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कमांडिंग ऑफिसर ने आगे जाने से मना कर दिया लेकिन मन नहीं माना रण बांकुरा अजय कुमार सिंह का

रण बांकुरा अजय कुमार सिंह की ने बताया कि फरवरी-1999 में कफवारा जिला के कीगांव में पोस्टिंग थी इसी दौरान 12 मई को कारगिल युद्ध करने के लिए यूनिट को आदेश मिला।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 04:00 PM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 04:10 PM (IST)
कमांडिंग ऑफिसर ने आगे जाने से मना कर दिया लेकिन मन नहीं माना रण बांकुरा अजय कुमार सिंह का
कमांडिंग ऑफिसर ने आगे जाने से मना कर दिया लेकिन मन नहीं माना रण बांकुरा अजय कुमार सिंह का

वाराणसी [महेश मिश्रा]। 28 जून की अंधेरी रात, पेट में दुश्मनों से ब्रुस्ट की गोलियो की बौछार और दूसरी तरफ टाइगर हिल थ्री टेंपल (पहाड़ी) पर देश सेवा में मर मिटने की जुनून, रक्तस्राव रोकने के लिए टीम के साथी ही पेट में मरहम पट्टी बांध रहे थे। स्थिति देख कमांडिंग ऑफिसर आगे जाने से मना किया लेकिन पांच सौ फीट ऊपर पहाड़ी पर दुश्मनों को देख दर्द भी पनाह ढूंढने लगा। घायल अवस्था में देश की रक्षा करने के लिए वह सैनिक गोली चलाते हुए आगे बढ़ता गया, लेकिन पहाड़ी पर मौजूद दुश्मनों ने बड़े-बड़े पत्थर लुढ़काना शुरु कर दिया, तमाम कोशिशों के बावजूद एक बड़े पत्थर से खुद को नहीं बचा सका और पत्थरों के साथ ही सैकड़ों फीट नीचे खाईं में आ गिरा, अत्यधिक रक्तश्राव व ऊंचाई से गिरने के कारण अचेत हो गया। चोलापुर ब्लाक अंतर्गत उधोरामपुर की गांव निवासी रण बांकुरा अजय कुमार सिंह की।

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अजय कुमार सिंह ने बताया कि फरवरी-1999 में कफवारा जिला के कीगांव में पोस्टिंग थी, इसी दौरान 12 मई को कारगिल युद्ध करने के लिए यूनिट को आदेश मिला। उस समय गांव में उग्रवादियों से लड़ाई हम लोगों की चल रही थी, जिसमें 13 उग्रवादी मारे गए। जिसमें डेल्टा को दो दिन के लिए डीले किया गया। 20 मई को कीगांव से हम लोग कारगिल के लिए मार्च किए। कारगिल में 10 दिन की ट्रेनिंग के बाद हम लोगों की टीम टू राजपूताना राइफल को पूरा टोलोलिंग पहाड़ी को कैप्चर करने का आदेश मिला। 10 जून की रात्रि को टीम के साथ हम लोग पहाड़ी पर चढऩा शुरू कर दिए, 11 जून की सुबह दुश्मन से एक किलोमीटर दूरी तक पहुंच चुके थे। इस दौरान आर्टी व बोफोर्स गन फायर हमलोग को सपोर्ट दे रही थी। 11 जून की रात में दुश्मनों से गोलीबारी शुरू हो गई, हमलोग टीम के साथ गोली चलाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे, इस दौरान हमारे तीन जवान घायल हो चुके थे, एक तरफ गोली चलाना दूसरी तरफ अपने घायल साथी को सहयोग करना बना था। 12 तारीख के रात आठ बजे टोलोङ्क्षलग पहाड़ी पर हम लोगों ने दुश्मनों पर अटैक कर दिया, दोनों तरफ से घंटों गोलाबारी शुरू हुई, जिसमें 10 पाकिस्तानी फौजों को हम लोगों ने मार गिराया, बाकी शेष भाग चुके थे। इस दौरान पहाड़ी को कब्जे में लेकर हमलोगो नें तिरंगा फहराया। 13 जून की सुबह पूरा पहाड़ी भारत के कब्जे में आ गया। यह इंडियन आर्मी की पहली सफलता थी। इसके बाद 13 जून को हम लोग ग्रास सेक्टर पहाड़ी से नीचे आ गए। फिर हम लोगों को 10 दिन के लिए रेस्ट दिया गया।

तीन आफिसर, दो जेसीओ और 20 जवान हुए थे शहीद

रेस्ट के बाद 28 जून को टाइगर हिल थ्री टेंपल पर कब्जा लेने के लिए आदेश मिला। 27 जून की पूरी रात चलने के बाद 28 जून की रात को जैसे ही अंधेरा हुआ कि शाम 7. 30 बजे हम लोगों ने दुश्मनों पर अटैक कर दिया। अटैक के पूर्व हमारे पांच जवान शहीद हो चुके थे, इसी दौरान रात में 28 जून की रात में मुझे पेट में ब्रुस्ट की गोली लगी, गोली लगने के बाद भी लड़ता रहा, रक्तश्राव के कारण बार बार कमांडिंग आफिसर मुझे आगे बढऩे से रोक रहे थे, लेकिन दुश्मनों के सामने रुकने से बेहतर मुझे आगे बढऩा जरुरी लगा, फिर मुझे कुछ याद नहीं। 29 जून को अचेतावस्था में मुझे श्रीनगर 92 वेस हास्पिटल में भर्ती कराया गया, पश्चात छह दिन बाद चंडीगढ़ हास्पिटल लाया गया, वहां से एक सप्ताह बाद अंबाला स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया। बताया कि 30 जून को मुझे होश आया तो युद्ध की जानकारी मिली। युद्ध में तीन आफिसर, दो जेसीओ, 20 जवान शहीद तथा 89 जवान घायल हुए थे। वर्तमान समय में पहडिय़ा स्थित अपने मकान में पत्नी पूनम सिंह, पुत्र अभय प्रताप सिंह, अमन प्रताप सिंह, पुत्री छोटी सिंह के साथ रहते है। पिता स्व. पारसनाथ सिंह व भाई जयप्रकाश सिंह (ग्राम प्रधान) भाभी पुष्पा सिंह द्वारा देश व आजादी की बाते सुनकर बचपन से ही देश सेवा करने की जोश था, आगे चलकर देश सेवा करने का मौका भी मिल गया। पूछने पर अजय सिंह बताते है कि अपने गांव मे जाने पर कारगिल युद्ध की घटनाक्रम ग्रामीणों व युवाओ को बताते पूरा दिन बीत जाता है।


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