मायावती शासनकाल का सिटीजन चार्टर बना गले की फांस, एलआइयू के अधिकार कर दिए थे सीमित
मायावती के शासनकाल में एडीजी ला एंड आर्डर बृजलाल की तरफ से जारी सिटीजन चार्टर अब महकमे के लिए गले की फांस बन गया है।
वाराणसी [विकास बागी]। मायावती के शासनकाल में एडीजी ला एंड आर्डर बृजलाल की तरफ से जारी सिटीजन चार्टर अब महकमे के लिए गले की फांस बन गया है। भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए सिटीजन चार्टर के तहत प्रदेश सरकार के खुफिया तंत्र एलआइयू के पंख कतर दिए गए थे। इसका सीधा फायदा देश विरोधी ताकतों को मिला। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लिए बतौर एजेंट काम करने वाला राशिद या आजमगढ़ से दूसरे के आधार कार्ड पर पासपोर्ट बनवाने वाले अफगानी नागरिक, सभी ने एलआइयू के अधिकार समाप्त होने का पूरा फायदा उठाया। स्थानीय पुलिस की जेब गरम कर अपना काम निकल लिया।
मायावती के मुख्यमंत्री काल के दौरान नवंबर 2011 में पुलिस विभाग में सिटीजन चार्टर लागू किया गया था। इससे पहले पासपोर्ट सत्यापन के लिए एलआइयू स्थलीय जांच करती थी। चार्टर की व्यवस्था के तहत एलआइयू के अधिकार सीमित कर दिए गए। भौतिक की बजाय एलआइयू को अभिलेख सत्यापित करने का काम दे दिया गया। वहीं संबंधित थाने को पासपोर्ट सत्यापन का जिम्मा मिला। एलआइयू के पास पासपोर्ट वेरिफिकेशन के नाम पर दफ्तर में बैठ सिर्फ यह देखना रह गया कि आवेदक सांप्रदायिक या उस पर देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का कोई मामला तो नहीं। ऐसी दशा में फर्जी नाम-पते पर धड़ाधड़ पासपोर्ट बनने लगे। संबंधित थानों की पुलिस भी सुविधा शुल्क के आगे आवेदक का भौतिक सत्यापन नहीं करती जिसका फायदा आइएसआइ एजेंट राशिद, अफगानी नागरिक करीमतुल्ला, आबिद जैसे लोगों ने उठाया। पाकिस्तानी एजेंट राशिद के दस्तावेज को वेरिफिकेशन के बिना पासपोर्ट जारी करने के बाद शासन स्तर पर हड़कंप मचा है। खुफिया तंत्र से जुड़े अधिकारियों ने भी सरकार तक बात पहुंचाई है कि भौतिक सत्यापन का अधिकार छीनने के चलते सारी फजीहत हो रही है। अब इस रिपोर्ट को लेकर सरकार गंभीर है।
पासपोर्ट का एलआइयू ने नहीं किया था सत्यापन
सेना व सीआरपीएफ से जुड़ी गोपनीय सूचनाएं वाट्सएप के जरिए पाकिस्तानी एजेंसी आइएसआइ तक पहुंचाने वाले एजेंट राशिद के पासपोर्ट को लेकर चौंकाने वाला राजफाश हुआ है। एलआइयू (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) तक राशिद के पासपोर्ट से संबंधी अभिलेख पहुंचे ही नहीं। लंका पुलिस ने उसका दस्तावेज सत्यापित किया था। क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने भी लापरवाही बरती। एलआइयू से अभिलेखों का सत्यापन रिपोर्ट नहीं होने के बाद भी पासपोर्ट कार्यालय ने पासपोर्ट जारी कर दिया। खुफिया व सुरक्षा एजेंसियां इस मामले में लोकल पुलिस की भूमिका संदिग्ध मान रहीं हैं।
सेना से इनपुट मिलने के बाद चंदौली के पड़ाव निवासी राशिद को एटीएस ने 19 जनवरी को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में पता चला कि राशिद तीन साल में दो बार पाकिस्तान गया था। इस समय वह वाट्सएप के जरिए पाकिस्तानी एजेंसी आइएसआइ को गोपनीय सूचनाएं भेज रहा था। राशिद मूल रूप से लंका छित्तूपुर का निवासी है लेकिन एक दशक से भी अधिक समय से वह अपनी मां के साथ पड़ाव स्थित ननिहाल में रह रहा था। एटीएस के हाथ लगे उसके पासपोर्ट से पता चला कि उसने लंका वाले आवासीय पते से अपना व मां का पासपोर्ट बनवाया था।
जांच में हुआ उजागर
राशिद के पासपोर्ट को लेकर स्थानीय खुफिया तंत्र पर सवाल उठे तो एलआइयू के सीओ डीके सिंह ने इसकी पड़ताल कराई। जांच में चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी। पासपोर्ट के लिए तैयार अभिलेखों का लंका पुलिस ने एलआइयू से सत्यापन ही नहीं कराया। मिलीभगत से लंका थाने से ही सारे दस्तावेज क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय में जमा कर दिए गए। राशिद की फोटो लंका पुलिस ने ही सत्यापित की थी जिसे क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने भी मानकर पासपोर्ट जारी कर दिया।
संदेह के दायरे में आई कंपनी
पासपोर्ट के लिए आवेदकों के दस्तावेजों की जांच में लापरवाही को लेकर क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय की कंसल्टेंसी कंपनी की भूमिका भी संदेह के दायरे में आ गई है। गौरतलब है कि पुलिस आरक्षी भर्ती-2018 में अभ्यर्थियों के दस्तावेजों के वाराणसी पुलिस लाइन में बीते साल दिसंबर में हुए सत्यापन में भी खेल किया गया था। साल्वर गैंग के साथ कंसल्टेंसी कंपनी की मिलीभगत सामने आई थी। पुलिस ने इस कंपनी के कर्मचारी को भी गिरफ्तार किया था।