धर्मांतरित हिंदू एससी-एसटी व पिछड़ा वर्ग को बंद हो आरक्षण, स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने पीएम को भेजा पत्र
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने धर्मांतरित हिंदू एससी-एसटी और पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण से वंचित करने की मांग की है।
वाराणसी, जेएनएन। अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने धर्मांतरित हिंदू एससी-एसटी और पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण से वंचित करने की मांग की है। इसके लिए गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा। इसमें धर्म आधारित किसी भी प्रकारके आरक्षण को अनुमति न देने का आग्रह किया गया है।
स्वामी जीतेंद्रानंद ने पत्र में लिखा है कि संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण व्यवस्था हिंदू समाज के अंदर वर्ण एवं जाति व्यवस्था द्वारा कालांतर में उत्पन्न हुईं विसंगतियों को दूर करने के लिए अपने सभी वंचित बंधु व भगिनी को दी जाने वाली सुविधा है। संविधान में धर्म आधार पर किसी भी प्रकार की आरक्षण व्यवस्था नहीं है लेकिन देखने में यह आ रहा है कि विदेशी धन की मदद से चर्च एवं मिशनरियां बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ी जाति व वनवासी बंधुओं का धर्मांतरण षडयंत्रपूर्वक कराते रहते हैं। उन्हें बहुत ही चालाकी से बताया जाता है कि तुम्हें नाम और कपड़े बदलने की जरूरत नहीं है। उन्हें अपने पुराने नाम के आधार पर संविधान में प्रदत्त आरक्षण सुविधा लेते रहने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस तरह धर्मांतरण कर इस देश को खोखला किया जा रहा है। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक हिंदू धर्मांतरित नहीं होता बल्कि एक राष्ट्रद्रोही व्यक्ति खड़ा हो जाता है। अत: मतांतरण एक प्रकार से राष्ट्रांतरण ही है। उन्होंने अनुरोध किया है कि भारत सरकार अभियान चलाए और इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकारने वाली विभिन्न जातियों के लोगों को आरक्षण सुविधा से वंचित करे। तर्क दिया है कि संविधान धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था नहीं देता है और फिर इस प्रकार का पाखंड भी उजागर होता है कि इस्लाम व ईसाइयत में सभी व्यक्ति एक बराबर हैैं। लिंग-भेद और जातीय व्यवस्था नहीं है जबकि इसके विपरीत उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर दलित क्रिश्चियन, पिछड़े और दलित मुसलमान शब्द का प्रयोग कर आरक्षण की मांग करना भारत रत्न बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर द्वारा प्रदत पिछड़े एवं अनुसूचित जाति-जनजाति के अधिकारों पर डकैती है। पूर्व में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड जैसे राज्यों में भी इस प्रकार की गणना कराई गई है और धर्मांतरण विरोधी बिल दस राज्यों ने पास करके अपने यहां धर्मांतरण पर रोक लगा रखी है। इसमेंं किसी दलित द्वारा धर्मांतरित होने के बाद उसकी सुविधाएं समाप्त कर दी गई हैैं। यह राष्ट्रीय एकता और अखंडता की रक्षा व भारतीय संस्कृति के बहुआयामी विविधता को संरक्षित रखने में प्रभावी सिद्ध हुई है।