रहे थे और लोगों का नंबर लिख रहे थे तो उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि फोन आने पर हम पहचानेंगे कैसे। उन्होंने हर मोबाइल नंबर को क्रम संख्या से मोबाइल में सेव किया। अगले दिन कॉलोनी के घरों के दीवारों पर उन्होंने उसी क्रम से नामांकन किया। जिससे उनको घर पहचानने में दिक्कत का सामना न करना पड़े।
पहले लेते थे डिलीवरी चार्ज अब देते हैं फ्री सेवा
कैलाश मौर्या बताते हैं कि पिछले वर्ष जब कोरोना काल के दौरान स्वयं को स्थापित करना था तो उन्होंने हर आर्डर पर पांच रुपये का डिलीवरी चार्ज रखा था। अब जब वह स्वयं को स्थापित कर चुके हैं तो अपने ग्राहकों के लिए उन्होंने फ्री डिलीवरी की सेवा शुरू कर दी है।
आर्डर देने का समय भी है तय
कैलाश मौर्या के व्हाट्सएप नंबर पर सुबह सात बजे से शुरू हो जाता है आर्डर देने का सिलसिला जो शाम पांच बजे तक चलता है। कोरोना काल मे अंतिम डिलीवरी का समय शाम के 6 बजे तक रहता है।
मांग के मुताबिक थोक में खरीदते हैं समान
व्यवसाय में लाभ के सवाल पर कैलाश बताते हैं कि हमने पहले ग्राहकों की मांग को समझा। उसके बाद हर वस्तु की कितनी खपत है उसका अंदाजा लगाया। उसके पहले तो फुटकर में खरीदारी करके डिलीवरी करता था। उस दौरान कोई लाभ नहीं कमाता था। बस डिलीवरी चार्ज ही आय का स्रोत था। वस्तुओं की मांग के हिसाब से मैंने अब उसे थोक में खरीदना शुरू कर दिया और डिलीवरी फ्री कर दिया।
थोक दुकानदारों ने भी किया सहयोग
कई बार ऐसा भी हुआ कि एक ही सामान को मैं दिन में कई बार खरीदता था। यह देख दुकानदार सोच में पड़ जाते। एक दिन एक दुकानदार पूछा कि आप दिन में कई बार एक ही सामान खरीदने आते हैं। तो मैंने उन्हें एक ही सामान कई बार खरीदने का कारण बताया। उसके बाद कई दुकानदार मेरी मदद को आगे आए। वह अब सामान देते मैं उनको बेचकर उन्हें पैसा देता। धीरे-धीरे मैंने अब अपना ठेला तैयार कर लिया है। जिस पर जरूरत के सभी सामान उपलब्ध हैं।
प्रवासियों को देते हैं व्यवसाय का नए आइडिया
कैलाश अपने विचारों को अपने तक ही सीमित नहीं रखते हैं। वह अन्य प्रदेशों से लौटे प्रवासियों को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए व्यवसाय करने का नया मंत्र देते रहते हैं। कम पूंजी में कैसे व्यवसाय शुरू करें इस बारे में वह हमेशा विचारते रहते हैं। कोई नया विचार आते ही वह अपने मित्रों से तुरंत साझा करते हैं। फिर उस पर मिल के काम करते हैं।