Civil Service Day जौनपुर के इस गांव ने दिया 100 से अधिक आइएएस और पीसीएस
जौनपुर के माधोपट्टी गांव के जन-जन पर साक्षात मां सरस्वती की कृपा है। तभी तो 75 घरों वाला यह गांव 100 से अधिक आइएएस-पीसीएस दे चुका है।
जौनपुर [आनन्द स्वरूप चतुर्वेदी]। जिले के माधोपट्टी गांव के जन-जन पर साक्षात मां सरस्वती की कृपा है। तभी तो 75 घरों वाला यह गांव 100 से अधिक आइएएस-पीसीएस दे चुका है। कुछ सेवानिवृत्त हो चुके हैं तो कुछ अभी सेवा दे रहे हैं। इसे अफसरों का गांव भी कहा जाता है। जो अन्य गांवों व युवाओं के लिए रोल मॉडल बना हुआ है।
1914 में शुरू हुआ दौर पीढिय़ों तक जारी
अंग्रेजों के समय में भी इस गांव के लोग प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होते थे। प्रख्यात शायर रहे वामिक जौनपुरी के पिता मुस्तफा हुसैन 1914 में पीसीएस और 1952 में इंदू प्रकाश सिंह आइएएस अफसर बने। फिर क्या हर घर में प्रतिस्पर्धा की बाढ़ सी आ गई। आइएएस बनने के बाद इंदू प्रकाश सिंह फ्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत रहे। पांच भाइयों में तीन आइएएस, जज, प्रवक्ता बनकर जो इतिहास रचा है वह आज भी कायम है। इन सगे भाइयों में सबसे बड़े विनय कुमार सिंह जिन्होंने 1955 में आइएएस की परीक्षा में 13 वीं रैंक हासिल की, जो बिहार के मुख्य सचिव पद तक पहुंचे। 1964 में उनके दो सगे भाई क्षत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह एक साथ आइएएस अधिकारी बने। क्षत्रपाल तमिलनाडू के प्रमुख सचिव भी रहे। चौथे नंबर के शशिकांत सिंह 1968 में न्यायिक सेवा में चुने गए। इनके परिवार में आइएएस बनने का सिलसिला यहीं नहीं थमा। शशिकांत सिंह के दोनों बेटे भी आइएएस चुने गए, इनमें 2004 में मनस्वी तो 2009 में यशस्वी ङ्क्षसह का चयन हुआ।
आइपीएस की भी है भरमार
गांव की आशा सिंह, ऊषा सिंह, कुंवर चंद्रमौल सिंह और उनकी पत्नी इंदू सिंह 1983 में आइपीएस रहीं। प्रेमचंद्र सिंह जो पीपीएस बैच के अधिकारी रहे और डीआइजी होकर सेवानिवृत्त हुए।
सेवानिवृत्त के बाद भी नहीं लौटे गांव
गांव की मिट्टी से निकलने वाले अधिकतर अधिकारी सेवानिवृत्त होने के बाद गांव नहीं लौट रहे हैं। वह तमाम प्रदेशों की राजधानी में अपना आवास बनाकर रह रहे हैं। इसलिए गांव का समग्र विकास नहीं हुआ।