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मौनी अमावस्या पर अबकी भौमवती अमावस्या का संयोग, एक फरवरी को माघ का खास स्नान पर्व

माघ की अमावस्या तिथि 31 जनवरी को दोपहर 1.15 बजे लग रही है जो एक फरवरी को सुबह 11.16 बजे तक रहेगी। उदय व्यापिनी ग्राह्य होने से मौनी अमावस्या एक फरवरी को मनाई जाएगी। इस बार मौनी अमावस्या पर भौमवती अमावस्या का दुर्लभ संयोग होगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 29 Jan 2022 07:42 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jan 2022 07:42 PM (IST)
मौनी अमावस्या पर अबकी भौमवती अमावस्या का संयोग, एक फरवरी को माघ का खास स्नान पर्व
उदय व्यापिनी ग्राह्य होने से मौनी अमावस्या एक फरवरी को मनाई जाएगी।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। सनातन धर्म में हिंदी के बारह मासों में तीन माह यानी माघ, कार्तिक व वैशाख पुण्य संचय के लिहाज से महापुनीत माने गए हैं। इनमें भी माघ की विशेष महत्ता शास्त्रों में बताई गई है। इसमें भी मौनी अमावस्या सर्व प्रमुख है। इस बार यह स्नान पर्व एक फरवरी को पड़ रहा है। माघ की अमावस्या तिथि 31 जनवरी को दोपहर 1.15 बजे लग रही है जो एक फरवरी को सुबह 11.16 बजे तक रहेगी। उदय व्यापिनी ग्राह्य होने से मौनी अमावस्या एक फरवरी को मनाई जाएगी। इस बार मौनी अमावस्या पर भौमवती अमावस्या का दुर्लभ संयोग होगा।

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तिथि विशेष पर मौन रख कर प्रयागराज त्रिवेणी संगम में स्नान या काशी में दशाश्वमेध घाट पर गंगा में डुबकी लगाने का विशेष मान है। श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री रामनारायण द्विवेदी के अनुसार मत्स्य पुराण में कहा गया है कि पुराणं ब्रह्मवैवर्तं यो दद्यान्माघमासि च। अमावस्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।। यानी माघ मास की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। नियम पूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए जो माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है। माघ मास की ऐसी विशेषता है कि इसमें जहां-कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है, फिर भी प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है। साथ ही मन की निर्मलता एवं श्रद्धा भी आवश्यक है।

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि ''''माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पतिहि आव सब कोहि। एहि प्रकार भरि माघ नहाई, पुनि सब निज निज आश्रम जाहि।।'''' आशय यह कि प्राचीन समय से ही माघ मास में सभी साधक तपस्यी ऋषि मुनि आदि तीर्थराज प्रयाग में आकर अपनी अपनी आध्यात्मिक साधनात्मक प्रक्रियाओं को पूर्ण कर वापस लौटते हैं। तिथि विशेष पर अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्धादि भी जरूर करना चाहिए जिससे उन्हें भी तृप्ति मिलती है।

प्रात:काल मौन रख कर स्नान-ध्यान से सहस्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। वैसे मौनी अमावस्या पर स्नान के बाद दान का भी विशेष महत्व होता है। दान में भूमि, स्वर्ण, अश्व, गज दान के साथ ही आम जनमानस तिल से बनी सामग्री, उष्ण वस्तुएं, कंबल स्वेटर, शाक-सब्जी दान से भी विशेष पुण्य लाभ होता है। इस दिन साधु-महात्मा व ब्राह्मणों के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिए। उन्हें कंबल आदि जाड़े के वस्त्र देने चाहिए।

पद्मपुराण के उत्तरखंड में माघ मास के अमावस्या के महात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि व्रत, दान, और तपस्या से भी भगवान् श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए स्वर्ग लाभ, सभी पापों से मुक्ति और भगवान् वासुदेव की प्रीति के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।


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